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12 जून को कुवैत के एक अपार्टमेंट में आग (Kuwait Fire) लगने से 49 लोगों की मौत हो गई थी. इसमें 45 भारतीय थे. गौरतलब है कि सात मंजिला इमारत में कुवैत शहर के दक्षिण में मंगफ एरिया में बने इस सात मंजिला इमारत में लगभग 200 लोग रहते थे, यहां प्रवासी श्रमिकों की भारी आबादी रहती है. उनमें से अधिकांश ने एनबीटीसी ग्रुप (NBTC) नाम की एक निजी निर्माण फर्म के लिए इंजीनियरों और तकनीशियनों के रूप में काम किया, इस फर्म के मैनेजिंग डायरेक्टर केजी अब्राहम, केरल के एक व्यवसायी हैं.
कुवैत में बेहद असुरक्षित परिस्थितियों में बड़ी संख्या में विदेशी मजदूरों को रखने के लिए कानूनों का उल्लंघन करने वाले रियल एस्टेट और कंपनी मालिकों के खिलाफ कार्रवाई की मांग के साथ ही, इसने एक मुख्य पहलू पर ध्यान खींचा है, वो है बड़ी संख्या में भारतीयों का पश्चिम एशियाई देशों में कार्यबल का हिस्सा होना यानी इन देशों में काम करने वाले भारतीयों की संख्या अधिक है.
सवाल है कि रोजगार की तलाश में भारतीय कामगार कुवैत क्यों जाते हैं? वे वहां कौन से काम या नौकरी करते हैं और वहां उनकी रहने की स्थितियां कैसी हैं? चलिए क्विंट आपको इसके बारे में विस्तार से बता रहा है...
डॉक्टर, इंजीनियर और चार्टर्ड अकाउंटेंट से लेकर ड्राइवर, बढ़ई, राजमिस्त्री, घरेलू कामगार और डिलीवरी एक्जीक्यूटिव तक, कुवैत भारतीय श्रमबल पर काफी हद तक निर्भर है.
कुवैत के सार्वजनिक सूचना प्राधिकरण (PACI) द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, दिसंबर 2023 तक पश्चिम एशियाई देश की जनसंख्या 4.85 मिलियन थी.
इसमें से, मजदूर और श्रमिकों की कुल आबादी 61 फीसदी (लगभग 30 लाख) और देश की कुल प्रवासी आबादी का 75 फीसदी शामिल है.
कुवैत में भारतीय दूतावास की वेबसाइट के अनुसार, अपने तेल भंडार के लिए मशहूर इस देश में 1970-80 के दशक में भारतीय प्रवासी आबादी में तेजी से वृद्धि देखी गई, जिनमें से सभी ने इसके विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
खाड़ी क्षेत्र में श्रमिकों के माइग्रेशन पर अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के 2016 के एक स्टडी से संकेत मिलता है, "श्रमिक, यहां तक कि जिन श्रमिकों के पास कम स्किल है, वो भी अधिक कमाते हैं, यदि उनके पास घरेलू श्रम मार्केट से संबंधित अनुभव है.
कुट्टप्पन द क्विंट को इसे विस्तार से समझाते हुए बताते हैं
दिसंबर 2023 में जारी, भारत और खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) के बीच सहयोग पर विदेश मंत्रालय की स्थायी समिति की रिपोर्ट में कहा गया कि यह क्षेत्र भारत के लिए इनवार्ड रेमिटेंस का एक महत्वपूर्ण स्रोत है यानी आसान भाषा में कहे तो खाड़ी देश, प्रवासी श्रमिक द्वारा भारत को मिलने वाली धनराशि का महत्वपूर्ण श्रोत है.
द अरब टाइम्स के अनुसार, कुवैत में काम करने वाले भारतीयों ने 2023 में लगभग 6.67 बिलियन डॉलर अपने घर भेजा.
एक गैर-लाभकारी संगठन, फेयरस्क्वेयर के रिसर्च कंसलटेंट और प्रवासी अधिकारों के वकील उस्मान जावेद ने द क्विंट को बताया:
भारत सरकार, उन राज्यों के साथ मिलकर काम कर रही है, जहां से प्रवासी श्रमिक बाहर जाते हैं (केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश), ILO नियमों के अनुसार, कुवैत में प्रवासी श्रमिकों के लिए न्यूनतम रेफरल मजदूरी (MRW) तय की गई है.
कुवैत के भारतीय दूतावास के अनुसार, 2022 तक, 64 श्रेणियों के काम के लिए न्यूनतम मजदूरी $300 और $1,350 के बीच थी.
दिसंबर 2022 में संसद में एक प्रश्न के जवाब में, तत्कालीन विदेश राज्य मंत्री वी मुरलीधरन ने कहा था "खाड़ी में हमारे रोजगार की रक्षा के लिए" खाड़ी देशों में रोजगार के लिए न्यूनतम रेफरल मजदूरी को कोविड के कारण कम किया गया है. हालांकि, 2022 तक यह उसी स्तर पर वापस आ गया, जैसा कि 2019-20 में था.
समय-समय पर श्रमिकों को श्रम और श्रमिकों के अधिकारों के उल्लंघन का सामना करना पड़ता है क्योंकि वे शोषणकारी नियोक्ता-कर्मचारी (employer-employee) लेबर कॉन्ट्रैक्ट सिस्टम का पालन करते हैं.
ये श्रमिक अक्सर मंगफ जैसे श्रमिक शिविरों या अर्ध-निर्मित इमारतों के तंग कमरों में बेहद खराब हालत में रहते हैं.
इंडियास्पेंड द्वारा दायर सूचना के अधिकार (RTI) से पता चला है कि खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) देशों में भारतीय प्रवासी श्रमिक एक कठिन स्थिति में हैं, वे विभिन्न श्रम और मानवाधिकार के उल्लंघनों के शिकार हो रहे हैं.
इसके अलावा, 2 फरवरी को विदेश मंत्रालय ने संसद में कहा कि 2022 और 2023 के बीच कुवैत में कुल 1,439 भारतीयों, जिनमें से ज्यादातर प्रवासी श्रमिक थे, उनकी मृत्यु हो गई.
सरकारी समाचार एजेंसी KUNA की रिपोर्ट के अनुसार, 13 जून को कुवैत के फायर फोर्स ने बताया कि आग बिजली के शॉर्ट सर्किट के कारण लगी थी. बिल्डिंग के मालिक पर नियमों के उल्लंघन के भी आरोप लगे हैं.
घटना के एक दिन बाद विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह घायलों से मिलने और उनका हालचाल जानने कुवैत पहुंचे. लोकल रिपोर्ट्स में कहा गया है कि इसके अलावा, कुवैत के उप प्रधानमंत्री ने कुवैती मकान मालिक और बिल्डिंग के मिस्र के गार्ड की गिरफ्तारी का आदेश दिया और अधिकारियों को उनकी अनुमति के बिना उन्हें रिहा नहीं करने की चेतावनी दी.
हालांकि, जैसे ही कुवैत त्रासदी की खबर फैली, कई राजनेताओं और विशेषज्ञों ने सरकार से भारतीय प्रवासी श्रमिकों के लिए काम की अच्छी स्थिति और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए इमिग्रेशन एक्ट, 1983 में संशोधन करने का आह्वान किया.
तीन बार के सांसद थरूर ने कहा कि यह घटना "भारतीय प्रवासी श्रमिकों को होने वाले भयानक बुनियादी सुविधाओं के अभाव" की याद दिलाती है.
खाड़ी देशों में जाने वाला प्रत्येक प्रवासी ई-माइग्रेट पोर्टल के माध्यम से मंजूरी प्राप्त करने के बाद वहां जाता है. इसके अलावा, इमिग्रेशन बिल 2021 का ड्राफ्ट, सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य देखभाल को लेकर प्रवासियों के सामने आने वाले मुद्दों को लेकर उत्प्रवास अधिनियम, 1983 यानी इमिग्रेशन एक्ट में संशोधन करने को लेकर है.
रेजिमोन कुट्टपन ने कहा कि विदेश मंत्रालय को "श्रमिक मुद्दों को कुछ महत्व देना चाहिए. वर्तमान में वे व्यापार और अन्य मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हैं."
कुट्टपन का मानना है कि अपडेटेट इमिग्रेशन एक्ट की कमी मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) न होने का कारण है, "जब यह स्थिति आती है, तो इसकी यानी (SOP) की आवश्यकता होती है, चाहे यह इस तरह की त्रासदी हो, या कुछ और."
भारत कुवैत में सभी भारतीय प्रवासी श्रमिकों को आकस्मिक मृत्यु या स्थायी विकलांगता के मामले में 10 लाख रुपये की कवरेज के साथ प्रवासी भारतीय बीमा योजना (PBBY) बीमा पॉलिसी भी प्रदान करता है. यह विवादों की स्थिति में कानूनी खर्च भी उठाता है.
हालांकि, कुट्टप्पन ने कहा कि यह योजना केवल "कुछ देशों में प्रवास करने वालों के लिए लागू है, जिनके पास इमिग्रेशन चेक रिक्वायर्ड (ECR) पासपोर्ट है."
नोट: भारत सरकार पासपोर्ट धारकों को उनकी शैक्षणिक योग्यता और पेशेवर कौशल के आधार पर दो श्रेणियों में वर्गीकृत करती है.
घटना की समीक्षा करने के बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने पीड़ित परिवारों को पीएम राहत कोष से 2 लाख रुपये की अनुग्रह राशि देने की घोषणा की. जावेद की राय में हालांकि, यह राशि बहुत कम है.
जावेद ने अपनी राय रखते हुए द क्विंट को बताया "भारतीय श्रमिक जीसीसी देशों में कुल कार्यबल का एक तिहाई हिस्सा हैं. अगर यह हमारे देश के लिए अपने श्रमिकों की सुरक्षा करना लाभ नहीं है तो मुझे नहीं पता कि क्या है... हमारी जैसी सरकारों को एक सामान्य न्यूनतम समझ होनी चाहिए और श्रमिकों के लिए बातचीत कर बेहतर स्थिति तय करनी चाहिए. भारत को इसमें एक बड़ी भूमिका निभानी चाहिए और परीक्षा यही है कि क्या हम विदेश में अपने नागरिकों की रक्षा कर सकते हैं"
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