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मणिपुर हिंसा के बीच परीक्षा देने से रोके गए कुकी MBBS छात्र, बोले- पलायन एकमात्र समाधान

इंफाल स्थित मेडिकल कॉलेजों में कक्षाएं फिर से शुरू होने के बावजूद, कुकी छात्र सुरक्षा चिंताओं के कारण वापस नहीं लौट सके.

मधुश्री गोस्वामी
भारत
Published:
<div class="paragraphs"><p>मंगलवार, 21 नवंबर को मेडिकल छात्रों ने चुराचांदपुर में विरोध प्रदर्शन किया.</p></div>
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मंगलवार, 21 नवंबर को मेडिकल छात्रों ने चुराचांदपुर में विरोध प्रदर्शन किया.

(फोटो: क्विंट हिंदी द्वारा प्राप्त)

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"NEET (राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा) पास करने के लिए मुझे चार साल कोचिंग करनी पड़ी. अब, अगर मैं अपने फर्स्ट ईयर की MBBS परीक्षा में नहीं बैठ सकी, तो सारी मेहनत बर्बाद हो जाएगी."

यह बात मणिपुर के इंफाल स्थित रीजनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (RIMS) की फर्स्ट ईयर छात्रा चिंगथियानहोइह (Chingthianhoih) ने द क्विंट से कही.

चिंगथियानहोइह उन 27 कुकी-जो मेडिकल छात्रों में से हैं, जिन्हें मंगलवार, 21 नवंबर को शुरू हुए फर्स्ट ईयर की फाइनल परीक्षा में बैठने की अनुमति नहीं दी गई थी.

"मेरे माता-पिता ने मुझे यहां तक ​​पहुंचाने के लिए बहुत त्याग किया है. मेरी मां एक गृहिणी हैं जिन्होंने कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली है और मेरे पिता एक रिटायर्ड फार्मासिस्ट हैं जो केवल हाई स्कूल तक ही पढ़ाई कर पाए. मैं वास्तव में एक साल बर्बाद नहीं कर सकती."
चिंगथियानहोइह

मणिपुर में 3 मई को हिंसा भड़कने के बाद इंफाल स्थित तीन मेडिकल कॉलेजों- RIMS, जवाहरलाल नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (JNIMS) और शिजा एकेडमी ऑफ हेल्थ साइंसेज (SAHS) में पढ़ रहे कुकी-जो छात्र राजधानी इंफाल छोड़कर चले गए थे. इनमें चिंगथियानहोइह भी शामिल थी. यहां करीब 121 छात्र हैं.

चिंगथियानहोइह बताती हैं, "शुरुआत में मैंने CRPF कैंप में शरण ली. मेरे माता-पिता ने दोस्तों और रिश्तेदारों से पैसे उधार लिए और इंफाल से पुणे के लिए हमारे लिए फ्लाइट टिकट बुक किए. मैं उनके साथ नहीं गई. इसके बजाय, मैंने पहले गुवाहाटी के लिए फ्लाइट ली और फिर फ्लाइट से आइजोल गयी. मैं आइजोल से लम्का [चुराचांदपुर जिला] तक सड़क मार्ग से गई."

हालांकि, महीने के अंत में [27 मई तक] मेडिकल कॉलेजों में कक्षाएं फिर से शुरू होने के बावजूद, कुकी-जो छात्र वापस नहीं लौट सके. वह आगे कहती हैं, "इंफाल लौटना हमारे लिए खतरे से भरा था, इसलिए हम अपने कॉलेजों में वापस नहीं जा सके."

अब, इन विस्थापित छात्रों का आरोप है कि नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) द्वारा उन्हें दूसरे कॉलेज से परीक्षा देने की अनुमति मिलने के बावजदू वो फर्स्ट ईयर का एग्जाम नहीं दे पाए, क्योंकि उन्हें एडमिट कार्ड या परीक्षा से संबंधित कोई अन्य सामग्री उपलब्ध नहीं कराई गई.

"कम अटेंडेंस का हवाला देकर एग्जाम फॉर्म नहीं भरने दिया गया'

RIMS इंफाल में बैचलर ऑफ डेंटल सर्जरी (BDS) के फर्स्ट ईयर की 19 वर्षीय छात्रा फ्लोरेंस नेंगेनविया बैते (Florence Nengenviah Baite) का दावा है कि मणिपुर विश्वविद्यालय ने कम उपस्थिति के आधार पर उन्हें रजिस्ट्रेशन फॉर्म देने से इनकार कर दिया.

उन्होंने सवाल किया, "मेरे संस्थान के प्रिंसिपल ने मुझे जो कारण बताए उनमें से एक कारण कम अटेंडेंस था. ये थोथे बहाने हैं. जब हमारी जान खतरे में थी तो वो हमसे क्लास अटेंड करने की उम्मीद कैसे कर सकते थे?"

बैते अन्य MBBS छात्रों के साथ चुराचांदपुर मेडिकल कॉलेज (CMC) में पढ़ाई कर रही थीं.

"MBBS और BDS पाठ्यक्रमों में एनाटॉमी, फिजियोलॉजी जैसे कई कॉमन सब्जेक्ट हैं. मैंने CMC में क्लास भी अटेंड की. हम इस बात से गुस्से में हैं कि सरकार ने CMC से भागे छात्रों के लिए वैकल्पिक व्यवस्था की है. लेकिन ऐसी कोई व्यवस्था हमारे समुदाय के छात्रों के लिए नहीं की गई थी."
बैते

बैते और चिंगथियानहोइह बताती हैं कि मैतेई-बहुल इंफाल के तीन मेडिकल कॉलेजों में पढ़ने वाले MBBS फर्स्ट ईयर के 27 कुकी-जो छात्रों को "सुरक्षा कारणों से" कुकी-प्रभुत्व वाले चुराचांदपुर में ट्रांसफर कर दिया गया, वहीं फर्स्ट ईयर के 92 MBBS छात्र- ज्यादातर मैतेई समुदाय से- CMC से इंफाल चले गए, नए खुले CMC में केवल छह छात्र रह गए.

एक अस्थायी व्यवस्था के रूप में, विस्थापित कुकी-जो छात्रों ने शेष छात्रों के साथ कक्षाओं में भाग लेना शुरू कर दिया. इस बीच, CMC से विस्थापित छात्रों ने JNIMS में कक्षाओं में भाग लेना शुरू कर दिया.

जून में मणिपुर सरकार के अधिकारियों ने घोषणा की कि CMC के फर्स्ट ईयर के MBBS छात्रों के लिए CMC और JNIMS इंफाल, दोनों जगहों पर ऑफलाइन क्लासेज ली जाएंगी. हालांकि, इंफाल स्थित कॉलेजों से कुकी-जो समुदाय के विस्थापित छात्रों के लिए ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की गई थी.

बैते का आरोप है कि चुराचांदपुर के उपायुक्त धारुन कुमार एस ने उन्हें आश्वासन दिया था कि उन्हें ऐसा करने की अनुमति दी जाएगी, इसके बावजूद अधिकारियों ने उन्हें परीक्षा देने से रोक दिया.

उनका दावा है कि, "जब चुराचांदपुर के उपायुक्त और मणिपुर के मुख्य सचिव हमसे मिलने आए, तो उन्होंने हमें और हमारे माता-पिता को आश्वासन दिया कि हम अपनी परीक्षा दे सकेंगे, तब हमें थोड़ी राहत महसूस हुई. हालांकि, 13 नवंबर को जिला आयुक्त ने CMC के निदेशक को फोन किया और अनुरोध किया कि दोनों विस्थापित BDS छात्र अगले दिन परीक्षा के लिए कॉलेज आएं क्योंकि उन्हें प्रश्नपत्र मिल जाएगा. मैं अगले दिन कॉलेज गई, लेकिन वहां हमारे लिए कोई प्रश्नपत्र नहीं था. हम बिना परीक्षा में शामिल हुए ही लौट आए."

हालांकि, धारुन कुमार एस ने द क्विंट को बताया, "जब विस्थापित कुकी-जो छात्रों ने मदद के लिए मुझसे संपर्क किया, तो मैंने उनसे कहा कि मैं इस मुद्दे को स्वास्थ्य आयुक्त और मणिपुर के मुख्य सचिव के सामने उठाऊंगा. विस्थापित बीडीएस छात्रों को मणिपुर विश्वविद्यालय ने परीक्षा लिखने से रोक दिया था क्योंकि उन्होंने कुछ 'अस्पष्ट क्षेत्रों' की पहचान की थी."

"यह CMC और मणिपुर विश्वविद्यालय के बीच का मुद्दा है. मेडिकल कॉलेज एक विशेष विश्वविद्यालय के अंतर्गत आते हैं - और परीक्षा और मानदंड NMC द्वारा तय किए जाते हैं. उपायुक्त के रूप में, जब [छात्र] मुझसे संपर्क करेंगे तो मैं उनकी मदद करने से पीछे नहीं हटूंगा, लेकिन जब जिस विश्वविद्यालय से वे संबद्ध हैं, उसमें परीक्षा के आयोजन को लेकर कोई समस्या होती है, तो इसे उस कॉलेज और विश्वविद्यालय के बीच सुलझाना होता है, जिसमें छात्र पढ़ रहे हैं. मैंने सीएमसी को सूचित किया कि अगर मणिपुर विश्वविद्यालय मेरे कार्यालय को ईमेल द्वारा प्रश्नपत्र भेजता है तो वह तैयार रहे, जैसा कि विश्वविद्यालय ने उनसे वादा किया है.''

उन्होंने आगे कहा कि उन्होंने विस्थापित छात्रों को उनके फॉर्म और परीक्षा शुल्क जमा करने में मदद की थी.

द क्विंट से बात करते हुए मणिपुर विश्वविद्यालय के कुलपति एन लोकेंद्र ने कहा कि NMC से "कुछ अस्पष्ट मुद्दों" पर "बिंदुवार" स्पष्टीकरण प्राप्त होने के बाद विस्थापित छात्रों के लिए MBBS परीक्षाएं आयोजित की जाएंगी, नहीं तो "और अधिक समस्याएं" खड़ी हो सकती है.

इसके साथ ही उन्होंने कहा कि "चिकित्सा विज्ञान के डीन ने NMC से उपस्थिति, मूल्यांकन आदि के संदर्भ में निर्धारित मानदंडों की पूर्ति पर स्पष्टीकरण मांगा है, जो प्रत्येक मेडिकल छात्र के लिए अनिवार्य हैं. ऐसे दिशानिर्देशों का उल्लंघन अधिक समस्याएं पैदा करेगा. लेकिन वो सभी पूरक परीक्षा दे सकते हैं जो जल्द ही आयोजित की जाएगी."

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'अगर इंटर्नशिप पूरी नहीं हुई पांच साल की मेहनत बेकार हो जाएगी'

पिछले साल RIMS से MBBS करने वाले छात्र जॉन टोन्सिंग (बदला हुआ नाम) को डर है कि अगर वह अगले साल तक अपनी इंटर्नशिप पूरी नहीं करते हैं तो उनकी पांच साल की मेहनत बेकार हो जाएगी.

उन्होंने द क्विंट को बताया, "जब हिंसा भड़की तो मैं अपनी इंटर्नशिप के चौथे महीने में था- और मैं इंफाल से भाग गया. ऐसा हुए लगभग सात महीने हो गए हैं, और स्थिति अभी भी वैसी ही है. मेरे पास अपनी इंटर्नशिप पूरी करने के लिए अधिकतम एक वर्ष है. अगर मैं ऐसा नहीं कर सका, तो वे मुझे MBBS की डिग्री नहीं देंगे. मेरी पांच साल की सारी मेहनत बर्बाद हो जाएगी.''

टोन्सिंग सात भाई-बहनों में सबसे बड़े हैं. उनके पिता नहीं है और उनकी मां एक निजी स्कूल में शिक्षिका के रूप में काम करती हैं. वह आगे कहते हैं, ''मैं अपने परिवार के लिए सबसे बड़ी उम्मीद हूं.''

NMC के नियमों के अनुसार, MBBS छात्रों को अपनी डिग्री पूरी करने के दो साल के भीतर अनिवार्य रूप से इंटर्नशिप पूरी करनी होती है. ऐसा करने में विफल रहने पर उन्हें उनकी डिग्रियां नहीं दी जातीं.

'मणिपुर यूनिवर्सिटी से कोई उम्मीद नहीं'

मंगलवार, 21 नवंबर को चूंकि विस्थापित छात्र अपनी परीक्षा नहीं दे पाए, इसलिए वे अपना विरोध प्रदर्शन करने के लिए सड़कों पर उतर आए. उन्होंने मणिपुर की राज्यपाल अनुसुइया उइके को एक ज्ञापन भी सौंपा, जिसमें कहा गया कि उन्हें "जानबूझकर दरकिनार किया गया है और उनके साथ भेदभाव किया गया है."

क्विंट के पास मौजूद ज्ञापन में छात्रों ने अपनी पुरानी मांग को आगे बढ़ाया कि उन्हें राज्य के बाहर मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में स्थानांतरित किया जाना चाहिए और कहा, "हमें बहुद दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि मणिपुर विश्वविद्यालय से बहुत उम्मीदें नहीं हैं."

"मणिपुर विश्वविद्यालय की इस मनमानी कार्रवाई ने हमें बहुत निराश किया है. इसलिए, हम जानना चाहेंगे कि किस आधार पर CMC के हमारे छह साथी छात्रों को अपनी परीक्षा देने की अनुमति दी गई है और हमें इससे वंचित कर दिया गया, जबकि हम सभी एक ही छत के नीचे समान कक्षाएं और समान प्रशिक्षण ले रहे हैं? NMC से NoC [no objection certificate] मिलने के बाद भी MU [मणिपुर विश्वविद्यालय] हमें विश्वविद्यालय परीक्षा क्यों नहीं लिखने दे रहा है?"

NMC ने 13 नवंबर को NoC जारी की थी - जिसकी एक प्रति क्विंट ने देखी है - और कहा कि विश्वविद्यालय "कॉलेजों और राज्य अधिकारियों के साथ उचित परामर्श के बाद निर्णय ले सकता है."
विस्थापित कुकी-जो आदिवासी छात्रों का दावा है कि उन्होंने अपने परीक्षा फॉर्म और एडमिट कार्ड भरे हैं और साथ ही चुराचांदपुर के उपायुक्त के माध्यम से अपनी परीक्षा फीस भी जमा की है.

मणिपुर विश्वविद्यालय के कुलपति के अलावा, राज्य के स्वास्थ्य मंत्री सपम रंजन सिंह ने विस्थापित मेडिकल छात्रों को अपना समर्थन देने का वादा किया.

मंत्री ने कहा, "जहां तक ​​चुराचांदपुर के मेडिकल छात्रों का सवाल है, हमने NMC से अनुरोध किया है और उनसे दोहरे परिसर (dual campus) की मांग की है. NMC इस पर सहमत हो गया है."

मंत्री ने छात्रों को आश्वस्त किया कि इस मुद्दे पर गौर किया जाएगा और उन्हें आवश्यक सहायता प्रदान की जाएगी.

बुधवार, 22 नवंबर को अपने आवास पर मीडिया से बात करते हुए सिंह ने कहा, "राज्य सरकार सभी छात्रों के कल्याण को बहुत गंभीरता से लेती है. 3 मई की दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बाद, राज्य सरकार छात्रों की पढ़ाई और कल्याण के लिए हर संभव कोशिश कर रही है.”

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

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