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केंद्र सरकार दो बड़े कामों को अमल में लाने के लिए पूरी तरह से तैयार है - जनगणना और देश भर में राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) को अपडेट करना. ऐसे में ये जानना जरूरी है कि एनपीआर और जनगणना के बीच क्या अंतर है, और उनकी क्या खासियत है.
NPR देश के सामान्य निवासियों का एक रजिस्टर है. यह नागरिकता अधिनियम, 1955 और नागरिकता (नागरिकों का रजिस्ट्रेशन और राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करना) नियम, 2003 के प्रावधानों के तहत स्थानीय (गांव / उप-नगर), उप-जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर तैयार किया जा रहा है.
एनपीआर के तहत एक सामान्य निवासी को एक व्यक्ति के रूप में इस तरह परिभाषित किया जाता है- ‘जो पिछले छह महीने या उससे ज्यादा समय से स्थानीय इलाके में रहता है, या एक व्यक्ति जो अगले छह महीनों के लिए उस इलाके में निवास करना चाहता है.’ कानून अनिवार्य रूप से भारत के प्रत्येक नागरिक को रजिस्टर करने और एक राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करने की कोशिश करता है.
जनगणना के हाउस लिस्टिंग फेस के साथ, असम को छोड़कर सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में अप्रैल से सितंबर 2020 के बीच एनपीआर का काम किया जाएगा.
इससे असम को बाहर रखा गया है, क्योंकि नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर (NRC) को पहले ही राज्य में लागू किया जा चुका है. NPR को रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त की देखरेख में बनाया जाना है. NPR का उद्देश्य देश में हर सामान्य निवासी का एक व्यापक पहचान डेटाबेस तैयार करना है. इस डेटाबेस में जनसांख्यिकीय के साथ-साथ बॉयोमीट्रिक ब्यौरे भी शामिल होंगे.
एनपीआर के आंकड़े पिछली बार 2010 में घर की लिस्ट तैयार करते समय लिये गये थे, जो 2011 की जनगणना से जुड़े थे. 2015 में घर घर जाकर इन आंकड़ों को अपडेट किया गया था. आने वाले एनपीआर के लिए केंद्र सरकार ने अगस्त में गजट नोटिफिकेशन जारी किया था.
मंगलवार 24 दिसंबर को केंद्रीय कैबिनेट ने एनपीआर को पूरा करने के लिए 3941.35 करोड़ रुपये का बजट पास किया.
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देश के नागरिकों से जुड़ी हर जानकारी इकट्ठा करने के लिए हर 10 साल में होने वाली जनगणना 1948 में बने जनगणना कानून के तहत की जाती है. जनगणना 2021 दो चरणों में होगी. इसमें पहले चरण में घर की लिस्ट या घर संबंधी गणना होगी जो अप्रैल से सितंबर 2020 तक होगी. इसका दूसरा चरण नौ फरवरी से 28 फरवरी 2021 में होगा, जिसमें लोगों की गिनती होगी. इसके लिए रेफरेंस की तारीख 28 फरवरी और 1 मार्च 2021 की आधी रात 12 बजे होगी.
वहीं जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के बर्फीले इलाकों में ये तारीख 1 अक्टूबर 2020 होगी.
जनगणना डेमोग्राफी, आर्थिक गतिविधि, साक्षरता और शिक्षा, आवास और घरेलू सुविधाएं, शहरीकरण, प्रजनन और मृत्यु दर, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति, भाषा, धर्म, माइग्रेशन, डिसैबिलिटी पर विस्तार से और प्रामाणिक जानकारी देता है.
जनगणना करने वाले किसान और खेतिहर मजदूरों से जुड़े आंकड़े, लिंग, गैर-घरेलू उद्योग में कामगारों का व्यावसायिक वर्गीकरण, व्यापार, व्यवसाय से संबंधित आंकड़े भी इकट्ठा करते हैं.
लिंग और साक्षरता दर, कस्बों की संख्या, स्लम और उनकी आबादी पर विस्तृत सर्वे होता है.
पीने लायक पानी, ऊर्जा, सिंचाई, खेती करने के तरीके, घर कच्चा है या पक्का इसे लेकर भी जानकारी इकट्ठी की जाती है.
पिछले करीब 130 साल के इतिहास में हर 10 साल में ये पुख्ता आंकड़े जारी करने का काम होता है. ये साल 1872 से शुरू हुआ, जब भारत के अलग-अलग हिस्सों में पहली जनगणना की गई थी. हालांकि ये उतनी सुनियोजित व्यवस्था नहीं थी. इसके बाद साल 1949 में सरकार ने जनसंख्या के बढ़ने और घटने के आधार पर इकट्ठा किए गए आंकड़ों पर एक व्यवस्थित जनगणना करने का फैसला किया. इसके साथ ही गृहमंत्रालय के अधीन एक संस्था बनाई गई, जिसमें रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना कमिश्नर बनाए गए. इस संस्था पर देशभर में जनसंख्या के आंकड़ों और अन्य जरूरी आंकड़ों सहित जनगणना की जिम्मेदारी है. हालांकि इसके बाद इस संस्था को एक और जिम्मेदारी सौंपी गई. जिसमें जन्म और मृत्यु के रजिस्ट्रेशन की जानकारी हासिल करना शामिल था. ये जन्म और मृत्यु अधिनियम 1969 लागू होने के बाद किया गया.
(इनपुट: PTI)
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