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KGMU लखनऊ में 'कोरोना वॉरियर्स' धरने पर, भत्ता बढ़ाने की मांग

डाक्टरों का कहना है सरकार कोरोना के दौर में उनके द्वारा जा रही सेवाओं को नजरंदाज कर रही है

असद रिज़वी
भारत
Published:
डाक्टरों का कहना है सरकार कोरोना के दौर में उनके द्वारा जा रही सेवाओं को नजरंदाज कर रही है
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डाक्टरों का कहना है सरकार कोरोना के दौर में उनके द्वारा जा रही सेवाओं को नजरंदाज कर रही है
(फोटो- क्विंट हिंदी)

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कोरोना संक्रमण के समय दिन-रात सेवा देने वाले इंटर्न डाक्टरों को उत्तर प्रदेश में केवल 250 रुपये प्रतिदिन भत्ता मिलता है. लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के इंटर्न डाक्टरों का कहना है कि हमको 'ताली-थाली या पुष्प वर्षा' नहीं, अपनी जीविका चलाने के लिए सम्मान जनक भत्ता चाहिए है.

अपनी मांग को लेकर केजीएमयू के गेट पर भूख हड़ताल पर बैठे इंटर्न डाक्टरों का कहना है सरकार कोरोना के दौर में उनके द्वारा जा रही सेवाओं को नजरंदाज कर रही है. प्रतिदिन 10-12 घंटे काम करने के बावजूद हमको केवल 7500 प्रति माह मिलता है.

डॉक्टर शिवम मिश्रा का कहना है की एमबीबीएस की डिग्री लेने के बाद भी उनको एक मजदूर से भी कम भत्ता मिल रहा है. भत्ता बढ़ाने की मांग को लेकर विरोध कर रहे डॉक्टर शिवम मिश्रा कहते हैं की यह समस्या सिर्फ उत्तर प्रदेश में है. दूसरे प्रदेशों और केंद्रीय स्वास्थ्य संस्थानों में इंटर्न डाक्टरों को सम्मान जनक भत्ता दिया जा रहा है.

डॉक्टरों का कहना है कि दिल्ली में 23500 रुपये, 31000 रुपये असम में, कर्नाटक में 30000 रुपये, बिहार में 20000 रुपये, पश्चिम बंगाल में 28000 रुपये, चंडीगढ़ में 18000 रूपये और आंध्र प्रदेश में इंटर्न डाक्टरों को 19000 रुपये प्रति माह भत्ता दिया जा रहा है. जबकि उत्तर प्रदेश की मेडिकल संस्थाओं में काम करने वाले 1500 से अधिक इंटर्न डाक्टरों को केवल 7500 प्रति माह दिया जाता है.
(फोटो- क्विंट हिंदी)

'कोरोना हुआ, ठीक होने के बाद फिर ड्यूटी पर आ गए'

केजीएमयू में कार्यगत करीब 250 एमबीबीएस और 70 बीडीएस, इंटर्न डॉक्टर, कोरोना के समय जूनियर डाक्टरों के साथ मिलकर कोरोना के खिलाफ युद्ध स्तर पर काम कर रहे हैं. डॉक्टर शिवम मिश्रा के अनुसार इलाज करते समय स्वयं उनको और उनके करीब 15 साथियों को कोरोना हो गया. लेकिन ठीक होने के बाद सभी दोबरा ड्यूटी पर आ गए और लगातार मरीजों की सेवा कर रहे हैं.

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केजीएमयू में अपना भत्ता बढ़ने की मांग कर रहे डॉ अविनाश यादव का कहना है कि सरकार अगर हमको सम्मान देना चाहती है तो हमारी जीविका को लेकर गंभीरता दिखाए. डॉ अविनाश यादव कहते हैं कि ताली-थाली बजवाने या पुष्प वर्षा से इंटर्न डाक्टरों के जीवन में कोई सुधार नहीं आने वाला है. वह कहते हैं कि हमको 250 प्रतिदिन मिलते हैं, जिस से एक N-95 मास्क भी नहीं खरीदा जा सकता है.


इंटर्न डॉ रजत यादव कहते हैं कि हमको इसकी अवश्यता नहीं हमको ”कोरोना युद्धा” कहा जाये, बल्कि हमको इसकी चिंता है कि हमको अपनी जीविका के लिए किसी पर निर्भर ना होना पड़े. उन्होंने बताया कि कभी-कभी खर्च पूरा करने के लिए इंटर्न डाक्टरों को अपने घर से पैसा लेना पड़ता है.

डॉक्टर्स सवाल करते है कि “क्या मैं खुद को “कोरोना योद्धा बताकर, होटल में मुफ्त खाना खा सकता हूँ या पेट्रोल पम्प से मुझको फ्री पेट्रोल मिल सकता है? अगर नहीं तो ऐसे सम्मान से क्या फायदा?”. डॉ. रजत कहते हैं हमको सम्मान नहीं, भत्ता चाहिए है. ताकि हम आत्मनिर्भर बने और सम्मान के साथ जीवन गुजार सकें.

'पुलिस के दबाव में धरना खत्म करना पड़ा'

बता दें कि इंटर्न डॉक्टर प्रदेश के बड़ी मेडिकल यूनिवर्सिटियों में से एक KGMU के बाहर भूख हड़ताल पर बैठें थे. लेकिन 27 नवंबर को जिला प्रशासन ने वहां भारी पुलिस तैनात कर दी. बाद में प्रशासनिक अधिकारियों ने धारा 144 का हवाला देकर धरना खत्म करा दिया.

प्रशासनिक दबाव में इंटर्न डॉक्टर केजीएमयू गेट से हट गए. लेकिन वह अब बाजू पर काली पट्टी बांध कर काम कर रहे हैं. उनका कहना है कि विरोध जारी है और अगर मांग पूरी नहीं हुई तो फिर से धरना शुरू कर दिया जायेगा. इस बीच यूनिवर्सिटी में कैंडल मार्च निकाल कर विरोध दर्ज कराया जाता रहेगा.

सरकार ने की कमेटी गठित

जब केजीएमयू प्रशासन से इस बारे में सम्पर्क किया तो यूनिवर्सिटी के प्रवक्ता डॉ सुधीर सिंह ने बताया कि इस मामले में शासन स्तर पर फैसला लिया जायेगा. डॉ सुधीर ने बताया कि इंटर्न डाक्टरों के विरोध के बाद शासन स्तर पर एक कमेटी गठित की है. जिसमें चिकित्सा शिक्षा और वित्त विभाग के सचिव शामिल हैं. इस कमेटी कि रिपोर्ट आने बाद शासन द्वारा भत्ता बढ़ाने के लिए कोई फैसला लिया जायेगा.

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