वीडियो एडिटर: प्रशांत चौहान
कैमरा: अथर रातहर
प्रोड्यूसर: वत्सला सिंह
कोलकाता से 170 किलोमीटर दूर है जिला झाड़ग्राम. भीड़भाड़ से अलग, हरे-भरे इलाके में साइकिल पर सवाल औरत-मर्द और रेडियो सुनते लोग, दिन में यहां कुछ ऐसा ही नजारा दिखता है. रेडियो सुनना यहां के लोगों का फेवरेट टाइम पास है और सबसे ज्यादा यहां के लोगों को पसंद है शिखा मंडी को सुनना. आदिवासी समुदाय से आने वाली शिखा 90.4 एफएम रेडियो मिलन की आरजे हैं. वो अपनी मूल जनजातीय भाषा- संथाली में अपना शो ‘जोहार झाड़ग्राम’ होस्ट करती हैं. वो देश की पहली आरजे हैं जो संथाली में पूरा शो होस्ट करती हैं.
संथाल भारत में तीसरी सबसे बड़ी जनजाति है. वे ज्यादातर पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा, झारखंड और असम राज्यों में हैं. पश्चिम बंगाल में संथाल सबसे बड़ी जनजातीय समुदाय है. इनकी संख्या करीब 42 लाख है, लेकिन इनका प्रतिनिधित्व काफी कम देखने को मिलता है.
यहां तक कि इनके इलाके में भी इनकी भाषा में कोई टीवी या रेडियो प्रोग्राम नहीं आता. शिखा बताती हैं कि वो आकाशवाणी सुनते हुए बड़ी हुई हैं. उसमें संथाली गाने और संगीत का एक कार्यक्रम आता था. वहीं से उनके अंदर एक शौक जागा.
बचपन में खेलने के अलावा एक चीज जो मुझे बहुत पसंद थी वो था रेडियो सुनना. रोज शाम में संथाली गानों का आकाशवाणी प्रोग्राम आता था जिसे मैं सुनती थी. उसके गाने, आरजे की बात करने के तरीके की नकल करती थी. मेरे घर में लोगों का सोचना है कि लड़की पढ़ेगी और उसके बाद सरकारी काम करेगी. मैं अपनी जिंदगी उसी के हिसाब से चला रही थी. लेकिन मेरे सपने को पूरा करने का मौका मुझे मिलेगा, ये मैंने कभी नहीं सोचा था.शिखा मंडी, रेडियो जाॅकी
शिखा आदिवासियों के गांव बेलपहाड़ी से हैं. ये गांव एक ऐसे इलाके में पड़ता है जो माओवाद से जूझता रहा है. 2016 तक, शिखा का गांव बेलपहाड़ी माओवादी हिंसा से घिरा था. पढ़ाई के लिए शिखा को कोलकाता में अपने चाचा के घर भेजा गया. वहां बंगाली भाषी छात्रों के साथ स्कूल में पढ़ना शिखा के लिए आसान नहीं था.
मेरा गांव नक्सली इलाका कहलाता है. घरवालों ने सोचा कि अगर हम बाहर नहीं गए तो हमारी पढ़ाई नहीं हो पाएगी. मेरे परिवार ने मुझे कोलकाता भेज दिया. मैं जब साढ़े तीन साल की थी तो मुझे कोलकाता लाया गया. वहां लोग सबके साथ दोस्ती करना नहीं चाहते. मेरे साथ दोस्ती न करने की वजह ये थी कि मैं देखने में उनके जैसी नहीं थी. मैं संथाल थी- एक जनजाति परिवार से. वहां लोगों की सोच थी कि जंगल में रहने वाले आदिवासी उनके साथ उठ-बैठ नहीं सकते. मुझे ये बातें बुरी लगती थीं. मुझे नजरअंदाज करने की वजह यही थी. लेकिन मेरा काॅन्फिडेंस काफी है मेरे लिए और इस के लिए मुझे गोरे रंग की जरूरत नहीं है. हमलोग आदिवासी हैं और आदिवासी शब्द को बेइज्जती के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन मुझे आदिवासी होने से कोई परेशानी नहीं होती. मुझे अच्छा लगता है कि मैं आदिवासी परिवार से आती हूं जिनका लगाव प्रकृति से है. ये बात मेरे दिल को छू जाती है.शिखा मंडी, रेडियो जाॅकी
शिखा एक इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट में पढ़ाई कर रही थीं और नौकरी के लिए तैयार थीं तभी उन्हें रेडियो मिलन में आरजे की पोस्ट के बारे में पता चला और वो बन गईं संथालों की आवाज.
शिखा चाहती हैं कि लोग संथाल, उनकी भाषा और उनकी संस्कृति के बारे में जानें.
2019 के आम चुनाव में, शिखा पहली बार वोट डालेंगीं. क्विंट ने उनसे पूछा कि उनके लिए चुनाव में क्या मायने रखता है. वो क्या बदलाव चाहती हैं?
ऐसे कई स्टूडेंट्स हैं जो पढ़ना चाहते हैं लेकिन आसपास स्कूल नहीं होने की वजह से उन्हें बंगाल जाने के लिए मजबूर होना पड़ता है, दूसरी भाषा को अपनाना पड़ता है. मैं चाहती हूं कि सब को अपनी मातृभाषा में पढ़ने का मौका मिले.शिखा मंडी, रेडियो जाॅकी
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