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मकर संक्रांति पर बुदेलखंड में लगता है प्रेमी-प्रेमिका मेला,सदियों पुरानी मान्यता

Makar Sankranti मेला: बुंदेलखंड में ये जगह आशिकों के लिए किसी इबादतगाह से कम नहीं.

क्विंट हिंदी
भारत
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<div class="paragraphs"><p>बुंदेलखंड की खास मकर संक्रांति, दुर्ग में आशिकों का मेला, 600 साल पुरानी मान्यता</p></div>
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बुंदेलखंड की खास मकर संक्रांति, दुर्ग में आशिकों का मेला, 600 साल पुरानी मान्यता

(फोटो: क्विंट हिंदी)

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मकर संक्रांति (Makar Sankranti) का पर्व यूं तो देश के हर हिस्से में मनाया जाता है, लेकिन बुंदेलखंड (Bundelkhand) के बांदा में मनाई जाने वाली मकर संक्रांति कुछ खास है. इस मौके पर यहां केन नदी के किनारे भूरागढ़ दुर्ग में आशिकों का मेला लगता है, जिसमें हजारों लोग आते हैं.

प्रेम को पाने की चाहत में अपने प्राणों की बलि देने वाले नट महाबली के प्रेम मंदिर में मकर संक्रांति के दिन हजारों जोड़े विधिवत पूजा-अर्चना कर प्रसाद चढ़ाते हैं और मन्नत मानते हैं.

लोगों की आस्था का केंद्र ये मंदिर भूरागढ़ दुर्ग के ठीक नीचे, प्राचीर की नींव पर मौजूद है. ये नट महाबली का मंदिर है. लोगों की मान्यता है कि यहां आने वालों की मन्नत पूरी होती है.

मकर संक्रांति के मौके पर बुंदेलखंड के बांदा में लगने वाला मेला

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इस मंदिर में विराजमान नटबाबा भले इतिहास में दर्ज न हों, लेकिन बुंदेलियों के दिलों में नटबाबा के बलिदान की अमिट छाप है. ये जगह आशिकों के लिए किसी इबादतगाह से कम नहीं. मकर संक्रांति के मौके पर शादीशुदा जोड़े यहां आशीर्वाद लेने आते हैं, तो सैंकड़ो प्रेमी-प्रेमिकाएं अपने मनपसंद साथी के लिए यहां मन्नत मांगते हैं.

प्रेमी जोड़े की कुर्बानी से जुड़ी है मान्यता

मान्यता है कि 600 साल पहले महोबा जनपद के सुगिरा के रहने वाले नोने अर्जुन सिंह भूरागढ़ किले के किलेदार थे. यहां से कुछ दूर मध्यप्रदेश के सरबई गांव में रहने वाला एक नट जाति का 21 साल का युवा बीरन किले में ही नौकर था. किलेदार की बेटी को इसी नट बीरन से प्यार हो गया और उसने अपने पिता से इसी नट से विवाह की जिद की, लेकिन किलेदार नोने अर्जुन सिंह ने बेटी के सामने शर्त रखी कि अगर बीरन बांबेश्वर पर्वत से किले तक सूत (कच्चा धागे की रस्सी) पर चढ़कर नदी पार कर ले और किले तक आ जाए तो उसकी शादी राजकुमारी से कर दी जाएगी.

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भूरागढ़ दुर्ग के प्राचीर की नींव पर मौजूद नट महाबली मंदिर

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प्रेमी नट ने ये शर्त स्वीकार कर ली और खास मकर संक्रांति के दिन सूत पर चढ़कर किले तक जाने लगा. उसने सूत पर चलते हुए नदी पार कर ली, लेकिन जैसे ही वो भूरागढ़ दुर्ग के पास पहुंचा तो अर्जुन सिंह ने किले की दीवार से बंधे सूत को काट दिया और नट बीरन ऊंचाई से चट्टानों में गिर गया. उसकी वहीं मौत हो गयी.

किले की खिड़की से किलेदार की बेटी ने जब अपने प्रेमी की मौत देखी तो वह भी किले से कूद गयी और उसी चट्टान पर उसकी भी मौत हो गयी. किले के नीचे ही दोनों प्रेमी युगल की समाधि बना दी गयी जो बाद में मंदिर में बदल गयी. आज ये नट महाबली का सिद्ध मंदिर माना जाता है.

(इनपुट-मनोज कुमार)

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