Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019BHU छात्रसंघ अध्यक्ष से लेकर J&K के LG तक, मनोज सिन्हा की कहानी

BHU छात्रसंघ अध्यक्ष से लेकर J&K के LG तक, मनोज सिन्हा की कहानी

साल 2017 में जब उत्तर प्रदेश में बीजेपी की वापसी हुई तब सीएम की रेस में मनोज सिन्हा भी थे

शादाब मोइज़ी
भारत
Updated:
जम्मू-कश्मीर को मिला नया उपराज्यपाल मनोज सिन्हा
i
जम्मू-कश्मीर को मिला नया उपराज्यपाल मनोज सिन्हा
(फोटोः PTI)

advertisement

वीडियो एडिटर: मोहम्मद इब्राहीम

वीडियो प्रोड्यूसर: हेरा खान

साल 1982, बनारस (बीएचयू) का लंका चौराहा. एक लंबे कद का लड़का ऊंचाई पर खड़े होकर चुनावी भाषण दे रहा था. सामने से वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय और भाषण दे रहे लड़के के पिता जा रहे थे, तब ही राम बहादुर राय ने कहा, “प्रिंसिपल साहब देखो ई मनोज भाषण दे रहा है क्या?” राम बहादुर राय और अपने पिता को देख मनोज भाषण छोड़ वहां से भाग जाता है. पिता के डर से भागने वाला वो 23 साल का लड़का मनोज बीएचयू छात्र संघ का चुनाव जीत जाता है. अब वहीं मनोज संवेदनशील जम्मू-कश्मीर का उपराज्यपाल बनने जा रहा है. पूरा नाम है मनोज सिन्हा.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

तीन बार सांसद, मोदी सरकार 2.0 में 2 मंत्रालयों की जिम्मेदारी. और अब जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल गिरिश चंद्र मुर्मू के इस्तीफे के बाद मनोज सिन्हा कश्मीर के उपराज्यपाल नियुक्त किए गए हैं.

गाजीपुर जिले के मोहम्मदाबाद तहसील के मोहनपुरा गांव में जन्मे मनोज सिन्हा वैसे तो करीब 4 दशक से राजनीति में हैं, लेकिन देश ने उनको तब अच्छे से जाना जब साल 2014 मे चुनाव जीतकर आए और प्रधानमंत्री मोदी के साथ 26 मई 2014 को शपथ ली.
2014 में शपथ लेते हुए मनोज सिन्हा(फाइल फोटो: twitter)

मनोज सिन्हा 2014 में 16 वीं लोक सभा के लिए उत्तर प्रदेश के गाजीपुर से सांसद चुने गए थे और रेल राज्य मंत्री बने. फिर काम करने की लगन को देखते हुए दो साल बाद उन्हें संचार मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार भी सौंपा गया.

सीएम बनते-बनते रह गए

साल 2017 में जब उत्तर प्रदेश में बीजेपी की वापसी हुई तब सीएम की रेस में मनोज सिन्हा भी थे, हालांकि वो अपने मुंह से बार-बार इस बात से इंकार करते रहे. लेकिन राजनीति में जो दिखता है वो होता नहीं है. मनोज सिन्हा प्रबल दावेदार थे, पार्टी में भी इन्हें लेकर राय बन रही थी लेकिन आखिर में योगी आदित्यनाथ की दावेदारी भारी पड़ी.

(क्विंट हिंदी/श्रुति माथुर)
यही नहीं योगी के सीएम पद की शपथ में पीएम नरेंद्र मोदी, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह समेत, बीजेपी के कई मुख्यमंत्री शामिल हुए थे, लेकिन सीएम की रेस में अंतिम समय तक आगे रहने वाले मनोज सिन्हा नदारद थे.
(फाइल फोटो: PTI)

सिविल इंजीनियरिंग से राजनीति में 'डॉक्टरी'

IIT (BHU) से सिविल इंजीनियरिंग में एमटेक की पढ़ाई के दौरान छात्र राजनीति में एंट्री हुई. मनोज सिन्हा का राजनीतिक सफर काफी उतार चढ़ाव वाला रहा है. 1982 में वह बीएचयू छात्र संघ का चुनाव जीतकर राजनीति में उतरे. 10वीं में स्टेट टॉपर, एमटेक में गोल्ड मेडलिस्ट और फिर 1996 में पहली बार गाजीपुर सीट से लोकसभा भी पहुंच गए. आठ बार लोकसभ चुनाव लड़ चुके मनोज सिन्हा को 3 बार जीत हासिल हुई. 1996, 1999, 2014 में गाजीपुर से सांसद बने.

2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी का आदेश हुआ कि गाजीपुर से चुनाव लड़ना है. ये सुनते ही मनोज सिन्हा ने कहा था, “मैं पत्थर पर घांस उगाने निकला हूं.” लेकिन मनोज वो चुनाव जीत गए.

लेकिन 2019 में वो लोकप्रियता और काम, काम नहीं आया. मोदी लहर के बावजूद मनोज 2019 लोकसभा का चुनाव गाजीपुर से बहुजन समाज पार्टी उम्मीदवार अफजल अंसारी से 119,392 वोटों से हार गए. चुनाव हारने के बाद लोगों ने समझा राजनीति में पिछड़ गए हैं, लेकिन एक साल बाद फिर पीएम मोदी ने कश्मीर की जिम्मेदारी देकर उनकी अहमियत बता दी है.

(क्विंट हिंदी/श्रुति माथुर)
नाम न छापने की शर्त पर मनोज सिन्हा के करीबी बताते हैं कि उन्हें इस बात की जरा भी जानकारी नहीं थी कि उन्हें कश्मीर भेजा जाएगा. दो दिन पहले ही उन्हें दिल्ली बुलाया गया था और तीन दिन में शपथ है.

सिन्हा के साथ कई सालों से काम कर रहे एक शख्स बताते हैं, “उनकी शादी भागलपुर की नीलम सिन्हा से हुई. उनके दो बच्चे हैं, लेकिन किसी को राजनीति में लाने का नहीं सोचा. बेटे अभिनव सिन्हा गुड़गांव में एक कंपनी में नौकरी करते हैं.”

क्यों भेजे गए कश्मीर

1985 बैच के गुजरात काडर के पूर्व आईएएस अफसर गिरिश चंद्र मुर्मू को पिछले साल ही अक्टूबर में जम्मू-कश्मीर का एलजी नियुक्त किया गया था. इससे तुरंत पहले अगस्त में ही जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया था. लेकिन फिलहाल कश्मीर में मोदी सरकार के सामने राजनीतिक चुनौती है, इसलिए शायद शांत स्वभाव वाले मनोज सिन्हा को वहां भेजा गया है.

तारों के बीच घिरा लाल चौक(फोटो: शादाब मोइज़ी/क्विंट हिंदी)

मनोज सिन्हा के सामने बड़ी चुनौती प्रशासन, पुलिस, केंद्र सरकार और आम लोगों को एक पेज पर लेकर काम करने की होगी. पहले ही मनोज सिन्हा रेल और टेलिकॉम डिपार्टमेंट में अपने काम को लेकर अपनी छाप छोड़ चुके हैं, साथ ही उन्हें जमीनी राजनीति का भी अनुभव है. अगर मुर्मू से पहले वाले उपराज्यपाल सत्यपाल मलिक को देखें तो वो अपने बयानों को लेकर अक्सर चर्चा में रहते थे, लेकिन इसके ठीक उलट मनोज सिन्हा शांति से अपना काम करने वालों में जाने जाते हैं.

लो प्रोफाइल रहकर काम करते हैं, पार्टी में अच्छी साख है. नौकर शाह मुर्मू के उलट मनोज सिन्हा पार्टी लाइन को लेकर साफ दृष्टि रखते हैं. इसलिए शायद अब इन्हें जम्मू-कश्मीर की जिम्मेदारी दी गई है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 06 Aug 2020,05:28 PM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT