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मणिपुर हिंसा:राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट की फटकार, "पुलिस जांच करने में असमर्थ"

Manipur violence: SC ने मणिपुर के डीजीपी को 7 अगस्त को व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित होने का आदेश दिया है.

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<div class="paragraphs"><p>'पुलिस जांच करने में असमर्थ': SC ने मणिपुर हिंसा पर अधिकारियों को लगाई फटकार</p></div>
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'पुलिस जांच करने में असमर्थ': SC ने मणिपुर हिंसा पर अधिकारियों को लगाई फटकार

(फोटो: पीटीआई)

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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मंगलवार, 1 अगस्त को मणिपुर (Manipur) संकट से संबंधित मामलों की सुनवाई की. इस दौरान अदालत ने राज्य में स्थिति को नियंत्रित करने में असफल रहने और हिंसा के दौरान कार्रवाई में कमी के लिए राज्य पुलिस को फटकार लगाई.

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को मणिपुर के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को 7 अगस्त को व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित होने का आदेश दिया, जब कोर्ट हिंसा से संबंधित कई याचिकाओं पर अगली सुनवाई करेगा.

न्यूज वेबसाइट बार और बेंच के मुताबिक, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ ने टिप्पणी करते हुए कहा, "राज्य पुलिस जांच करने में असमर्थ है. एकदम...कोई कानून-व्यवस्था नहीं बची है."

शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि 6,000 से अधिक प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) होने के बावजूद गिरफ्तारियों की संख्या बहुत कम थी.

चीफ जस्टिस ने आगे कहा, "जांच बहुत सुस्त है. कोई गिरफ्तारी नहीं हुई. इतना समय बीतने के बाद बयान दर्ज किए जा रहे हैं. इससे यह आभास होता है कि कोई कानून नहीं था और संवैधानिक तंत्र टूट गया था. हो सकता है कि यह सही हो कि गिरफ्तारी इसलिए नहीं हो सकी क्योंकि पुलिस इलाके में प्रवेश नहीं कर पाई. लेकिन तब भी कानून और व्यवस्था पूरी तरह से खराब हो गई थी."

याचिकाएं: भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ मणिपुर में हिंसा फैलने से संबंधित कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दो कुकी महिलाओं द्वारा दायर याचिका भी शामिल थी, जिन्हें भीड़ ने नग्न अवस्था में परेड कराया था.

सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी: 31 जुलाई को हुई सुनवाई के दौरान अदालत ने वकील बांसुरी स्वराज पर भी तल्ख टिप्पणी की. इन्होंने पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ के मामलों पर विचार करने के लिए याचिका दायर की थी जहां भीड़ द्वारा महिलाओं के साथ भी दुर्व्यवहार किया गया था.

बार और बेंच के मुताबिक सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा था, "हम सांप्रदायिक और सांप्रदायिक हिंसा में महिलाओं के खिलाफ अभूतपूर्व पैमाने पर हिंसा से निपट रहे हैं. यह नहीं कहा जा सकता है कि महिलाओं के खिलाफ बंगाल में भी अपराध हो रहे हैं. यहां मामला अलग है. मणिपुर में जो कुछ हुआ उसे हम यह कहकर उचित नहीं ठहरा सकते कि ऐसा और कहीं भी हुआ है."

जबकि याचिकाकर्ताओं ने उनके खिलाफ यौन हिंसा की एसआईटी जांच की मांग की थी, अदालत ने तुरंत कोई आदेश पारित नहीं किया और मामले की जांच के लिए एक समिति बनाने पर विचार किया.

इससे पहले: शीर्ष अदालत ने ऑनलाइन सामने आए एक परेशान करने वाले वीडियो पर स्वत: संज्ञान लिया था, जिसमें कुकी जनजाति की दो मणिपुरी महिलाओं को नग्न परेड कराते और उनके साथ छेड़छाड़ करते हुए दिखाया गया था. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने घटना पर गहरी चिंता व्यक्त की और आश्वासन दिया कि अगर सरकार कार्रवाई करने में विफल रही तो अदालत हस्तक्षेप करेगी.

इस बीच, केंद्र ने 27 जुलाई को शीर्ष अदालत को बताया था कि मामले की जांच सीबीआई करेगी और अनुरोध किया था कि मुकदमे को मणिपुर के बाहर स्थानांतरित किया जाए.

(बार एंड बेंच, लाइव लॉ से इनपुट के साथ)

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