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क्या हाल के दिनों में 'विपक्षी एकता' की कुछ खबरों के बीच यूपी और दूसरे राज्यों में महागठबंधन की गाड़ी पटरी से उतर गई है? यूपी में ये सवाल कुछ ज्यादा ही जोर पकड़ रहा है. दरअसल, 20 सितंबर को मायावती ने अचानक एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों के लिए चौंकाने वाले ऐलान कर डाले.
कांग्रेस से गठबंधन के जो तमाम कयास लगाए जा रहे थे, उस पर ताला लगाकर बीएसपी ने छत्तीसगढ़ में अजित जोगी की पार्टी से गठबंधन कर लिया. साथ ही पार्टी ने मध्य प्रदेश में 22 उम्मीदवार उतारने का ऐलान कर दिया. अब इस बात की पड़ताल की जा रही है कि आखिर झटका किसने, किसको दिया?
बीएसपी के वरिष्ठ नेता सुधींद्र भदौरिया क्विंट हिंदी से कहते हैं कि ये झटके वाली बात ही नहीं है. ये 'सम्मानजनक सीटों' का मामला है, जैसा मायावती कहती आई हैं. भदौरिया कहते हैं कि हर बार पार्टी ही 'त्याग' नहीं कर सकती, जो लोग गठबंधन की इच्छा रखते हैं, उन्हें भी ये बात समझ में आनी चाहिए.
यूपी उपचुनाव का जिक्र करते हुए बीएसपी के वरिष्ठ नेता ने कहा कि उपचुनावों में विपक्षी गठबंधन को जीत मिली थी, उनकी पार्टी ने अपने उम्मीदवार खड़े नहीं किए थे, साथ ही बीएसपी ने गठबंधन को भी समर्थन दिया था.
छत्तीसगढ़ में गठबंधन के ऐलान से ठीक पहले मायावती कांग्रेस पर पर बिफर चुकी हैं. पेट्रोल-डीजल की कीमतों को लेकर न सिर्फ उन्होंने सत्ताधारी बीजेपी को लताड़ा, बल्कि कांग्रेस को भी इसका 'गुनाहगार' बता डाला. मायावती ने बीजेपी-कांग्रेस को एक ही थाली का चट्टा-बट्टा करार दे दिया. इससे ये तो साफ है कि अंदरखाने कांग्रेस और बीएसपी के बीच खाई पटती नहीं, बल्कि गहराती दिख रही है.
सुधींद्र भदौरिया इस नाराजगी के बारे में तो कुछ नहीं कहते, लेकिन उदाहरण जरूर गिनाते हैं. उनका कहना है:
सुधींद्र भदौरिया ने कहा, ''इस बार भी सम्मानजनक सीटों की बात तो थी ही, लेकिन मुझे नहीं लगता कि दूसरी तरफ से भी उतनी कोशिश की गई.''
कर्नाटक में इस साल हुए चुनाव में बीएसपी ने 18 सीटों पर चुनाव लड़ा था और एक सीट पर जीत हासिल की थी.
बीएसपी के इस कदम के बाद सवाल ये भी है कि जिस महागठबंधन की बात अक्सर एसपी अध्यक्ष अखिलेश यादव करते आ रहे हैं, और इसको लेकर काफी उत्सुक दिख रहे हैं, वो बन भी पाएगा या नहीं? इस सवाल पर सुधींद्र भदौरिया कहते हैं कि फिलहाल पार्टी का जो भी फैसला है, वो आगामी विधानसभा चुनाव के लिए है.
साल 2013 विधानसभा चुनाव में बीएसपी को 6 फीसदी से ज्यादा वोट हासिल हुआ था. 4 सीटों के साथ बीएसपी तीसरे नंबर की पार्टी रही. लेकिन इस बार माहौल अलग है. आप इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि पिछले 5 महीनों के दौरान पहले 2 अप्रैल को दलित संगठनों ने भारत बंद बुलाया, इसके बाद 6 सितंबर को सवर्ण जातियों ने SC-ST एक्ट के खिलाफ भारत बंद बुलाया.
दोनों ही 'बंद' का व्यापक असर मध्य प्रदेश में दिखा. 2 अप्रैल के दलित आंदोलन में राज्य में 6 लोगों की मौत हो गई थी. अब साफ है कि इन आंदोलनों का असर तो इन चुनाव में दिखना ही है. अगर दलित संगठन गोलबंद होते हैं, तो कांग्रेस के साथ ही साथ बीएसपी भी उनके लिए छोटा, मगर विकल्प तो होगी ही. कमोबेश यही हाल छत्तीसगढ़ में भी होने वाला है.
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