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मणिपुर की मांओं से अपील: यौन हिंसा की शिकार महिलाओं के साथ एकजुटता दिखाएं

Manipur: यौन हिंसा की शिकार महिलाओं के दर्द और पीड़ा को आपसे बेहतर कौन समझेगा?

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साल 2004 में लगभग इसी समय मणिपुर (Manipur) में महिलाओं के नग्न विरोध प्रदर्शन ने तूफान मचा दिया था. बारह अधेड़ उम्र की महिलाओं ने इंफाल में असम राइफल्स के कांगला किले के मुख्यालय के बाहर विरोध प्रदर्शन किया था. वे नग्न होकर हाथों में बैनर लिए हुए थे, जिन पर लिखा था, “Indian Army Rape Us” और “Take Our Flesh.”  यह विरोध प्रदर्शन उस वक्त उन महिलाओं की अपनी हताशा का प्रदर्शन तो था ही , साथ ही सेना को चुनौती भी थी. जिसका उद्देश्य सुरक्षा बलों के कथित अत्याचारों पर शर्मिंदगी और ध्यान आकर्षित करना था.

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यह विरोध प्रदर्शन तब भड़का था जब एक 32 साल की महिला को पुलिस ने गोली मार दी थी. उसकी शरीर में गोली लगी थी. उसके साथ यौन हिंसा और उत्पीड़न हुआ था.

महिला की हत्या के विरोध में और लंबे समय से मानव अधिकार के हनन को तब जोरशोर से उठााया गया था. मणिपुर में जो AFSPA लगा था, उस दौरान महिलाओं से यौन हिंसा और मानव अधिकार का हनन का सवाल प्रमुखता से उठा था. इसके खिलाफ मैरा पाईबा (महिलाओं का एक दल ) ने तब ये अपने किस्म का यूनिक विरोध प्रदर्शन किया था. इस विरोध प्रदर्शन ने तब अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा था.

अब इसके लगभग 19 साल बाद एक वीडियो इसी राज्य से आया है, जिसने तूफान मचा रखा है. मैतेई और कुकी के बीच एक तरह युद्ध क्षेत्र बन चुके मणिपुर में आज बस फर्क इतना है कि इस बार जंग की मार कुकी समुदाय पर है और ऐसा अत्याचार करने का आरोप मैतेई कम्यूनिटी पर है, जो पहले कभी खुद इस तरह के उत्पीड़न का शिकार हुआ था.

इस बार फिर से कई दिनों से चल रहे हिंसक संघर्ष के सवाल को मुख्यधारा की चर्चा में लाने के लिए एक तस्वीर की जरूरत आ गई.

जब तक वीडियो सामने नहीं आया, तब तक इस पर कोई खास चर्चा नहीं शुरु हुई थी. जबकि इस जातीय संघर्ष में 100 से ज्यादा लोगों की जानें जा चुकी थीं. करीब 200 से ज्यादा गांव को लोग खाली कर चुके थे और 400 चर्चों को जलाया जा चुका था.

इस लेख के जरिए हम मणिपुर के इमासों यानि मांओं से बात करना चाहते हैं. उनको कुछ कहना चाहते हैं. हम आपसे पूछते हैं कि आखिर आपसे बेहतर कौन महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न की तकलीफ और दुख को समझ सकता है ?

महिला होना पहली और सबसे बड़ी पहचान

जिस मर्डर का जिक्र ऊपर हमने किया उसका इतना ज्यादा असर है कि आज तक असम राइफल्स को संदेह की दृष्टि से देखा जाता है. जो कोई भी मैतेई इलाकों में घूमता है या मैरा पाईबा से बात करता है, वह बेझिझक असम राइफल्स को इस हद तक शक करता है कि वो कह देगा कि: "असम राइफल्स मैतेई पर हमला करने में कुकी उग्रवादियों का समर्थन कर रहा है".

इतिहास अब खुद को दोहरा रहा है. कुकी आज रेपिस्टों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग करते हैं. वो अब मांग करते हैं कि मैतेई प्रशासित इंफाल से उनको पूरी तरह से अलग-थलग करके अलग प्रशासन दिया जाए. भारत में मुख्यधारा के लोगों ने भी इस बात को सुना है.

उन्होंने पड़ोसी राज्यों मिजोरम और नागालैंड के साथ-साथ देश भर के प्रगतिशील हलकों से उनकी मांगों के साथ एकजुटता दिखाते हुए नए सहयोगियों को जोड़ा है.

कोई चाहे तो यह कह सकता है कि एक राष्ट्र की अंतरात्मा को झकझोरने के लिए एक वायरल वीडियो की आवश्यकता पड़ी, यह भी एक तथ्य है कि यह मुद्दा इतना आगे बढ़ चुका है कि भारत सरकार इससे इनकार करते हुए अब अपने नागरिकों के प्रति गैर-जवाबदेह बने रहने का जोखिम नहीं उठा सकती, वह भी ऐसे समय में जब देश एक साल से भी कम समय में आम चुनाव की ओर अग्रसर है.

हालांकि, मणिपुर में केवल दो लोकसभा सीटें हैं. लेकिन यह भारत के लिए महत्वपूर्ण राज्य है. मणिपुर के इमास जानते हैं, राजनीतिक सौदेबाजी करने के लिए उनका नंबर कम है . इसलिए उनकी शिकायतों पर सुनवाई में ज्यादा दिक्कतें आती हैं. देश के नीति-निर्माता तब तक उनके मामलों को संवेदनशीलता से और ध्यान से नहीं समझते जब तक कि वो अपनी 'नग्नता' को राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल नहीं करते हैं.

इमासों ने इसका सामना और कड़ा संघर्ष किया है. वे जानते हैं कि व्यक्ति और समुदाय किस दर्द और पीड़ा से गुजर रहे हैं. वे समझते हैं कि न्याय के लिए संघर्ष कितना कठिन हो सकता है यदि अपराधियों को सरकार के करीब या उसका हिस्सा होने के कारण छूट का आनंद मिलता है.

इसलिए इमास यौन हिंसा के अपराधियों का पक्ष नहीं ले सकता. उन्हें ऐसा करना भी नहीं चाहिए क्योंकि वे उनके समुदाय के हैं. पितृसत्ता से समर्थित महिलाओं की अधीनता विचारधाराओं, जाति और वर्ग से परे है, इसलिए, इमास को बिना शर्त रेप पीड़ितों के साथ खड़े रहने की जरूरत है. उन्हें अपने समुदाय से ऐसे ही मामलों को उजागर करना चाहिए. यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनकी मातृभूमि मणिपुर महिलाओं को डरा न दे.

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महिलाओं का शरीर जंग की जमीन नहीं

चूंकि वीडियो ने सोशल मीडिया पर सनसनी मचा दी है. मुख्यमंत्री ने एक इंटरव्यू में दावा किया, "आप केवल एक वीडियो देख रहे हैं, यहां ये रोजाना हो रहा है". वायरल वीडियो पर इस तरह का बयान किसी भी सरकार के पूर्ण नैतिक पतन को दिखाता है लेकिन यह राज्य में चल रही जंग के एक साफ पैर्टन को भी बताता है.

जहां महिलाओं के शरीर को युद्ध का मैदान बना दिया गया है. महिलाएं अपने शरीर पर महिलाओं के अधिकारों के बारे में सवाल पूछती हैं. इसका मतलब यह है कि महिलाओं का शरीर सिर्फ उनका शरीर नहीं है. यह पुरुषों के मालिकाना हक जैसा है. इस तरह से पुरुष मालिकाना अधिकारों के प्रतिनिधि हैं जो परिवारों और सामाजिक क्षेत्रों में महिला के शरीर से गर्व या शर्म को देखते हैं.

हालांकि, यह पहली बार नहीं है कि रेप और यौन हिंसा को संघर्ष में हथियार की तरह इस्तेमाल किया गया है, यह देखा गया है कि यौन हिंसा के गहरे और विनाशकारी परिणाम होते हैं. इसके परेशान करने वाले प्रभावों में से एक जीवित बचे लोगों और उनके समुदाय पर शर्म और कलंक का आरोप लग जाता है.

यही प्रमुख कारण है कि कुकी समुदाय के बुजुर्ग अपनी महिलाओं के खिलाफ रेप और यौन हिंसा के बारे में प्रेस से बात करने से बचते हैं. गहरी जड़ें जमा चुकी वर्जनाएं और पितृसत्तात्मक मानदंड सर्वाइवर्स को चुप कराने और मुद्दे को सार्वजनिक रूप से संबोधित करने से बचने का प्रयास करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप सर्वाइवर्स को और अधिक शर्मिंदगी और अलगाव का सामना करना पड़ता है.

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तथ्य यह है कि प्रधानमंत्री मणिपुर में जातीय संघर्ष पर चुप रहने का जोखिम उठा सकते थे, केवल एक भीड़ का एक महिला को निर्वस्त्र करके परेड कराने के वीडियो पर जागना भारत की राजनीति की बुनियादी गलतियों के बारे में बहुत कुछ बताता है.

हालांकि, उन्होंने इस मुद्दे को संबोधित करते हुए जो कहा वह फिर से विवाद का विषय है क्योंकि उन्होंने कांग्रेस शासित राजस्थान और छत्तीसगढ़ में रेप के मामलों का जिक्र किया. लेकिन यौन हिंसा, उत्पीड़न और रेप के मामलों को 'बिना अगर मगर के संबोधित करना इतना कठिन नहीं है.

लेकिन इस तरह की राजनीति महिलाओं के लिए सुरक्षा और सम्मानजनक जीवन सुनिश्चित करने को लेकर उपाय करने में विफल रहती है.

यह उन महिलाओं के लिए भी एक चेतावनी है जिन्होंने खुद को नफरत और प्रभुत्व की राजनीति से जोड़ा है. राष्ट्रवाद और मर्दाना पहचान पर जोर देने वाली बहुसंख्यक राजनीति उन्हें व्यवस्थित रूप से 'अन्य' समुदायों की महिलाओं के खिलाफ मोहरे के रूप में इस्तेमाल करेगी, लेकिन अंततः उन्हें हाशिये पर धकेल देगी.

इतिहास में और भारत के भीतर ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां नफरत की राजनीति ने महिलाओं के शरीर पर जीत हासिल की है - चाहे वह भारत के विभाजन के दौरान महिलाओं का अपहरण, रेप और जबरन धर्म परिवर्तन हो, कश्मीर के कुनान पोशपोरा में सुरक्षा बलों का महिलाओं के साथ कथित रेप, मणिपुर में महिलाओं के पास AFSPA और कानून की आड़ यौन हिंसा पर आपत्ति जताने के लिए महिलाओं को खुद नग्न होकर विरोध करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था.

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हिंसा को कैसे रिपोर्ट करें ?

पहले संघर्ष मुख्यधारा के मीडिया में मणिपुर के बारे में बात करने का था, लेकिन अब बड़ी चुनौती उन्हें यह बताना है कि यौन हिंसा और रेप की रिपोर्ट कैसे न करें. 'यह कैसे हुआ' जैसे सवाल पूछने से बचना चाहिए, साथ ही 'बहन-बेटियां' जैसे रूपकों से भी परहेज रखना चाहिए.

सरवाइवर या उसके परिवार को अलग-अलग चैनलों से बात करने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए. सर्वाइवर और परिवार की गोपनीयता बनाए रखी जानी चाहिए. उन्हें कैमरे पर आने के लिए मजबूर करना या यहां तक कि उन्हें इस बारे में बात करने के लिए मनाना, उन्हें ठीक होने के अधिकार से वंचित करना है.

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