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शराब की समस्या पर हर कोई चुप,राष्ट्रीय नीति की जरूरत:योगेंद्र यादव

लॉकडाउन के बाद सबकी चिंंता ये है कि दारू की दुकान सबसे पहले खुल जाए

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लॉकडाउन के बाद सबकी चिंंता ये है कि दारू की दुकान सबसे पहले खुल जाए. आइसक्रीम की दुकान खुले या न खुले. चाय की दुकान, कपड़े की दुकान न खुले, लेकिन दारू की दुकान खुलनी चाहिए. राज्य सरकार को रेवेन्यू पेट्रोल और शराब से मिलता है. सिस्टम में ऊपर से नीचे तक दो नंबर का पैसा शराब से आता है.

पुलिस से लेकर प्रशासन सभी की लार टपक रही है कि बस लॉकडाउन खत्म हो न हो लेकिन दारू की दुकानें खुल जाएं. सुप्रीम कोर्ट भी कह रहा है कि शराब की दुकानें खोल देनी चाहिए. शराब की समस्या के बारे में आज समाज को सोचने की जरूरत है.

शराब की समस्या से निपटने का रास्ता नशाबंदी नहीं है, नशाबंदी से तो स्मग्लिंग होगी. इसके लिए एक राष्ट्रीय नीति की जरूरत है जो शराब को धीरे-धीरे कम करे और उस पर नियंंत्रण लगा सके. सरकारों की निर्भरता कम करे. समाज खासतौर से औरतों के भले के लिए कदम उठाया जाना चाहिए. दिक्कत ये है कि शराब को एक नैतिक समस्या बना दिया गया है जबकि ये नैतिक समस्या नहीं है. आप अपने घर में पीजिए किसी को कोई मतलब नही है. समस्या है आर्थिक, सामाजिक, सेहत और अब राजनीति की.राष्ट्रीय नीति की जरूरत है

कोरोना से ज्यादा जानें शराब से जा रहीं

देश में 2.5 लाख लोग हर साल शराब पीने से मरते हैं. अभी कोरोना से मुश्किल से 2000 मौतों का आंकड़ा हुआ है. शराब का खर्च बड़े लोगों के लिए एक-दो पैग कुछ खर्च नहीं है. लेकिन जिस घर में व्यक्ति 300-400 रुपये कमा के आता है और रास्ते में 80 रुपये की 150 रुपये की बोतल लेकर आता है यहां असल दिक्कत है. शराब की वजह से हर घर में बच्चे बर्बाद हो रहे हैं, बचपन खत्म हो रहा है. घर टूट रहा है औरत पिट रही है. और कोई इस मुद्दे पर बात नहीं करना चाहता.

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अब शराब बनी राजनीतिक समस्या

अब तो ये राजनीतिक समस्या बन गई है. हर पार्टी और सरकार इसके इंतजार में है कि शराब की दुकान खुल जाए. 2 साल पहले मैं हरियाणा के जिला रेवाड़ी में पदयात्रा कर रहा था. हम पानी, रोजगार, किसान के बारे में जब बात करने जाते थो तो हर गांव में औरतें हमें घेर लेती कि ये सब छोड़े बस हमारे गांव से शराब का ठेका उठवा दो. बस महिलाओं की एक ही मांग होती थी. औरतों ने मेरी आखें खोल दी. मैंने देखा हमारे जिले में पिछले 2 साल में शराब की खपत 2 दो गुना हो गई थी.

अगर प्रति परिवार के हिसाब से देखें तो हर दिन एक परिवार में शराब का एक पाव पिया जा रहा है. ये बहुत बड़ी समस्या है लेकिन इस पर कोई बात नहीं करना चाहता. वो लोग जो समाज सुधार की बात करते हैं जो क्रांति की बात करते हैं. वो भी दारू पर बात नहीं करना चाहते. आज इस पर एक राष्ट्रीय नीति की जरूरत है.

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