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"मुझ पर थूकने और पेशाब करने के बाद, पीटने वाले लोगों में से एक ने कहा कि हमारी औकात यही है- थूक और पेशाब के बराबर," अपने साथ हुई बर्बरता को याद करते हुए 21 वर्षीय शुभम मघाडे (21) क्विंट हिंदी से ऐसा कहते हैं. 25 अगस्त की शाम 6 लोगों ने हाथ-पैर बांधकर उन्हें पेड़ से उल्टा लटका दिया और काफी समय तक पीटते रहे थे.
शुभम की पिटाई का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और लोग इस घटना के खिलाफ गुस्से से भर गए. महाराष्ट्र (Maharashtra) के अहमदनगर जिले के हरेगांव गांव में एक खेत से तीन कबूतर और एक बकरी चुराने के शक में चार लोगों को पीटा गया था. शुभम उन्हीं में से एक हैं.
श्रीरामपुर शहर के साखर कामगार अस्पताल में अपना इलाज करवा रहे शुभम केबल की तारों से पिटाई के बाद ठीक से चल भी नहीं पा रहे हैं. उनके पैरों में चोट आई है. चोट के चलते वो ठीक से खाना भी नहीं खा पा रहे.
शुभम ने अस्पताल से ही फोन पर क्विंट हिंदी से बात करते हुए कहा, " सबने शराब पी रखी थी. दो लोगों ने मुझे पकड़ रखा था और बाकी लोग गाली दे रहे थे, मार रहे थे. वे बहुत सारे थे, मैं अकेला. वे कुछ भी सुनने की हालत में नहीं थे. मैं इतना अपमानित महसूस कर रहा था कि मरना चाहता था."
डॉक्टर उसकी हालत देखने आए और फोन कट गया, लेकिन इतनी देर में शुभम और सुमनबाई ने इस भयानक घटना के बारे में सब कुछ बताया.
25 अगस्त की शाम को शुभम को उसके ही घर में दो आरोपियों ने अनजाने में पकड़ लिया.
शुभम ने कहा, "शाम 5:00 बजे के आसपास, राजू बोर्गे और पप्पू पारखे जो गलांडे परिवार के लिए हेल्पर के रूप में काम करते हैं, मेरे घर आए और कहा कि उन्हें मुझसे कुछ बात करनी है. उन्होंने कहा कि वे मुझे पांच मिनट में घर वापस छोड़ देंगे. जब मैं गलांडे के घर पहुंचा तो वहां पांच-छह लोग शराब पी रहे थे. जैसे ही मैं बाइक से उतरा, उन्होंने मुझे पीटना शुरू कर दिया. मैंने उनसे कारण पूछा लेकिन उन्होंने पहले कुछ नहीं कहा.''
"फिर उन्होंने मेरे कपड़े उतरवा दिए और फिर से पीटना शुरू कर दिया. उन्होंने कहा कि मैंने तीन कबूतर और एक बकरी चुराई है. मैंने उन्हें बताया कि उनके घर के चारों ओर CCTV कैमरे हैं और वे देख सकते हैं कि मैंने चुराया है या नहीं. मैंने उन्हें बताया कि मैंने ऐसा किया है."
काफी देर तक जब शुभम गलांडे के घर से नहीं लौटा तो उसके दोस्त दीपक को शक हुआ और वो उसकी तलाश में निकल गया.
शुभम ने कहा, "दीपक ने उनसे मुझे जाने देने के लिए कहा, लेकिन वे नहीं माने. वे गांव के पाटिल हैं, उन्होंने हमेशा हक से काम किया. उन्होंने दीपक को भी मारा और घर से बाहर निकाल दिया. दीपक ने चुपचाप एक वीडियो बनाना और एक गांव के ही आदमी नाना खरात को दिखाया."
माता-पिता की मौत के बाद, 17 साल से दादी सुमनबाई ही शुभम की इकलौती अभिभावक हैं. वो फिलहाल कुछ घरों में काम करने के साथ-साथ 100 रुपये की दैनिक मजदूरी पर एक खेत में काम करती हैं.
सुमनबाई ने कहा, "मैं शाम करीब 6:00 बजे काम से आई. मुझे नहीं पता था कि वो कहां है. हमेशा की तरह, मैंने खाना बनाना शुरू किया, पूरे परिवार के लिए चिकन और भाकरी बनाई. शुभम का बड़ा भाई अक्षय भी घर पर था, उसे भी कोई जानकारी नहीं थी. इसके बाद करात ने अक्षय को अपनी दुकान पर बुलाया और उन्हें वीडियो दिखाया. अक्षय तुरंत मामला दर्ज करना चाहता था."
उन्होंने रोते हुए कहा, "पहले उसे घर वापस लेकर आए. उन्होंने उस पर थूका और पेशाब किया था. हमने पहले उसे नहलाया और अस्पताल ले गए. अस्पताल में ही शुभम ने हमें सब कुछ विस्तार से बताया. अगर मैं घर पर होती तो कभी ऐसा नहीं होने देती. मैंने शोर मचाकर लोगों को इकट्ठा किया होता और उसे बचा लेती.''
शुभम को पीटने के पहले, छह आरोपियों ने कथित तौर पर तीन नाबालिग बच्चों को उठाया और कबूतर और बकरी चुराने के संदेह में उन्हें कई घंटों तक पीटा. इनमें से दो दलित हैं तो एक दूसरी जाति से है.
सुमनबाई ने कहा, "उनमें से एक लड़के की मां उसके पीछे-पीछे वहां आ गई थी. उन्होंने आरोपियों से उसे नहीं पीटने की विनती की और कहती रहीं कि उसका बेटा निर्दोष है, लेकिन उन्होंने उसके साथ दुर्व्यवहार किया और घर से भी बाहर निकाल दिया."
उन्होंने आगे कहा, "एक और महिला के बेटे को ले जाया गया था. उसने आरोपी से कहा कि अगर उसने कुछ भी चुराया है, तो वो उन्हें उसकी कीमत चुका देगी. वो उनके पैरों पर गिर गई और अपने बेटे को जाने देने की भीख मांगने लगी." वो कहती हैं,
खबर लिखे जाने तक सभी छह आरोपियों को श्रीरामपुर पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है. छह आरोपियों - युवराज गलांडे, मनोज बोडखे, पप्पू पारखे, दीपक गायकवाड़, दुर्गेश वैद्य और राजू बोर्गे के खिलाफ FIR दर्ज की गई है. पुलिस ने बाद में युवराज के पिता नाना गलांडे पर भी आरोपों में शामिल किया है.
स्थानीय वंचित बहुजन अघाड़ी (VBA) नेता चरण त्रिभुवन ने परिवारों को FIR दर्ज कराने में मदद की. हालांकि, सुमनबाई को अपने पोते-पोतियों की जान का डर है और वह पुलिस सुरक्षा की मांग कर रही हैं
सुमनबाई कहती हैं, "अपने बेटे और बहू को खोने के बाद मेरी जीने की कोई इच्छा नहीं थी, लेकिन मैंने केवल दो बच्चों के लिए जीने का फैसला किया. हमें न्याय के अलावा कुछ नहीं चाहिए. उनके माता-पिता की मौत हुए कई साल हो गए हैं. मैं केवल दो बच्चों को पढ़ाने के लिए कड़ी मेहनत कर रही हूं. अगर मेरे पोते ने कुछ भी गलत किया है, तो क्या उन्हें पहले हमें या सरपंच को नहीं बताना चाहिए था? क्या वे जब चाहें किसी को भी पीटना शुरू कर देंगे?"
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