advertisement
2019 में हुए लोकसभा चुनावों के दौरान ईवीएम से हुई वोटिंग और वोटों की गिनती के आंकड़ों में विसंगतियां बताता द क्विन्ट का एक लेख 31 मई को पब्लिश हुआ था. इस पर चुनाव आयोग ने 1 जून को अपने वेबसाइट पर एक प्रेस रिलीज जारी किया है. इसमें द क्विन्ट के लेख का खंडन नहीं है, बल्कि सामान्य ब्योरा है कि किस तरह आयोग, चुनाव के दौरान ईवीएम में डाले गये वोटों का संग्रह करता है. जब हमने चुनाव आयोग के प्रेस रिलीज की जांच की, तो हमने पाया कि इसमें दी गई कई सूचनाएं विश्वसनीय नहीं हैं.
चुनाव आयोग ने प्रेस रिलीज में कहा, “2014 में चुनाव नतीजों की घोषणा के बाद ऐसे आंकड़ों को जुटाने और मिलान करने में 2 से 3 महीने लगे थे ताकि उन्हें प्रामाणिक रूप से रखा जा सके.”
जब हमने जांच की तो पाया कि चुनाव आयोग की वेबसाइट पर 25 मई 2014 को ईवीएम में डाले गए वोटों के आंकड़े मौजूद थे जबकि चुनाव नतीजों की घोषणा 16 मई 2014 को हुई थी. इस तरह यह 9 दिनों का फर्क है न कि 2-3 महीने का फर्क!
इससे पहले 2014 में चुनाव आयोग का पता था eci.nic.in. बाद में यह बदल कर eci.gov.in हो गया. अब यही वेबसाइट का पता है. चूंकि हम पुरानी वेबसाइट नहीं खोल सकते, इसलिए हमने archives के जरिए दस्तावेजों तक पहुंचने की कोशिश की.
हमने पाया कि 25 मई 2014 को चुनाव आयोग की पुरानी वेबसाइट से आंकड़ों का एक सेट आर्काइव हुआ था जिसमें कहा गया था, ‘ Parliamentary Constituency wise Turnout for General Election - 2014.’ चूंकि ये आंकड़े 25 मई को आर्काइव हुए थे, इसलिए ऐसा लगता है कि चुनाव आयोग ने इस तारीख से पहले ही यह डाटा अपलोड किया था यानी 9 दिनों के भीतर यह अपलोड हो चुका था.
जब हमने लोकसभा चुनाव 2014 के 25 मई के वोटर टर्न आउट डाटा का चुनाव आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध वोटर टर्न आउट डाटा से मिलान किया, तो पाया कि दोनों आंकड़ों के सेट में कोई अंतर नहीं है.
इससे यह बात साबित होती है कि 2014 के लोकसभा चुनावों में चुनाव आयोग ने 25 मई से पहले जो वोटर टर्न आउट डाटा अपलोड किया, उसमें आगे चलकर कोई बदलाव नहीं हुआ.
बात केवल इतनी नहीं है कि इस चुनाव में उम्मीदवारों के साथ-साथ आम लोगों के लिए तुरंत वोटर टर्नआउट डाटा उपलब्ध कराया गया, बल्कि चुनाव आयोग एक एप लेकर भी आया, जिसे चुनाव ड्यूटी के दौरान रिटर्निंग ऑफिसर के द्वारा अपडेट किया गया.
क्या आपको पता है कि ईवीएम में दो बटन होते हैं, जिनमें ईवीएम वोट का रिकॉर्ड होता है? - रिजल्ट बटन और टोटल बटन.
ईवीएम मशीन का यह महत्वपूर्ण फीचर है जिससे चुनाव ड्यूटी पर तैनात अफसर को मदद मिलती है कि वह मतदान के बाद ईवीएम में डाले गये वोटों की संख्या का रिकॉर्ड रखे.
इतना ही नहीं, ये पीठासीन अधिकारी की जिम्मेदारी होती है कि वह मतदान के दिन हर दो घंटे पर वोटर टर्नआउट को रिकॉर्ड करे और अपने वरिष्ठ अधिकारी को इसकी सूचना दें. और, मतदान का दिन बीत जाने पर पीठासीन अधिकारी ईवीएम में डाले गये वोटों के आंकड़े को फॉर्म 17सी में रिकॉर्ड करते हैं और उस पर सभी पोलिंग एजेंट के हस्ताक्षर लेते हैं.
डाले गये वोटों की संख्या को रिकॉर्ड करने की प्रक्रिया बारीकी से की जाती है क्योंकि गिनती के दिन डाले गये वोटों का गिने गये वोटों के साथ मिलान किया जाता है. और अगर इन दोनों आंकड़ों के सेट में कोई अंतर पाया जाता है तो यह चुनाव अधिकारी की जिम्मेदारी हो जाती है कि वह इसे काउन्टिंग एजेंट्स को इसकी सूचना दें.
अब चुनाव आयोग खुद स्पष्टीकरण दे रहा है कि ईवीएम में डाले गये आंकड़े रिकॉर्ड में हैं और उन्हें चुनाव आयोग की वेबसाइट और एप में ड्यूटी पर तैनात अफसर की ओर से मतदान के दिन साझा किया गया है.
सवाल ये है कि लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजे घोषित हुए दो हफ्ते से अधिक हो चुके हैं, फिर भी चुनाव आयोग क्यों मतदान से जुड़े ‘अस्थायी और अनुमानित’ आंकड़े अपलोड कर रहा है? आंकड़ों के संग्रह में वे इतना समय क्यों ले रहे हैं?
पहले चार चरण के अंतिम वोटर टर्न आउट डाटा को द क्विन्ट ने 11 मई को डाउनलोड किया था. इसका मतलब ये है कि चुनाव आयोग ने निश्चित रूप से इन आंकड़ों को इस तारीख से पहले अपलोड किया होगा.
ये विस्तृत आंकड़े थे और राज्यवार हरेक संसदीय निर्वाचन क्षेत्र में पहले, दूसरे, तीसरे और चौथे चरण में डाले गये वोटों की संख्या दिखा रहे थे.
ऊपर दिए गए आंकड़ों में चुनाव आयोग ने 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव के आंकड़ों से तुलना करते हुए ईवीएम में हुए मतदान के आंकड़ों को हरेक संसदीय निर्वाचन क्षेत्र के हिसाब से रखा.
इस तरह इन आंकड़ों के आधार पर द क्विन्ट ने चुनाव नतीजे आ जाने के बाद एक आर्टिकल पब्लिश किया जिसमें हरेक लोकसभा सीट पर गिने गये वोट और डाले गये वोटों की तुलना थी.
22 मई को चुनाव आयोग ने आंकड़ों का एक और सेट अपलोड किया जिसमें कहा गया, “फाइनल वोटर टर्न आउट ऑफ फेज 1 टू 7.” लेकिन इस आंकड़े में हर चरण में हर राज्य में डाले गये वोट कम हो गये.
मीडिया में कई रिपोर्ट आने के बाद चुनाव आयोग ने 22 मई तक यह शीर्षक जारी रखा, ‘फाइनल वोटर टर्नआउट ऑफ फेज 1 टु 7’, लेकिन नीचे में एक पंक्ति जोड़ दी- “प्रोविजनल एस्टीमेटेड डाटा.”
लोकसभा क्षेत्र-वार विस्तृत और पारदर्शी आंकड़ा उपलब्ध कराने के बजाए चुनाव आयोग ने सभी चरणों के लिए हरेक राज्य के हिसाब से एक संगठित संख्या/ प्रतिशत आंकड़ा अपलोड कर दिया है. ऊपर के स्क्रीनशॉट में आप देख सकते हैं कि चुनाव आयोग कह रहा है, “मतदान के दिन डाले गये चरणवार वोटों के आंकड़े बदल गये हैं और निश्चित प्रक्रिया के अनुरूप आधिकारिक दस्तावेजों में दर्ज आंकड़े डाले गये हैं.” इससे साफ पता चलता है कि यह अंतिम आंकड़ा है.
लेकिन जब हम आंकड़े को डाउनलोड करते हैं तब भी यह इसे ‘प्रोविजनल’ बताता है जैसा कि आप नीचे देख सकते हैं.
संसदीय निर्वाचन स्तर के आंकड़ों को जोड़कर ही संगठित आंकड़ा तैयार किया जा सकता है. फिर चुनाव आयोग ने लोकसभा क्षेत्र-वार अलग-अलग आंकड़ों के बजाए राज्य-वार संगठित आंकड़ा अपलोड करने का विकल्प क्यों चुना?
हमने लेख में ऊपर लिखे सभी सवालों को चुनाव आयोग से लिखित में पूछा है. उनका जवाब मिलने पर हम आर्टिकल को अपडेट करेंगे.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)