Me, The Change: बेमिसाल अंशु राजपूत, एसिड अटैक सर्वाइवर 

अंशु समाज को वापस कुछ देना चाहती हैं, जिसने उन्हें एक बार अकेला छोड़ दिया था.

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(Photo: Instagram/Altered by <b>The Quint</b>)
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(Photo: Instagram/Altered by The Quint)
आज, अंशु राजपूत लखनऊ में “शीरोज हैंगआउट” कैफे में एक लाइब्रेरी मैनेजर हैं.

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प्रोड्यूसर: त्रिदीप के मंडल

कैमरापर्सन: अभिषेक रंजन

वीडियो एडिटर: प्रशांत चौहान

‘मी, द चेंज’ पहली बार वोट करने जा रही ऐसी महिलाओं के लिए द क्विंट का कैंपेन है, जिन्होंने कोई भी, छोटी या बड़ी उपलब्धि हासिल की है. इस कैंपेन में द क्विंट नाॅमिनेशन के जरिए इन असाधारण महिलाओं की कहानियों को आपके सामने पेश कर रहा है. अगर आप भी ऐसी किसी बेबाक और बिंदास महिला को जानते हैं, तो हमें methechange@thequint.com पर ईमेल करके बताएं.

अंशु राजपूत सिर्फ 15 साल की थीं जब उनकी जिंदगी ने बुरी करवट ली. उत्तर प्रदेश की बिजनौर निवासी अंशू उस दिन बेखबर अपने घर के बाहर सो रही थीं और उसी वक्त उनका पड़ोसी, 55 साल का एक आदमी जिसकी नजदीकी बढ़ाने की कोशिशों को उन्होंने पहले ठुकरा दिया था, दीवार फांद कर आया और उनके चेहरे पर एसिड डाल दिया.

वो मुजरिम जेल में बंद है, लेकिन अंशु के शरीर पर हिंसा के वो निशान अभी तक बाकी हैं.

अब 21 साल की हो चुकी अंशु 6 साल पहले की उस घटना को याद करते हुए बताती हैं.

“उसके बाद मैंने अस्पताल में एक महीना गुजारा. लेकिन मुझे सही इलाज नहीं मिल रहा था, इसलिए मेरे माता-पिता मुझे घर ले आए और घर के नजदीक ही एक प्राइवेट डॉक्टर से मेरा इलाज कराया.”
अंशु राजपूत, एसिड अटैक सर्वाइवर

एसिड ने शुरू में उन्हें अंधा बना दिया था, धीरे-धीरे आंखों की रौशनी वापस आनी शुरू हुई. लेकिन उन आंखों से वो ये देख रही थीं कि उनका चेहरा इतना बदल गया था कि पहचानना मुश्किल था.

उन्होंने ये भी देखा कि लोगों ने कैसे उनसे कन्नी काटना शुरू कर दिया है, खासतौर से पड़ोसी जिन्होंने उससे बात करना बंद कर दिया था. यहां तक कि उनके दोस्तों ने भी उससे किनारा कर लिया. लेकिन अभी सबसे बुरा होना बाकी था.

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स्कूल जाने के लिए लड़ना पड़ा

“मेरा नाम स्कूल रजिस्टर से काट दिया गया था. जब मैं उनसे पूछने गई, तो उन्होंने कहा कि मैं अब स्कूल नहीं जा सकती क्योंकि मेरा चेहरा दूसरे बच्चों को डराता है.”
अंशु राजपूत, एसिड अटैक सर्वाइवर

लेकिन अंशु ने हिम्मत नहीं हारी. द क्विंट से बात करते हुए अंशु ने कहा, “कोई इस तरह मेरे हक को कैसे छीन सकता है? पढ़ना मेरा अधिकार है. मैं गई और प्रिंसिपल और स्कूल प्रशासन से लड़ी. आखिरकार, मैं फिर से उस स्कूल में दाखिला पाने में कामयाब हुई और मैंने वहीं से अपनी 12वीं की पढ़ाई पूरी की.”

लेकिन उन पर हुए क्रूर हमले के नतीजों में से एक ये भी था कि वो अपनी कमजोर नजर की वजह से कॉलेज में पढ़ पाने में लाचार थीं. दूसरी ओर अंशु का परिवार उनके इलाज का खर्च उठा पाने की हालत में नहीं था.

परिवार ने उनकी इलाज के लिए किए गए खर्च को कैसे पूरा किया? अंशु बताती हैं, “मेरे पिता एक किसान हैं और मेरी मां एक घरेलू महिला है. जाहिर तौर पर ये बहुत महंगा काम था. लेकिन उन्होंने किसी तरह इंतजाम किया. उन्होंने मेरा साथ दिया और मेरी मदद की.”

अंशु राजपूत कहती हैं, ये उनके माता-पिता का साथ था जिसने उन्हें अपने पांवों पर खड़ा होने में कामयाब बनाया. जब उन्होंने लखनऊ में एसिड अटैक सर्वाइवर्स की ओर से चलाए जा रहे कैफे “शीरोज हैंगआउट” में काम करने की ख्वाहिश जताई, तो उनके माता-पिता इसे देखने गए. उन्हें यहां का माहौल पसंद आया और उन्होंने काम करने की रजामंदी दे दी.

पिता का अंशु से कहना था, “तुम कब तक घर पर बैठोगी और दर्द सहन करोगी? ये काम करो और खुद को साबित करो. जिंदगी में आगे बढ़ो.” और उसने ये किया.

यूपी सरकार की मदद की जरूरत है

आज, अंशु राजपूत लखनऊ में “शीरोज हैंगआउट” कैफे में एक लाइब्रेरी मैनेजर हैं. वो आत्मनिर्भर हैं और पैसे कमा रही हैं जिससे वो खुश हैं. वो गर्व से कहती हैं, “मैं यहां बहुत, बहुत खुश हूं. मैं अपना पैसा कमाती हूं, कुछ घर भी भेज सकती हूं और इससे सिर्फ मैं ही नहीं बल्कि मेरे माता-पिता भी बहुत खुश हैं.”

लेकिन अंशु की मौजूदा जिंदगी मुश्किलों से अछूती नहीं है.

वो जिस कैफे में काम करती हैं वो मुश्किलों का सामना कर रहा है. जिस जमीन पर कैफे बनाया गया है, यूपी सरकार उसे वापस मांग रही है. मुख्यमंत्री को लिखे पत्र और अपीलों का कोई जवाब नहीं आया है. हालांकि उम्मीद अब भी है वो उम्मीद जगाई है- सुप्रीम कोर्ट ने, जिसने शीरोज को सरकार के कर्ज तले दबी इस जमीन को अपने पास रखने के लिए एक्सटेंशन दे दिया है.

आईआईएम लखनऊ में टेडेक्स कार्यक्रम में अंशु राजपूत (फोटो: YouTube)

वो बिना लाग-लपेट के कहती हैं, “ये कैफे मेरा घर है, ये हमारा घर है. एसिड सर्वाइवर को कहीं भी नौकरी नहीं मिल सकती है, भले ही उनके पास योग्यता हो. वो हमेशा चेहरे को देखते हैं.”

अंशु कहती हैं कि एसिड हमले के पीड़ितों के साथ जनता का समर्थन होता है, लेकिन सरकार का नहीं. यहां तक कि जिन लोगों ने हमले के बाद उनसे किनारा कर लिया था, वे भी आज उनके साथ अच्छा बर्ताव करते हैं. और उनकी नए प्रेरणा ने उन्हें दूसरों को प्रेरित करने की ताकत दी है.

2018 की शुरुआत में आईआईएम लखनऊ में टेडेक्स कार्यक्रम में अंशु की मोटिवेशनल स्पीच ऑनलाइन काफी लोकप्रिय है.

भविष्य में गिटार और दूसरों के लिए एक स्कूल

भविष्य के लिए उनकी क्या योजनाएं हैं?

खिलखिलाती हुई अंशु कहती हैं, “ मैं शादी के बारे में सोचती भी नहीं हूं. मेरे मां-बाप मुझ पर दबाव नहीं डालते हैं, उनका मुझसे सिर्फ इतना कहना है कि जब मुझे पसंद का आदमी मिल जाए, तो उन्हें बता दूं. ये मेरी मर्जी पर निर्भर है. आखिरकार ये मेरी जिंदगी और मेरा भविष्य है.”

इसके बजाय, अंशु राजपूत उन चीजों के साथ जिंदगी को आसान बनाना चाहती हैं, जिनको वो सबसे ज्यादा प्यार करती हैं. वो गिटार बजाने और डांसिंग करने अपनी ख्वाहिश को पूरा करने के साथ-साथ एक स्कूल बनाना चाहती हैं.

अंशु राजपूत सिर्फ एक एसिड अटैक सर्वाइवर नहीं हैं. वो एक फाइटर हैं. वो समाज को वापस कुछ देना चाहती हैं, जिसने उन्हें एक बार अकेला छोड़ दिया था.

क्या आप अंशु राजपूत जैसी किसी यंग अचीवर को जानते हैं? नीचे क्विंट के “मी, द चेंज” कैंपेन के लिए उन्हें नाॅमिनेट करें!

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Published: 26 Nov 2018,08:03 PM IST

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