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मणिपुर हिंसा (Manipur violence) के बीच एक आरोप यह है कि म्यांमार से गैरकानूनी माइग्रेंट्स ने इस समस्या को पैदा करने में प्रमुख भूमिका निभाई है. इससे भारत-म्यांमार सीमा की सुरक्षा और उसके मैनेजमेंट की तरफ ध्यान गया है. भारत के चार पूर्वोत्तर राज्यों- मिजोरम, नागालैंड, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश की म्यांमार के साथ करीब 1,643 किमी. लंबी सीमा लगती है.
अभी इस बॉर्डर पर जो चौकसी यानि सीमा सुरक्षा और प्रबंधन का हाल है वो 1965 से पहले पूर्वी और पश्चिमी, दोनों तरफ के पाकिस्तान के साथ सीमाओं की निगरानी से कम है.
राज्य सशस्त्र बल जो उस समय उन सीमाओं की रक्षा के लिए जवाबदेह थे, कुछ सीमा चौकियों (बीओपी) की स्थापना करके सीमा पर कम से कम कुछ मौजूदगी बनाए रख रहे थे. लेकिन, भारत-म्यांमार सीमा के मामले में ऐसा नहीं कहा जा सकता.
भले ही कारगिल प्रकरण के बाद "मंत्रियों के समूह" की सिफारिश के अनुसार असम राइफल्स (एआर) को भारत-म्यांमार सीमा के लिए सीमा सुरक्षा बल के रूप में नामित किया गया है, लेकिन इसने जानबूझकर कंपनी ऑपरेटिंग बेस (सीओबी) से संचालन जारी रखने का निर्णय लिया है जो कि असल सीमा से काफी दूर है.
सीमा खुली होने से इसका बेजा इस्तेमाल आसानी से हो जाता है. इसलिए, बॉर्डर के पास होने वाले किसी भी अपराध को रोकने या अपराधियों को पकड़ने के लिए वक्त रहते असम राइफल्स तक सूचना ही नहीं पहुंच पाती है, क्योंकि COB काफी दुर्गम और अविकसित इलाके में हैं और यहां सैनिक या सुरक्षा बल अपराध स्थल तक तेजी से पहुंच नहीं पाते हैं.
भले ही बॉडर का सही तरीके से सीमांकन किया गया है, फिर भी इसकी दुर्गमता और 24X7 निगरानी की कमी के कारण अपराधी इसका अतिक्रमण और बेजा इस्तेमाल करते रहते हैं.
बॉर्डर पर BOP चौकी नहीं लगाए जाने के पीछे अक्सर ही असम राइफल्सइस की दुर्गमता का हवाला देते हैं. रोड नहीं होने के कारण जरूरत पड़ने पर फौज को जरूरी रसद और दूसरी सामग्री पहुंचाने में भी बाधाएं पैदा होती है.
इस तथ्य को समझना महत्वपूर्ण है कि कश्मीर में नियंत्रण रेखा (LoC) और सियाचिन काएक्चुअल ग्राउंड पोजिशन लाइन (AGPL) की तरह ही अरुणाचल की सीमाएं भी हैं. लेकिन कश्मीर और सियाचीन में भारतीय सेना ने बहुत असरदार ढंग से प्रबंधन को संभाला है. बढ़िया लॉजिस्टिक्स विकसित किया है लेकिन अरुणाचल के मामले में ऐसा कुछ नहीं है.
इसके अलावा बांग्लादेश से लगतेपूर्वी त्रिपुरा, पश्चिमी मिजोरम के सीमावर्ती इलाके जिसकी निगरानी सीमा सुरक्षा बल (BSF) करता है और यह बिल्कुल मिजोरम, नागालैंड और मणिपुर का म्यांमार से लगती सीमा की तरह है जिसकी रक्षा के लिए असम राइफल्स जिम्मेदार है. बीएसएफ जिन सीमाओं का संरक्षण करती है उन इलाकों में भी रोड की कनेक्टिविटी पिछले कुछ वर्षों में ही आई है.
हालांकि, BSF ने हमेशा सीमा के करीब स्थित BOP पर तैनाती के साथ इन सीमाओं पर अग्रिम मोर्चा संभाला है, जिससे सीमा की निरंतर निगरानी और डोमिनेंस सुनिश्चित होता है. इन सीमाओं पर बनी BOP को हेलीकाप्टर उड़ानों से रसद की आपूर्ति की जा रही थी और अब भी की जा रही है. आपातकालीन स्थिति में सैनिकों के रेस्क्यू के लिए भी ऐसी उड़ानें उपलब्ध कराई जाती हैं.
सीमा की चौबीसों घंटे निगरानी की आवश्यकता इसलिए भी है क्योंकि यहां म्यांमार के साथ सीमा पर "FMR यानि फ्री मूवमेंट रिजीम" प्रचलित है. FMR आदिवासियों को निश्चित प्वाइंट्स से आवाजाही की सुविधा देता है. हालांकि, खुली सीमाएं और निर्दिष्ट बिंदुओं के अलावा अन्य बलों की गैरमौजूदगी के कारण प्रवेश और निकास को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करना मुश्किल हो जाता है.
सीमा खुली होने के कारण आदिवासी आसानी से कहीं से भी आ-जा जाते हैं और सेना को इसकी भनक तक नहीं लगती. इससे भारत में आदिवासियों के अवैध रूप से बसने की गुंजाइश बढ़ जाती है.
बीओपी पर फॉरवार्ड पोस्टिंग से यह समस्या दूर हो जाएगी क्योंकि इससे सभी आवाजाही करने वालों की सही निगरानी हो सकेगी. सही तरीके से बॉर्डर मैनेजमेंट को प्रभावित करने वाला एक दूसरा कारक सीमा सुरक्षा/प्रबंधन के लिए असम राइफल्स की तरफ से कम सुरक्षा बल मुहैया कराया जाना है.
अगर यह भी मानें कि एक यूनिट में 15 बीओपी होती है (6 यूनिट और एक ट्रेनिंग रिजर्व) तो ऑब्जरवेशन हेडक्वार्टर के साथ कुल 32 यूनिट की जरूरत होगी. असम राइफल्स जिसके पास 6कंपनी है ( 5 की तैनाती और एक रिजर्व फोर्स ) को BOP पर फॉरवर्ड तैनाती के लिए कई और यूनिट की जरूरत पड़ेगी. असम राइफल्स(AR)के पास 46 यूनिट्स हैं लेकिन केवल 15 सीमा प्रबंधन के लिएहैं और बची हुई यूनिटेंआंतरिक सुरक्षा मैनेजमेंट के लिए हैं.
इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि इस सदी की शुरुआत में विद्रोही समूहों के साथ "ऑपरेशन की समाप्ति" लागू होने के बाद पूर्वोत्तर कमोबेश शांतिपूर्ण रहा है, सीमा प्रबंधन के लिए और अधिक यूनिट्स को फिक्स किया जा सकता था. आंतरिक सुरक्षा में असम राइफल्स (AR ) की इस व्यस्तता ने इसे बॉर्डर मैनेजमेंट के लिए प्रभावी SoPऔर ट्रेनिंग विकसित करने से रोका है.
पूर्वोत्तर में अलगाववादी ताकतों के फिर से सिर उठाने की आशंका को नजरअंदाज करना समझदारी नहीं होगी, खासकर मणिपुर में जो कुछ हो रहा है, उसे देखते हुए, असम राइफल्स सीमा सुरक्षा के लिए कोई अतिरिक्त यूनिट्स नहीं दे पाएगा.इसलिए, विशेष रूप से सीमा-सुरक्षा के लिए असम राइफल्स के अलावा किसी अन्य बल को तैनात करना समझदारी होगी.
गहरे ऐतिहासिक जुड़ाव, पूर्वोत्तर के इलाके, संस्कृति और लोकाचार का ज्ञान और उस क्षेत्र में विद्रोहियों और अलगाववादियों के खिलाफ काम करने का व्यापक अनुभव वाला असम राइफल्स इस भूमिका में अधिक प्रभावी होगा. इससे उचित सीमा-सुरक्षा सुनिश्चित करने के अलावा पूर्वोत्तर में आंतरिक सुरक्षा स्थिति को बेहतर बनाने में काफी मदद मिलेगी.
भारत-बांग्लादेश और भारत-पाकिस्तान सीमाओं पर त्रिपुरा और मिजोरम में भारत-म्यांमार सीमाओं के समान सीमा सहित विभिन्न इलाकों में सीमा सुरक्षा में 57 वर्षों से अधिक अनुभव वाला बीएसएफ भारत-म्यांमार सीमा की रक्षा करने का कार्य सौंपे जाने के लिए सबसे सही संगठन है.
इस सीमा पर बीएसएफ की तैनाती के पक्ष में एक अन्य कारक यह है कि इसे इस सदी की शुरुआत तक मणिपुर में इस सीमा के कुछ हिस्सों की सुरक्षा के लिए तैनात किया गया था. एआर को इन सीमाओं पर सौंपे जाने के परिणामस्वरूप इसे हटा दिया गया था.
मणिपुर, नागालैंड और मिजोरम में बीएसएफ की मौजूदगी जारी है. बीएसएफ के ये प्रतिष्ठान संबंधित राज्य अधिकारियों के साथ किसी भी मुद्दे को सुलझाने में बहुत प्रभावी साबित होंगे, जिससे इंडक्शन प्रक्रिया को सुचारू बनाया जा सकेगा.
सीमा सुरक्षा बलों का एक महत्वपूर्ण काम सीमावर्ती आबादी के बीच सुरक्षा की भावना को बढ़ावा देना है. यह न केवल सीमा को सुरक्षित रखने के लिए सामरिक अभियान चलाकर हासिल किया जाता है, बल्कि सीमावर्ती आबादी की समस्याओं की पहचान करने और उन्हें संबंधित अधिकारियों के सामने पेश करने से भी हासिल किया जाता है.
दूरदराज के सीमावर्ती क्षेत्रों में सरकारी प्राधिकरण के एकमात्र संगठन के रूप में बीएसएफ इस भूमिका को बहुत प्रभावी ढंग से निभा रहा है और इस प्रकार, सीमावर्ती आबादी को मुख्यधारा के साथ एकीकृत करने में मदद करता है.
BSF को चरणबद्ध तरीके से इस प्रक्रिया में शामिल करना होगा. पहले चरण में मणिपुर के साथ अधिक संवेदनशील सीमा वाले इलाके पर नियंत्रण करना होगा. इसके बाद मिजोरम, नागालैंड और अरुणाचल को शामिल करना होगा. बीएसएफ की अतिरिक्त टुकड़ियां खड़ी करनी होंगी. यह शुरुआत में मौजूदा इकाइयों से फोर्स जुटाकर और इसके साथ ही अतिरिक्त इकाइयों को बढ़ाने के लिए नए कर्मियों की भर्ती करके किया जा सकता है.
यह पूरा ट्रांजिशन सुनोयजित तरीके से चरणवार होना चाहिए, ताकि पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ संवेदनशील सीमाओं पर अपनी ताकत कमजोर न हो. बीएसएफ सैनिकों को क्षेत्र के इलाके और संस्कृति, एफएमआर की गतिशीलता और म्यांमार के साथ उन सीमाओं पर संचालन पर असर डालने वाले विभिन्न द्विपक्षीय समझौतों से परिचित होने की आवश्यकता होगी.
2014 में, ऐसी कई रिपोर्टें आई थीं जिनमें कहा गया था कि रक्षा मंत्रालय इस शर्त के साथ इस सीमा को बीएसएफ को सौंपने पर सहमत हो गया था कि वो AR को नियंत्रित करना जारी रखेगा क्योंकि पूर्वी इलाके में युद्ध की स्थिति में इसकी भूमिका प्रमुख हो जाती है.बीएसएफ को 2014 के अंत तक तैनात किया जाना था. हालांकि, प्रस्ताव अमल में नहीं आया.
कथित तौर पर भारत सरकार एक बार फिर इस सीमा पर बीएसएफ की तैनाती पर विचार कर रही है.
भारत-म्यांमार सीमा पर निरंतर अपना असर बनाए रखने के लिए सीमा सुरक्षा बल तैनात करने का शीघ्र निर्णय अशांत म्यांमार से किसी भी अवैध प्रवास को रोकने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. इससे राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने में मदद मिलेगी ही , सीमा और आंतरिक सुरक्षा भी बेहतर होगी.
(संजीव कृष्ण सूद (सेवानिवृत्त) ने बीएसएफ के अतिरिक्त महानिदेशक के रूप में कार्य किया है और एसपीजी के साथ भी काम कर चुके हैं. सोशल मीडिया X पर उनका अकाउंट @sood_2 है. यह एक ओपिनियन पीस है और ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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