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"लॉकडाउन कब तक जारी रहना है यह फैसला केंद्र सरकार को करना है. इस मामले में विशेषज्ञों की राय ली जा सकती है. केंद्र सरकार का जो भी फैसला होगा हम उसका अनुपालन करेंगे." ये बातें बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने कही है.
लॉकडाउन 2.0 अब अपने आखिरी फेज में है. ऐसे में लोगों के मन में सवाल है कि क्या लॉकडाउन 3 मई को खत्म हो जाएगा? क्या बिहार सरकार इसके लिए तैयार है. तो जवाब है 50-50. चलिए बताते हैं ऐसा क्यों?
कोरोना वायरस को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ राज्यों के मुख्यमंत्रियों की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग हुई. जिसमें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने साफ कहा कि लॉकडाउन कब तक जारी रहना है ये फैसला केंद्र सरकार को लेना है. लेकिन सवाल ये है कि क्या बिहार सरकार अपनी जिम्मेदारी केंद्र सरकार पर डालना चाहती है? या फिर बिहार सरकार लॉकडाउन खुलने को लेकर अपनी तैयारी पर कॉन्फिडेंट है?
बिहार के सूचना और जनसंपर्क मंत्री नीरज कुमार बताते हैं कि लॉकडाउन खोलने के फैसले पर हम लोग कुछ नहीं कह सकते हैं, लेकिन बिहार हर चीज के लिए तैयार है. नीरज कहते हैं,
बता दें कि बिहार सरकार ने बाहर फंसे मजदूरों को अपने राज्य में लाने से इनकार कर दिया था. इसके लिए उन्होंने केंद्र सरकार के एक फैसले को जिम्मेदार बताया था. नीतीश कुमार ने पीएम के साथ बैठक में कहा था, “केंद्र सरकार की गाइडलाइन के मुताबिक हम लोग लॉकडाउन का पालन कर रहे हैं. जब तक केंद्र के निर्देश नहीं आते किसी को भी वापस बुलाना संभव नहीं है.” लेकिन अब केंद्र सरकार ने इसकी इजाजत दे दी है.
यही नहीं सवाल ये भी है कि इतनी कम राशि से कैसे लोगों का गुजारा होगा? माना जाता है कि करीब 25 से 30 लाख बिहार के प्रवासी मजदूर देश के अलग-अलग हिस्सों में हैं. ऐसे में अगर ये लोग बिहार वापस आ गए तो इनके रोजगार की जिम्मेदारी के बोझ को नीतीश कुमार के कैसे झेल पाएंगे?
बिहार सरकार का दावा है कि उसने ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन पर जोर दिया है. जल-जीवन-हरियाली अभियान, सात निश्चय (हर घर नल का जल, हर घर पक्की गली-नालियां), बाढ़ सुरक्षा कार्य और मनरेगा के तहत योजनाएं सोशल डिस्टेंसिंग के तहत शुरू की गई हैं.
लेकिन इन सबके बीच बिहार के 38 में 28 जिले कोरोना की चपेट में आ चुके हैं. करीब 22 लाख लोग कंटेनमेंट जोन में हैं. मतलब हाई अलर्ट पर. 20 अप्रैल तक बिहार बाकी कई राज्यों से बेहतर स्थिति में था. लेकिन 20 अप्रैल के बाद हालात बदल गए.
बिहार में 29 अप्रैल तक करीब 22 हजार टेस्ट हुए हैं, पिछले कुछ दिनों में रेंगती हुई टेस्टिंग स्पीड ने पैदल चलना शुरू किया है, और एक दिन में अब जाकर करीब एक हजार लोगों का टेस्ट हो पा रहा है. यही नहीं इनमें से कई ऐसे जिले हैं जहां सरकारी अस्पताल में वेंटिलेटर की सुविधा भी नहीं है.
नीतीश कुमार पहले ही कह चुके हैं कि दूसरे राज्यों या देशों से आए प्रवासियों में कोरोना का संक्रमण देखा गया है. बिहार के मुंगेर में 92, पटना में 39, नालंदा में 35, पोहतास में 31 और सीवान में 30 मामले हैं.
फिलहाल जमीनी सच्चाई यह है कि अगर 25 लाख लोग बिहार वापस आते हैं, तो उनकी जांच के लिए बिहार के पास ना तो पर्याप्त किट हैं और ना उन्हें रोजगार देने का कोई फॉर्मूला. इसलिए शायद बिहार सरकार अब तक केंद्र के कंधे पर रखकर अपना निशाना लगाती रही है. चाहे वो प्रवासी मजदूरों को वापस लाना हो या लॉकडाउन खोलने का फैसला. लेकिन अब केंद्र से मिली मंजूरी के बाद उन्हें कमान अपने हाथ में लेनी होगी और लोगों की वापसी के लिए प्लान तैयार करना ही होगा. वहीं लॉकडाउन खोलने को लेकर उठे सवाल का जवाब मिलना भी अभी बाकी है.
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