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देवभूमि डेवलपर्स उपन्यास में नायक और नायिका अपने-अपने सफर पर निकलते हैं, उनका ये सफर बाद में एक बन जाता है. नायक नायिका के इस सफर को 'दावानल' उपन्यास के लिए मशहूर लेखक नवीन जोशी (Navin Joshi) ने उत्तराखंड (Uttarakhand) के पिछले कुछ सालों में महत्वपूर्ण रहे जनांदोलनों के साथ जोड़ते हुए लिखा है. लेखक इस किताब को लिखते हुए उत्तराखंड के राजनीतिक और सामाजिक ढांचे पर भी पाठकों की समझ बनाने में कामयाब रहे हैं.
'लपूझन्ना' के लेखक अशोक पांडे द्वारा खींचा गया चित्र इस किताब का आवरण चित्र है. बर्फ से लदे हिमालय, रोलर, सड़क और बच्चे के साथ साधारण कपड़ों में खड़ी महिला को देख कर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि किताब हिमालय के साथ हो रही छेड़छाड़ और पहाड़ों में रहने वाले लोगों के कठिन जीवन पर लिखी गई है.
'कूच करो भई कूच करो' इस किताब का पहला भाग है, जो हमें साल 1984 के उत्तराखंड में पहुंचा देता है. लेखक द्वारा यह किताब बहुत ही आसान भाषा में लिखी गई है, जिसकी वजह से पाठक किताब की शुरुआत में इसे पढ़ने में रुचि लेने लगते हैं.
शराब के विरुद्ध आंदोलनों के दौर के साथ दुनिया भर में मशहूर चिपको आंदोलन पर लिखते हुए लेखक अपनी कहानी के मुख्य पात्र पुष्कर से पाठकों का परिचय कराते हैं. कहानी पढ़ते हुए आपकी समझ में आने लगेगा कि इसमें शामिल बहुत से पात्र और घटनाएं वास्तविक हैं.
किताब के दूसरे भाग में पुष्कर की पत्नी कविता के जरिए हम सच्चे और अच्छे पत्रकार के गुण जान सकते हैं. कविता के जरिए लेखक ने पत्रकारिता के छात्रों को बहुत सारी सीखें देने की कोशिश करी है.
'बहुत सुंदर है हमारा गांव. कविता की नजरें हिमालय के शिखरों पर टिकी थी. काश,जीवन भी सुंदर होता. पुष्कर ने आह भरी' यह पंक्ति पहाड़ में रहने वाले लोगों के द्वारा उठाए जा रहे कष्टों की तरफ इशारा करती है.
इस भाग को आगे पढ़ते हुए हमें पहाड़ों में पिनालु का साग उगाने और मधुमक्खी पालन जैसे स्वरोजगारों के बारे में जानकारी मिलती है.
इस किताब में अन्य कई जगह भी उत्तराखंड में व्याप्त जातिवाद के कारणों को गहराई से समझाया गया है, पुष्कर का जातिवाद के खिलाफ आवाज उठाना कहानी का सबसे जरूरी हिस्सा भी जान पड़ता है.
यह उत्तराखंड के निर्भीक पत्रकार उमेश डोभाल के बारे में बहुत सी जानकारी देता है. यहां पर उत्तराखंड में जल-जंगल-जमीन के लिए सालों से लड़ रहे लोगों के आपसी सम्बन्धों के बारे में भी लिखा है. टिहरी बांध बनने से रोकने के लिए चले संघर्ष और उस संघर्ष की नाकामी पर लेखक ने यहां बहुत कुछ लिखा है.
'राजधानी से राज्य छुड़ाकर लाना है' इस रोचक उपन्यास का अगला भाग है और इस भाग में शराब से पहाड़ के जीवन पर पड़ते बुरे असर की शुरुआत को सामने लाया गया है. खटीमा, मसूरी गोलीकांड के समय में मीडिया की क्या भूमिका रही थी, किताब पढ़ते हमें इसकी जानकारी भी मिलती जाती है.
'शांत हिमालय धधक रहा है' किताब का पांचवा भाग है और इसे पढ़ते कहानी के समय में उत्तराखंड को लेकर चल रही फेक न्यूज बनाम 'समाचार' के बारे में जानकारी मिलती है. समाचार द्वारा साल 1994 में जनता तक सही खबरें पहुंचाए जाने का तरीका पढ़ने योग्य है.
मैदान से पहाड़ जाने के दौरान बदलती दशा को सामने लाने के लिए किताब की यह पंक्ति 'हल्द्वानी से आगे पहाड़ चढ़ने पर प्राकृतिक दृश्य ही नही बदलता, आबादी की संरचना और हालात भी बहुत बदल जाते हैं' महत्वपूर्ण है.
किताब के इस भाग में अतुल शर्मा और नरेंद्र सिंह नेगी जैसे जन कवियों की कविताओं के साथ ही उत्तराखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था, राजनीति के बारे में भी लिखा गया है.
अगला भाग आपको उत्तराखंड राज्य गठन के आसपास वाले समय में पहुंचा देता है और इसकी शुरुआत पुष्कर द्वारा नए राज्य को लेकर बुने गए सपनों के टूटने से शुरू होती है.
उत्तराखंड गठन के दिन को लेखक ने बड़े बेहतरीन तरीके से लिखा है. इसे पढ़ते नायक की उधेड़बुन पाठक को खुद की उधेड़बुन महसूस होने लगती है.
पृष्ठ संख्या 205 में लिखी हुई पंक्ति 'कुंदन को अफसोस हुआ कि वह लखनऊ में उत्तराखण्डियों को सस्ते प्लॉट दिखाने में इतना व्यस्त रहा कि अपनी मातृभूमि की ओर उसका ध्यान ही नही गया' उत्तराखंड में भूमाफियाओं के कब्जे की शुरुआती दिनों की स्थिति दर्शाती है.
किताब में लेखक ने उत्तराखंड से पलायन करने के नुकसान और पलायन रोकने के समाधान को भी बड़े ही रोचक तरीके से लिखा है. 'श्याम दत्त जी के लिए सबसे पीड़ादायक अपने बैल से बिछड़ना रहा। उनसे अपने कान खुजलाए बिना वह गोठ में बंधता न था' पंक्ति को पलायन झेलने वाला ही समझ सकता है.
पृष्ठ संख्या 227 और 228 में गैरसैंण राजधानी आंदोलन की घटना को इस तरह से लिखा गया है ,मानों वह सब आंखों के सामने ही घटित हो रहा हो.
अगले भाग 'विकास अर्थात ट्रिकल डाउन इकोनॉमी' में कहानी डाम से जूझते हुए उत्तराखंड पर पहुंचती है और फिर त्रेपन सिंह चौहान द्वारा चलाए गए फलेण्डा आंदोलन पर लिखा गया है.
लेखक नवीन जोशी ने इस उपन्यास के जरिए पाठकों को अपने लोगों और उनके साथ अपनी धरती से जो प्रेम करने की सीख दी है, उसके लिए यह उपन्यास खरीदना आवश्यक है.
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