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मणिपुर: FIR में 14 दिन क्यों लगे? बंगाल से तुलना सहित जांच पर SC में सवाल-जवाब

"मणिपुर की घटना को यह कहकर जस्टिफाई नहीं ठहरा सकते कि ऐसी घटना दूसरे राज्यों में भी हुई", SC में सवाल-जवाब

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भारत
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<div class="paragraphs"><p>Manipur violence Supreme Court hearing</p></div>
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Manipur violence Supreme Court hearing

(फोटो- Altered By Quint Hindi)

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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार, 31 जुलाई को मणिपुर (Manipur) में बीते तीन महीनों से जारी जातीय हिंसा पर सुनवाई की. मणिपुर में 2 महिलाओं को नग्न कर परेड कराए जाने के वायरल वीडियो का सुप्रीम कोर्ट ने 20 जुलाई को संज्ञान लिया था.

कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार से पूछा था कि अब तक आरोपियों को पकड़ने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं, साथ ही हिदायत भी दी थी कि अगर सरकार कार्रवाई नहीं करती तो कोर्ट करेगा. अब सुनवाई के दौरान कोर्ट ने और कई सवाल पूछे हैं.

मणिपुर के मुद्दे पर सुनवाई के दौरान किसने क्या कहा?

एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कोर्ट में कहा कि केंद्र सरकार ने 2 महिलाओं को नग्न परेड कराने के मामले को CBI को सौंप दिया है और वे मामले को असम भेजना चाहते हैं. हम दोनों का विरोध करते हैं.

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इसपर कहा कि हमने कभी असम नहीं कहा, हम खाली मामले को मणिपुर से बाहर भेजना चाहते हैं.

एडवोकेट इंदिरा जयसिंह ने हस्तक्षेपकर्ताओं की तरफ से कहा कि हस्तक्षेप के लिए काफी, सारी याचिकाएं हैं... सिर्फ यही 2 महिलाएं नहीं हैं जिनके साथ दुराचार हुआ है, बल्कि कई महिलाओं के साथ हुआ है.

CJI चंद्रचूड़ ने इसके बाद कई सवाल पूछे, उन्होंने अटॉर्नी जनरल से कहा कि ये मामला प्रकाश में आ गया इसलिए हमें आपसे और सॉलिसिटर जनरल से पूछना पड़ा, लेकिन ये महिलाओं के खिलाफ शोषण का इकलौता मामला नहीं है. कई और केस हैं, CJI ने कहा,

"हमें महिलाओं के खिलाफ हिंसा के व्यापक मुद्दे को देखने के लिए एक तंत्र भी बनाना होगा. इस तंत्र को देखना होगा कि ऐसे सभी मामलों पर ध्यान दिया जाए. हमें ये पूछना पडेगा कि 3 जुलाई के बाद से ऐसे कितने FIR फाइल किए गए हैं."

कपिल सिब्बल ने पुलिस पर उठाए सवाल

कपिल सिब्बल ने कहा कि तथ्यों से साफ जाहिर होता है कि जिन लोगों ने हिंसा की है पुलिस उनका सहयोग कर रही है. हलफनामे, 161 के तहत बयानों से पता चलता है कि जब उन्होंने (दोनों महिलाएं) पुलिस से उन्हें भीड़ से दूर ले जाने के लिए कहा तो पुलिस उन्हें भीड़ की तरफ ही ले गई.

कपिल सिब्बल ने पुलिस पर सवाल उठाते हुए कहा, "एक महिला के पति और भाई को मार दिया गया. उनके शव अभी तक नहीं मिले हैं. जीरो FIR 18 मई को दर्ज की गई, लेकिन जब कोर्ट ने इस मामले का संज्ञान लिया तब जाकर कुछ हुआ. तो हमें क्या भरोसा है?"

कपिल सिब्बल ने कहा कि ये इकलौता मामला बिल्कुल नहीं है. हम बस चाहते हैं कि एक स्वतंत्र एजेंसी मामले की जांच करे.

इसके बाद इंदिरा जयसिंह ने कहा कि केंद्र के स्टेटस रिपोर्ट के अनुसार, 595 FIR दर्ज की गई हैं, इनमें से कितने यौन हिंसा और कितने आगजनी, हत्या से संबंधित हैं, कोई स्पष्टता नहीं है. जहां तक रेप का सवाल है तो ,सर्वाइवर बाहर नहीं आते. वे इस बारे में बात नहीं करना चाहते. सबसे पहले उन्हें भरोसा दिलाना होगा.

इंदिरा जयसिंह ने एक हाई पावर्ड कमेटी बनाने की मांग की जिसमें सिविल सोसाइटी की महिलाओं को शामिल किया जाए, जिनके पास रेप सर्वाइवर के मामलों को देखने का अनुभव हो, क्योंकि CBI ने जांच शुरू भी कर दी तो क्या गारंटी है कि महिलाएं सामने आकर बताएंगी.

CJI चंद्रचूड़ ने इंदिरा जयसिंह की बात पर कहा कि अगर हम हाई पावर्ड कमेटी बना भी दें तो प्रक्रिया (गिरफ्तारी की) पूरी कैसे होगी? कौन करेगा? इस सवाल पर जयसिंह ने कहा कि प्रक्रिया लॉ इन्फोर्समेंट एजेंसी ही पूरी करेगी.

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वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंसाल्वेस ने कहा कि CBI पर भरोसा नहीं किया जा सकता, क्योंकि केंद्र सरकार ने मणिपुर पर आंखें मूंद रखी हैं.

अन्य राज्यों से भी हुई तुलना

एडवोकेट शोभा गुप्ता ने भी अपने सुझाव रखे और कहा, "विश्वास बहाली के उपायों के लिए एक SIT होनी चाहिए. पीड़ितों से मिलने और उनके प्रत्यक्ष बयान लेने के लिए SC की निगरानी में यहां से एक टीम भेजी जानी चाहिए. उसके आधार पर FIR पर गौर किया जाना चाहिए- हमने दिल्ली दंगों में भी किया था, ताकि पीड़ितों को पुलिस के पास न जाना पड़े." एडवोकेट गुप्ता ने लीगल सहायता दिए जाने और फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने का भी सुझाव दिया.

मणिपुर वायरल वीडियो मामले में एक वकील ने कहा कि इस तरह के मामले पश्चिम बंगाल और राजस्थान में भी सामने आए हैं. इसपर CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने वकील से कहा,

"निस्संदेह देश भर में महिलाओं के खिलाफ अपराध हो रहे हैं, यह हमारी सामाजिक वास्तविकता है. हम सांप्रदायिक संघर्ष में महिलाओं के खिलाफ अभूतपूर्व हिंसा से निपट रहे हैं. मणिपुर में जो कुछ हुआ उसे हम यह कहकर उचित नहीं ठहरा सकते कि ऐसा और कहीं भी हुआ. क्या आप कह रहे हैं कि सभी महिलाओं की रक्षा करें या किसी की भी रक्षा न करें?"

सुप्रीम कोर्ट के तीखे सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से तीखे सवाल पूछे, CJI चंद्रचूड़ ने सवाल उठाया कि जब घटना 4 मई को हुई तो FIR 18 मई को क्यों दर्ज की गई. 4 मई से 18 मई तक पुलिस क्या कर रही थी? यह घटना सामने आई कि महिलाओं को नग्न कर घुमाया गया और कम से कम दो के साथ बलात्कार किया गया, पुलिस क्या कर रही थी? उन्होंने सरकार से पूछा कि पुलिस को जीरो FIR दर्ज करने में 14 दिन क्यों लगे?

केंद्र ने पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट में मणिपुर पर दायर हलफनामे में क्या कहा?

  • राज्य सरकार ने 18 मई और 5 जुलाई, 2023 के अपने आदेश के माध्यम से राहत शिविरों में मानसिक स्वास्थ्य सहायता देने के लिए जिला मनोवैज्ञानिक सहायता टीमों का गठन किया है.

  • 1 सीनियर स्पेशल (मनोचिकित्सक) की एक महिला टीम, चुराचांदपुर के जिला अस्पताल से 1 विशेषज्ञ (मनोरोग) और 1 मनोवैज्ञानिक को पीड़ितों की सहायता के लिए नियुक्त किया गया था.

  • हालांकि, चुराचांदपुर में सिविल सोसाइटी संगठनों के प्रतिरोध के कारण, पीड़ितों से आज तक राज्य के अधिकारियों द्वारा शारीरिक या टेलीफोनिक रूप से संपर्क नहीं किया जा सका है.

  • केंद्र सरकार आवश्यकतानुसार अपने चिकित्सा संस्थानों से विशेषज्ञों की सेवाएं भी उपलब्ध कराएगी.

  • जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण के माध्यम से पीड़िता को कानूनी सहायता भी प्रदान की गई है.

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