वैसे तो उत्तराखंड (Uttarakhand) अपनी खूबसूरत वादियों के लिए मशहूर है. उत्तराखंड के कई जिले ऐसे हैं, जहां सैकड़ों सैलानी छुट्टी मनाने पहुंचते हैं. देश के महानगरों में रहने वाले लोगों को साफ हवा नसीब नहीं हो रही. ऊंची-ऊंची इमारतों के बीच लोग खुले आसमान की तलाश कर रहे हैं ऐसे में आप अगर प्रकृति के सौंदर्य का दीदार करना चाहते हैं तो उत्तराखंड बिल्कुल मुफीद जगह है. यहां बहुत सी ऐसी जगहें हैं जहां पर मानवीय गतिविधियां बहुत ही कम हैं. कई ऐसी जगहें भी हैं जो अभी भी लोगों की नजरों से दूर लेकिन बेहद खूबसूरत हैं, जहां आप अच्छा वक्त बिता सकते हैं. तो चलिए ऐसी ही जगह आपको बताते हैं. जहां आप जाने की तैयारी कर सकते हैं.
उत्तराखंड राज्य के उत्तरकाशी जिले में स्थित गिडारा बुग्याल (Gidara Bugyal) अपनी खूबसूरती के लिए बेशक दुनिया की नजरों से दूर है, लेकिन जो भी यहां गया यहीं रहने की सोचने लगा. समुद्रतल से लगभग साढ़े तीन हजार मीटर की ऊँचाई वाले बुग्याल में जहाँ तक नजरें जाती हैं, वहां तक मखमली हरी घास के मैदान नजर आते हैं. यहाँ पर पर्वत श्रृंखलाएं (Mountain range), कलकल करती नदियां, ऊंचे पहाड़ों से गिरती पानी की जलधाराओं से भरपूर नजारे हैं.
गिडारा बुग्याल तक कैसे पहुंचें?
उतरकाशी जनपद मुख्यालय से गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर गंगनाली तक जाना है, वहां से एक सड़क मंगेली गाँव के लिए जाती है, जो मुख्य सड़क से लगभग पाँच किलोमीटर है, वहाँ से दो किलोमीटर पैदल का ट्रैक कर मंगेली गाँव पहुँचा जाता है, इसके बाद यहाँ रात्री विश्राम कर अगले दिन लगभग 8 किलोमीटर चलकर गिडारा बुग्याल पहुँचा जा सकता है.
यहाँ पर पहली कैंप साइट रिखोडा है जो घने जंगलों के बीच है जिसका ट्रैक है और दो किलोमीटर पर डोखरियाडी दूसरा विश्राम स्थल है. जो इस सफर की सारी थकावट को पल भर में दूर कर देता है. क्योंकि जब प्रकृति अपने पूरे श्रृंगार में होती है तो खुले आसमान के नीचे दूर दूर तक हिमाद्री, हरे घास के मैदानों से आँखें हटने का नाम नहीं लेती है.
तलोटिया नामक तीसरा अल्पविराम स्थल है क्योंकि पर्यटक जल्द से जल्द गिडोरो पहुँचना चाहते हैं ताकि सूर्य अस्त होने से पहले ही वे प्रकृति के यौवन को अपनी बाहों में भर सकें. आपको बता दें कि गिडोरा बुग्याल में कैंपिंग पूर्णतः प्रतिबंधित है.
क्या कहते हैं सैलानी
डॉक्टर प्राची जो बैंगलरू से हैं वे कहती हैं कि उत्तराखंड राज्य में आर्थिकी का एकमात्र साधन तीर्थाटन व पर्यटन है. फिर भी पर्यटन ने गति नहीं पकड़ी है. अंग्रेजों के बसाये नैनीताल (Nainital), मसूरी (Mussoorie) या देहरादून (Dehradun) ही प्रसिद्ध हैं जबकि राज्य की सरकार को यहां के स्थानीय लोगों को पर्यटन से जोड़कर रोजगार उपलब्ध कराना चाहिए. आज भी हम इन खूबसूरत बुग्याल से दूर हैं क्योंकि नेट पर ये नहीं है.
तो वहीं कोलकाता (Kolkata) से आये सुब्रतो कहते हैं कि हम हर साल उत्तराखंड आते हैं और तेरह जिलों में घूमे हैं. हमें ये धरती बार-बार बुलाती है मैं पहली बार अपने उत्तराखंड के यायावर मित्र के यात्रा वृतांत पढ़कर गिडोरा बुग्याल पहुँचा हूँ जिसे मैं ताउम्र नही भूल सकता हूँ.
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