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कश्मीर प्रेस क्लब 'तख्तापलट': पत्रकारिता को दबाने का एक और सरकारी प्रयास?

'तख्तापलट' को लेकर हुए विवाद के बाद जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने क्लब का एलॉटमेंट रद्द कर दिया.

आकिब जावेद
भारत
Published:
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कश्मीर प्रेस क्लब 'तख्तापलट': पत्रकारिता को दबाने का एक और सरकारी प्रयास?

(फोटो- ट्विटर/@kamranyousuf_)

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शनिवार, 15 जनवरी को दोपहर करीब 1 बजे टाइम्स ऑफ इंडिया के सहायक संपादक सलीम पंडित अपनी सफेद एंबेसडर कार में कुछ पत्रकारों के साथ क्लब को टेक ओवर करने के लिए कश्मीर प्रेस क्लब (KPC) पहुंचे थे. कुछ ज्ञात और अज्ञात लोग मीटिंग के लिए एक रूम के अंदर गए और कुछ समय बाद बाहर आए. क्लब के कर्मचारियों को ऑफिशियल लेटर पैड और स्टैम्प सौंपने के लिए कहा गया क्योंकि वे अब अंतरिम निकाय हैं.

एक कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि उन्होंने आधिकारिक लेटर पैड पर खुद को इंटरिम बॉडी घोषित करते हुए एक बयान दिया और उस पर मुहर लगा दी. उन्होंने कहा कि उन्होंने बयान जारी करने के लिए आधिकारिक मेल का भी इस्तेमाल किया.

पंडित के मीडिया को संबोधित करने के लिए बिल्डिंग से बाहर आने के तुरंत बाद क्लब में ड्रामैटिक सीन देखा गया, जिनमें से कई लोग तख्तापलट को देखकर हैरान थे.

सीनियर जर्नलिस्ट ने पंडित से कहा कि आपने मनमाने ढंग से क्लब पर कब्जा कर लिया है. उन्होंने इस पर जवाब दिया कि नहीं, हमारे साथ लोग हैं. उसके बाद एक अन्य जर्नलिस्ट ने कहा कि मैं आपके साथ नहीं हूं.

घटना के वक्त बड़ी संख्या में जम्मू-कश्मीर पुलिस के जवानों को क्लब के बाहर तैनात किया गया था. कुछ बलों को क्लब परिसर में भी देखा गया. बता दें कि केपीसी क्लब में बंदूकधारी व्यक्तियों की अनुमति नहीं होती है.

KPC प्रेस की स्वतंत्रता पर हमले के खिलाफ मुखर थी

पंडित को 2019 में इलेक्टेड बॉडी द्वारा सस्पेंड कर दिया गया था, जब उन्होंने टाइम्स ऑफ इंडिया में एक लेख लिखा था जिसमें आरोप लगाया गया था कि क्लब के सदस्य जिहादी पत्रकार हैं.

ग्रुप द्वारा क्लब को अपने कब्जे में लेने के तुरंत बाद, केपीसी को उनके द्वारा COVID-19 लॉकडाउन के बहाने बंद कर दिया गया. क्लब अपने टेक-ओवर के दूसरे दिन बंद रहता है.

मीडिया विश्लेषक, 'तख्तापलट' को घाटी में पहले से ही पत्रकारिता पर हमला करने की कोशिश के रूप में देखते हैं. वरिष्ठ पत्रकार नजीब मुबारकी का तर्क है कि कश्मीर में पत्रकारों के उत्पीड़न और डराने-धमकाने को लेकर केपीसी हमेशा मुखर रही है.

मुबार्की ने द क्विंट से बात करते हुए कहा कि देखिए, आपको इसे बड़े संदर्भ में देखने की जरूरत है. कश्मीर में पत्रकारिता पर दशकों से हमले हो रहे हैं, और संविधान के अनुच्छेद-370 को निरस्त करने के बाद, भले ही कुछ पत्रकार अभी भी पूरी ईमानदारी के साथ काम कर रहे हों, उन्हें बार-बार धमकाया गया. केपीसी इस तरह के हमलों के खिलाफ बयान जारी करके एक दबाव समूह के रूप में काम करेगी.

उन्होंने कहा कि कार्रवाई से पता चलता है कि केपीसी की कार्रवाई राज्य को परेशान कर रही थी, अन्यथा, ऐसा करने का तर्क क्या होगा?

इकोनॉमिक टाइम्स के पूर्व संपादक मुबारक ने कहा कि कार्रवाई दर्शाती है कि नई दिल्ली दशकों से कश्मीर में क्या कर रही है.

उन्होंने कहा कि यह बेहद मूर्खतापूर्ण, हास्यपूर्ण है. यह अनुच्छेद 370 को दोहराने जैसा है.

एक अनुभवी पत्रकार और एक मीडिया शोधकर्ता डॉ राशिद मकबूल ने द क्विंट को बताया कि मीडिया बिरादरी के लिए केपीसी एक आशा की किरण और कश्मीर में सभी पत्रकारों के लिए एक केंद्र है.

यह सोचना हास्यास्पद है कि इस संस्था की पवित्रता का उल्लंघन उन लोगों द्वारा किया गया जो खुद को पत्रकार कहते हैं. वे कभी भी पत्रकारिता के शुभचिंतक नहीं हो सकते. इतिहास में उनका नाम प्रेस पर सबसे खराब हमलावरों के रूप में दर्ज किया जाएगा.

जम्मू-कश्मीर सरकार का 'हस्तक्षेप'

इस बीच, जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने विवाद के बाद एक बयान जारी किया.

सरकार कश्मीर प्रेस क्लब के बैनर का उपयोग करते हुए कहा कि दो प्रतिद्वंद्वी युद्धरत समूहों की घटनाओं के कारण उत्पन्न हुई कानून और व्यवस्था की स्थिति और मीडियाकर्मियों की सुरक्षा से चिंतित है. सोशल मीडिया के मद्देनजर एक हस्तक्षेप अनिवार्य हो गया है. इसलिए, यह निर्णय लिया गया है कि लैंडिंग और बिल्डिंग का कंट्रोल एलॉट किया गया है. पत्रकारों की भलाई और लाभ के लिए कश्मीर प्रेस क्लब को फिलहाल संपदा विभाग के पास रखा जाएगा. इन्फॉर्मेशन डिपार्टमेंट यह सुनिश्चित करेगा कि वास्तविक पत्रकार चल रही सुविधाओं का लाभ उठाते रहें.

'क्लब की पवित्रता का उल्लंघन'

पंडित के नेतृत्व वाले ग्रुप की कार्रवाई की वजह कश्मीर और देश भर में मीडिया निकायों ने भारी आक्रोश और आलोचना की है.

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और मुंबई प्रेस क्लब ने रविवार को जम्मू-कश्मीर के अधिकारियों को क्लब की चुनाव प्रक्रिया में बाधा डालने और क्लब को अपने नियंत्रण में लेने में मदद करने के लिए फटकार लगाई.

जिस तरह से कश्मीर प्रेस क्लब के कार्यालय और प्रबंधन, घाटी में सबसे बड़े पत्रकार संघ, पर जनवरी को सशस्त्र पुलिसकर्मियों की मदद से पत्रकारों के एक समूह ने जबरन कब्जा कर लिया था. एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने इस बात पर चिंता व्यक्त की.

गिल्ड ने क्विंट को बताया कि पुलिस और स्थानीय प्रशासन द्वारा क्लब की पवित्रता का यह उल्लंघन राज्य में प्रेस की स्वतंत्रता को दबाने की लगातार कोशिश का एक रूप है. हाल ही में एक युवा पत्रकार सज्जाद गुल को सोशल मीडिया पर केवल एक वीडियो पोस्ट करने के लिए गिरफ्तार किया गया था, जिसमें एक परिवार को भारत सरकार के खिलाफ विरोध करते दिखाया गया था.

मुंबई प्रेस क्लब ने शनिवार को सुरक्षा बलों के साथ मिलकर कानूनी रूप से इलेक्टेड मैनेजमेंट बॉडी से कश्मीर प्रेस क्लब (KPC) के जबरन टेकओवर की निंदा की. एमपीसी ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन द्वारा पिछले दिन शुक्रवार, 14 जनवरी को कश्मीर क्लब के रजिस्ट्रेशन को 'स्थगित' करके, जो कि सोसायटी अधिनियम, 1860 के तहत पंजीकृत है, क्लब की चुनाव प्रक्रिया को रद्द करने की निंदा करता है.

अंतरिम निकाय का कहना है 'मीडिया मुसीबत में था'

गठन के बाद से केपीसी ने पत्रकारों पर राज्य और उसकी सुरक्षा एजेंसी की ज्यादतियों के खिलाफ दिन-प्रतिदिन बयान जारी किए हैं. क्लब श्रीनगर शहर के मध्य में स्थित है. इसके लिए दो मंजिला इमारत 2018 में जम्मू-कश्मीर सरकार द्वारा प्रदान की गई थी.

अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद, क्लब ने स्थानीय पत्रकारों और देश के अन्य राज्यों से आने वाले लोगों के लिए एक सुरक्षित स्थान प्रदान किया.

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खुद को अंतरिम निकाय घोषित करने के तुरंत बाद, ग्रुप ने केपीसी के ऑफिशियल ईमेल के माध्यम से एक बयान जारी किया, जिसमें पत्रकार एम सलीम पंडित को अध्यक्ष, जुल्फिकार मजीद को महासचिव और अरशद रसूल को क्लब के कोषाध्यक्ष के रूप में चुनाव होने तक एक नया अंतरिम निकाय घोषित किया गया.

केपीसी पिछले छह महीनों से निष्क्रिय था, क्योंकि पहले से निर्वाचित निकाय का कार्यकाल समाप्त हो गया था. जैसा कि पिछली समिति ने अज्ञात कारणों से चुनावों में देरी की थी. उसके बाद लगभग छह महीने तक, मीडिया बिरादरी को परेशानी में डाल दिया. बयान में आगे कहा गया है कि कश्मीर घाटी के विभिन्न पत्रकार संगठनों ने सर्वसम्मति से तीन सदस्यों का एक अंतरिम निकाय बनाने का फैसला किया.

केपीसी ने दो साल की अवधि के लिए जुलाई 2019 में अपना पहला चुनाव किया, जो 14 जुलाई 2021 को समाप्त हुआ. इंडिया टुडे के शुजा उल हक को प्रेसीडेंट के रूप में चुना गया. उन्होंने वरिष्ठ पत्रकार हारून राशिद शाह को हराया, जो डेक्कन हेराल्ड के जुल्फिकार मजीद के साथ प्रेसीडेंट पद के लिए मैदान में थे.

स्थानीय दैनिक कश्मीर रीडर के मोअजुम मोहम्मद को उपाध्यक्ष और पत्रकार इशफाक तांत्रे को महासचिव चुना गया.

मशहूर फोटो जर्नलिस्ट फारूक जावेद खान को केपीसी के कोषाध्यक्ष के रूप में चुना गया था. पत्रकारों ने सात कार्यकारी सदस्य भी चुने.

रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया में देरी

निर्वाचित निकाय का कार्यकाल जुलाई 2021 में समाप्त हो गया. हालांकि, सोसायटी पंजीकरण अधिनियम-1860 के तहत क्लब की रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया की वजह से चुनाव समय पर नहीं हो सके.

विशेष रूप से, कश्मीर प्रेस क्लब 1998 के जम्मू-कश्मीर समाज अधिनियम VI (1941 ईस्वी) के दायरे में आता है, जो सोसायटी के रजिस्ट्रार के साथ पंजीकृत है.

छह महीने के बाद अधिकारियों ने 29 दिसंबर 2021 को फिर से रजिस्ट्रेशन सर्टीफिकेट जारी किया, जिसके बाद क्लब के द्वारा नए चुनाव शुरू करने का फैसला किया गया और 13 जनवरी 2022 को तारीख का भी ऐलान किया गया.

हालांकि, कुछ गैर-सदस्यों सहित पत्रकारों के एक ही समूह ने अंतरिम निकाय के प्रस्ताव के साथ जिला प्रशासन से संपर्क किया और इसके बाद सरकार की ओर से बातचीत की गई कि 14 जनवरी को फिर से रजिस्ट्रेशन को रोक दिया गया है.

9 पत्रकारों के ग्रुप ने कार्रवाई की निंदा की

श्रीनगर के जिलाधिकारी को लिखे गया पत्र की एक कॉपी द क्विंट के पास है, उसमें लिखा है कि- 'कश्मीर प्रेस क्लब के चुनाव जुलाई 2021 में एक सप्ताह के भीतर होने वाले थे. दिलचस्प बात यह है कि पिछली कार्यकारी समिति का कार्यकाल 14 जुलाई, 2021 को समाप्त हो गया था. चूंकि क्लब मौजूदा वक्त में पिछले छह महीनों से बिना किसी कानूनी कार्यकारी निकाय के है, जिसने कश्मीर प्रेस क्लब को मुश्किल में डाल दिया है, इसलिए हस्तक्षेप करने की गुजारिश की जाती है.

शनिवार, 15 जनवरी को सलीम पंडित के नेतृत्व में ग्रुप ने सशस्त्र बलों द्वारा संरक्षित क्लब पर धावा बोल दिया और कार्यभार संभाल लिया. कश्मीर में ज्यादातर पत्रकारों ने तख्तापलट की निंदा की. क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का आरोप है कि सरकार द्वारा समर्थित था.

हालांकि, पंडित के नेतृत्व वाले ग्रुप द्वारा कथित टेकओवर के कुछ घंटों बाद, कश्मीर स्थित कम से कम नौ पत्रकार निकायों ने एक संयुक्त बयान जारी कर इस कदम को अवैध और मनमाना बताया. बयान के द्वारा केपीसी को संभालने वाले ग्रुप को असंतुष्ट पत्रकार करार दिया गया और आरोप लगाया गया कि उन्हें स्थानीय प्रशासन से खुला समर्थन मिल रहा था.

बयान में दावा किया गया है कि असंतुष्ट पत्रकार जम्मू कश्मीर के प्रमुख प्रेस क्लब में घुस गए थे और कार्यालय के सदस्यों को बंधक बना लिया था.

संयुक्त बयान में कहा गया है कि...

15 जनवरी को, जिस दिन प्रशासन ने कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए वीकेंड में लॉकडाउन का ऐलान किया था, उस दिन पत्रकारों के एक ग्रुप ने क्लब कार्यालय में घुसकर जबरन सदस्यों को बंधक बनाकर क्लब पर कब्जा कर लिया. बेहद निंदनीय और पूरी तरह से अवैध इस कदम के लिए पहले से ही बड़ी संख्या में पुलिस और अर्धसैनिक बल के जवानों को तैनात किया गया था.

केपीसी के अवैध और मनमाने अधिग्रहण पर नाराजगी जताते हुए बयान में आगे कहा गया है कि प्रशासन ने कुछ असंतुष्ट पत्रकारों को क्लब के संविधान, नियमों और कानून के सभी मानदंडों का उल्लंघन करने की अनुमति देकर एक गलत मिसाल कायम की है.

जिन 9 पत्रकार निकायों ने टेकओवर का विरोध किया है, उनमें जर्नलिस्ट फेडरेशन ऑफ कश्मीर (JFK), कश्मीर वर्किंग जर्नलिस्ट एसोसिएशन (KWJA), कश्मीर प्रेस फोटोग्राफर एसोसिएशन (KPPA), कश्मीर प्रेस क्लब (KPC), जम्मू और कश्मीर जर्नलिस्ट एसोसिएशन (JAKJA), कश्मीर वीडियो जर्नलिस्ट एसोसिएशन (KVJA), कश्मीर वर्किंग जर्नलिस्ट एसोसिएशन, कश्मीर नेशनल टेलीविजन जर्नलिस्ट एसोसिएशन (KNTJA) और कश्मीर जर्नलिस्ट एसोसिएशन (KJA) शामिल हैं.

आरोप और प्रतिवाद

आरोपों को खारिज करते हुए, अंतरिम निकाय के महासचिव जुल्फिकार माजिद ने कहा कि ये दावे निहित स्वार्थों और राजनेताओं द्वारा फैलाए गए हैं.

प्रेस क्लब में नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) की क्या भूमिका है? क्या उन्होंने उनसे निकाय से पूछा कि उनका कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी वे कैसे कार्यभार संभाल सकते हैं?
जुल्फिकार माजिद

उन्होंने कहा कि निकाय का कार्यकाल छह महीने पहले समाप्त हो गया था और इसे चुनाव के समय तक एक अंतरिम निकाय की घोषणा करनी चाहिए थी. माजिद ने आगे कहा कि अंतरिम महासचिव के रूप में उनके नाम का प्रस्ताव 250 से अधिक पत्रकारों ने किया है और उन्होंने जबरदस्ती कार्यभार नहीं संभाला. उन्होंने कहा कि पूरी मीडिया बिरादरी हमारे साथ है.

यह पूछे जाने पर कि क्या नौ से अधिक पत्रकार निकायों ने ओवरटेक को खारिज कर दिया है, उन्होंने कहा कि वह उन्हें पत्रकार नहीं बल्कि 'कार्यकर्ता' मानते हैं.

केपीसी में तैनात किए जाने पर माजिद ने कहा कि पंडित एक सुरक्षित व्यक्ति हैं और कल उनके साथ मौजूद 12 पुलिसकर्मियों द्वारा उनकी सुरक्षा की जा रही है. केपीसी के बाहर आमतौर पर पुलिस होती है.

'पत्रकारों का पूरा सपोर्ट है': इश्फाक तांत्रे

ग्रुप की कार्रवाई की व्यापक रूप से निंदा की गई है और पूरे कश्मीर में सभी पत्रकार निकाय इसकी निंदा कर रहे हैं, लेकिन निर्वाचित निकाय के महासचिव इशफाक तांत्रे कहते हैं कि पत्रकारों ने मौजूदा निकाय में अपना पूरा समर्थन और विश्वास व्यक्त किया है.

उन्होंने द क्विंट को बताया कि केपीसी मैनेजमेंट बॉडी एक लीगल यूनिट है और लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि कोई भी खुद को प्रबंधन निकाय के रूप में नियुक्त करेगा.

(डिस्क्लेमर: लेखक केपीसी के निर्वाचित कार्यकारी सदस्यों में से एक थे और श्रीनगर के पत्रकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल @AuqibJaveed है.)

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