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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज का ऐलान किया था. अब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पिछले कुछ दिनों से प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इन ऐलानों को विस्तार से समझा रही हैं. किसानों के लिए भी 'बड़े ऐलान' हुए लेकिन उनके हाथ में पैसा देने की किसी योजना का जिक्र नहीं था.स्वराज इंडिया के फाउंडर और राजनीतिक विश्लेषक योगेंद्र यादव का कहना है कि ऐलानों में किसान का जिक्र एक बार नहीं बल्कि तीन बार हुआ. बड़ी-बड़ी चर्चा हुई लेकिन किसान के हाथ अब भी खाली हैं.
योगेंद्र यादव कहते हैं कि लॉकडाउन के इस दौर में पहले ये समझने की जरूरत थी कि किसान और खेती-किसानी की दिक्कत क्या है, एक किसान को आखिर चाहिए क्या था? दरअसल, लॉकडाउन में किसानों को अपनी फसलें खासकर सब्जी, फल फेंकने पड़े, वो चाहते थे इसका मुआवजा मिले.
अब जो नई फसल आ रही है, उसमें डीजल के लिए, बिजली के लिए, खाद के लिए थोड़ी राहत मिल जाए.
योगेंद्र यादव कहते हैं कि इतनी चर्चा, इतने ऐलान के बाद भी इन बातों में से एक भी घोषणा सरकार ने नहीं की, जो किसानों की असल जरूरत थी. योगेंद्र यादव का कहना है कि कई पुरानी योजनाओं का ही दोबारा ऐलान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कर दिया है.
वो कहते हैं कि वित्त मंत्री ने ऐलान किया है कि किसान को किसान सम्मान निधि के 2 हजार रुपये मिल जाएंगे. लेकिन ये तो हमेशा मिलता रहा है. योगेंद्र यादव पूछते हैं कि जब अप्रैल से जून के महीने में ये मिलना था, अप्रैल में मिल गया तो आखिर ये लॉकडाउन के वक्त राहत का विशेष पैकेज कैसे हो गया?
राहत पैकेज के पार्ट-3 में वित्त मंत्री ने 11 ऐलान किए. योगेंद्र यादव कहते हैं कि इन 11 में 8 घोषणाएं तो सामान्य बजट की योजना थी, ज्यादातर पहले बजट में घोषित हो चुकी थी. ये भी नहीं बताया गया कि कितना पैसा, किस योजना के लिए कितने समय में दिया जाएगा.
पहली 8 घोषणाओं में से किसी घोषणा का संबंध किसानों की जरूरत और लॉकडाउन में राहत पहुंचाने के लिए नहीं है. एक भी घोषणा ऐसी नहीं है जिसका सरकार ने विस्तार में ब्लू प्रिंट बताया हो. किसान आज जिन दिक्कतों से जूझ रहा है, उसके समाधान की बजाय दूरगामी नीतियों की घोषणा कर दी गई.
अब योगेंद्र यादव कहते हैं कि आखिर ऐसा किया क्यों गया? ऐलान के नाम पर किसान के साथ ये बर्ताव करने की वजह है कि चर्चा हो सके, प्रेस कॉन्फ्रेंस किया जा सके. न्यूज चैनल फुटेज खाई जा सके, जिससे शाम को चैनल इन बातों पर बहस कर सकें, हेडलाइन से प्रवासी मजदूर घिसटते हुए, भागते हुए, नंगे पांव चलते हुए गायब हो जाएं, उनकी तस्वीरें न दिखें. चर्चा हो तो बस उनके बारे में किए जाने वाले पैकेज के ऐलान की चर्चा हो.
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