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लॉकडाउन खत्म होने के बाद हवाई यात्राओं का क्या होगा? क्या सोशल डिस्टेंसिंग को फ्लाइट में जरूरी बना दिया जाएगा? क्या एयर ट्रैवल महंगा हो जाएगा? क्या अगले कुछ महीने एविएशन इंडस्ट्री के लिए कठिन होंगे? ऐसे ही कई सवालों के जवाब जानने के लिए द क्विंट ने एयर इंडिया के पूर्व एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर जितेंद्र भार्गव से खास बातचीत की.
पहले सवाल के जवाब में भार्गव कहते हैं कि पूरी तरह से लॉकडाउन हाल-फिलहाल में नहीं खत्म होने वाला है. लेकिन जो प्राइवेट एयरलाइंस दोबारा काम शुरू करने को लेकर अति उत्साहित हैं, उन्हें ये सोचना चाहिए कि क्या यात्री उन्हें मिलेंगे? भार्गव का मानना है कि कुछ कंपनियों को ऐसा लग रहा है कि फ्लाइट्स की डिमांड हैं, लेकिन ये डिमांड सिर्फ उन लोगों के लिए है जो अपने शहर से दूर फंसे हुए हैं, ये एक अस्थायी डिमांड है.
इस सवाल के जवाब में भार्गव कहते हैं कि ब्यूरो ऑफ सिविल एविएशन सिक्योरिटी (BCAS) ने नागरिक उड्डयन मंत्रालय को बताया है कि उड़ानें दोबारा शुरू होने पर किन चीजों की जरूरत होगी. उदाहरण के लिए -
भार्गव ने बताया कि, इन उपायों को देखते हुए एयरलाइन कंपनियां पहले ही कह चुकी हैं कि अगर बीच की सीट को खाली छोड़ देते हैं तो भारी इनकम का नुकसान होगा.
इस सवाल के जवाब को भार्गव इंडिगो के उदाहरण से समझाते हैं. डोमेस्टिक फ्लाइट का सबसे बड़ी प्लेयर और सबसे ज्यादा मुनाफे वाली इंडिगो एयरलाइंस को अब 35-40% सीटें खाली छोड़नी पड़ेंगी, उन्हें बाकी सीटों के जरिए फायदे में बने रहने के लिए किराए में इजाफा करना होगा. तो साफ है कि सस्ते हवाई यात्रा वाले दिन अब चले गए. सेंटर फॉर एशिया पैसिफिक एविएशन (CAPA) का अनुमान है कि भारतीय एयरलाइन कंपनियों के 250 विमानों को अब रोकना पड़ेगा. भार्गव कहते हैं उनका अनुमान इससे ज्यादा का है. दरअसल, भारत में सभी एयरलाइनों को मुला दें तो 650 विमान हैं, लेकिन अब हमें 300 विमानों की भी आवश्यकता नहीं है.
इस सवाल पर भार्गव कहते हैं कि लॉकडाउन जब पूरी तरह खत्म होगा उस समय तक वर्क फ्रॉम होम और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए मीटिंग की चीजें नॉर्मल हो सकती हैं. कॉरपोरेट, मीटिंग के लिए एयर ट्रैवल को कम कर सकते हैं, जो उनके लिए सस्ता ही साधन होगा.
भार्गव कहते हैं कि एयरलाइंस के नुकसान को तीन पहलुओं में देखा जा सकता है. पहला, कंपनियां एयरक्राफ्ट चलाए चलाएंगी या नहीं, आपको लीज रेंट चुकाना हो, कर्मचारियों को पेमेंट देना होगा.
दूसरा पहलू यह है कि एयरलाइंस लीज एक्सपायर होने वाले विमान को वापस करने की जल्दबाजी करेगी. तीसरा पहलू यह है कि ज्यादातर भारतीय एयरलाइंस बड़ी संख्या में विमानों का ऑर्डर दे चुके हैं. निर्माता इस बात पर जोर दे रहे हैं कि वे डिलीवरी लें. कब तक इसे टाला जा सकता है?
फिर वो एयरलाइंस हैं, जो इंटरनेशनल उड़ाने संचालित करती हैं. अब देश अपने देशों में दूसरे देश के लोगों को आने की अनुमति नहीं दे रहे हैं. ऐसे में कुल मिलाकर सभी एयरलाइन कंपनियों को भारी नुकसान होने जा रहा है.
भार्गव कहते हैं कि दुनिया के कई देश बेलआउट पैकेज लेकर आए हैं. लेकिन भारत सरकार की वित्तीय स्थिति को देखते अभी मदद के लिए नहीं कह सकते. कुछ मदद मिल सकती है, लेकिन पूरी तरह से बैलआउट होने की बात नहीं सोच सकते.
भार्गव के मुताबिक, इंडियन एयरलाइंस के विनिवेश को ठंडे बस्ते में डाला जा सकता है. जो एयरलाइंस इसके अधिग्रहण की स्थिति में हैं, वो अब खुद बेहद बुरी स्थिति में हैं.
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