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कोरोना वायरस से लड़ने में देश का एक राज्य ‘मध्य प्रदेश’ चुनौती बनकर खड़ा हुआ है. पहले कुछ आंकड़ों पर नजर डालिए-
मध्य प्रदेश में कुल संक्रमित केसों में से सिर्फ इंदौर शहर में ही आधे केस सामने आए हैं. 11 अप्रैल को जारी किए गए डाटा के मुताबिक 529 पॉजिटिव केसों में से 281 केस इंदौर में पाए गए हैं और ये 50% से ज्यादा है. प्रदेश में जान गंवाने वालों में से एक तिहाई लोग इंदौर से ही हैं. इंदौर का फेटेलिटी रेट करीब 10% है जो कि बहुत ही ज्यादा है. इंदौर में कोरोना वायरस की वजह से 11 अप्रैल तक 30 मौतें हो चुकीं हैं.
. इसके अलावा जबलपुर, शिवपुरी, ग्वालियर, छिंदवाड़ा, बैतुल, श्योपुर, होशंगाबाद, रायसेन, खंडवा, देवास, और शाजापुर जिलों में कोरोना के पॉजिटिव केस मिले हैं.
इंदौर के अलावा उज्जैन और खरगोन में भी फेटेलिटी रेट काफी ज्यादा है. उज्जैन में 33% और खरगोन 14% में फेटेलिटी रेट है. मध्य प्रदेश में होने वाली कुल मौतों में से 90 प्रतिशत मौतें इंदौर और उसके पड़ौसी जिले उज्जैन में हुई हैं. चिंता की बात ये है कि इंदौर में जो लोग पॉजिटिव पाए गए हैं उनमें से 2 डॉक्टर हैं. ये साफ दिखाता है कि डॉक्टरों ने कोरोना से बचाव के लिए जरूरी सावधानियां नहीं बरती थीं या उनके पास जरूरी चीजें नहीं थीं.
इसके अलावा इंदौर में कोरोना पॉजिटिव केसों का बड़ा हिस्सा वो लोग हैं जिन्होंने कोरोना से संक्रमित व्यक्ति के दाह संस्कार में हिस्सा लिया. रिपोर्ट्स के मुताबिक- ‘जिन लोगों की शुरू में मौत हुई उनमें से कई लोगों को शुरु में कोई लक्षण नहीं दिखे और उन्होंने हॉस्पिटल में एडमिट होने में देर कर दी. तब तक कोरोना वायरस का संक्रमण बढ़ चुका था. स्थानीय लोगों ने इस बीमारी केे लक्षण को गंभीरता से नहीं लिया.’
मध्य प्रदेश में एक और चिंतित करने वाली खबर आई है कि सरकारी महकमे के कई अफसरों को कोरोना वायरस ने अपना शिकार बनाया है. प्रदेश के स्वास्थ्य महकमे के कम से कम 3 बड़े अफसर अप्रैल के पहले हफ्ते में कोरोना पॉजिटिव पाए गए. एक अफसर पर कोविड-19 की जांच से बचने के भी आरोप लगे.
चूंकि मध्य प्रदेश में स्वास्थ्य मंत्री नहीं हैं इसलिए ये अधिकारी ही प्रदेश में कोरोना वायरस से लड़ाई का नेतृत्व कर रहे हैं. उच्च पदस्थ अधिकारियों के कोरोना पॉजिटिव होने की वजह से राज्य में स्वास्थ्य व्यवस्था पर चोट लगी है. इन अधिकारियों ने कोरोना वायरस से जुड़ी हर बैठक में हिस्सा भी लिया था. एक रिपोर्ट के मुताबिक भोपाल से आए कुल पॉजिटिव केसों में से करीब 50% केस सरकारी महकमे से जुड़े हैं. स्वास्थ्य अधिकारी और पुलिस जो कि फ्रंट पर रहकर कोरोना वायरस से लड़ाई लड़ रहे हैं, ये राज्य में सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं.
कांग्रेस जो कि अब सरकार से बाहर है और मुख्य विपक्षी पार्टी है उसने आरोप लगाया है कि प्रदेश की वर्तमान सरकार कोरोना वायरस से लड़ने के लिए गंभीर नहीं दिख रही.
इसके अलावा बीजेपी की इस बात को लेकर भी आलोचना हो रही है कि राज्य में सत्ता में आने के बाद राज्य में उसने जो उत्सव मनाए उसमें भी सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान नहीं रखा गया. अगर मध्य प्रदेश सरकार का यही रवैया रहेगा तो शिवराज सिंह चौहान से कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई को लेकर तो सवाल पूछे ही जाएंगे लेकिन ये भी पूछा जाएगा कि प्रदेश में 15 साल सरकार में रहने के बावजूद उन्होंने प्रदेश के हेल्थ सिस्टम को मजबूत क्यों नहीं बनाया.
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