यूपी में मिड डे मील की थाली: खाने की और दिखाने की और

UP के प्राइमरी स्कूलों में एक बच्चे के मिड डे मील के लिए शासन ₹4.97 पैसे खर्च करता है.

पीयूष राय
भारत
Published:
<div class="paragraphs"><p>UPNama: यूपी में मिड डे मील की थाली: खाने की और दिखाने की और</p></div>
i

UPNama: यूपी में मिड डे मील की थाली: खाने की और दिखाने की और

फोटो- क्विंट हिंदी  

advertisement

यह तस्वीरें उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के मलकपुरा गांव के प्राथमिक विद्यालय की हैं. हाथों में खाने की थाली लिए इस तस्वीर को बीजेपी नेताओं समेत सोशल मीडिया पर कई लोगों ने शेयर करते हुए यह कहा कि अगर दिल्ली के किसी विद्यालय में ऐसा होता तो अंतराष्ट्रीय अखबारों में सुर्खियां बनाई जातीं.

इस खबर की जब पड़ताल की गई तब निकल कर आया कि तस्वीर वाकई में उत्तर प्रदेश की है लेकिन जो दावे किए जा रहे हैं वह भ्रामक हैं. थाली में दिख रही पूरी, पनीर की सब्जी, सेब और आइसक्रीम उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा तय की गई मिड डे मील का हिस्सा नहीं है और ना ही रोजाना इस तरीके के लजीज व्यंजन इन सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले गरीब बच्चों को दिए जाते हैं.

बच्चे के हाथ में दिख रही है शाही थाली "तिथि भोजन" योजना के तहत है. तिथि भोजन योजना के अंतर्गत बच्चे के जन्म, व्यक्ति विशेष के जन्मदिन, विवाह की वर्षगांठ, त्यौहार या ऐसे ही किसी खास मौके पर समुदाय के किसी व्यक्ति या संस्था द्वारा सरकारी बेसिक स्कूलों के बच्चों को भोजन कराया जाता है.

अब बात करते हैं उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूलों में मिलने वाले मिड डे मील के बारे में. इसी साल जुलाई में मुजफ्फरनगर जिले में मिड डे मील खाने के बाद 30 बच्चों की तबीयत खराब हो गई थी जिनको बाद में इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था.

ग्रामीणों और स्कूल के बच्चों का आरोप था कि स्कूल में बनाए जा रहे मिड डे मील में छिपकली गिरने के बाद छात्रों की तबीयत खराब हुई थी. असली कारणों की जांच अभी हो रही है. पिछले साल इसी जिले के एक सरकारी स्कूल में मिड डे मील में मरा हुआ चूहा मिला था. भोजन के बाद तकरीबन 8 छात्रों की तबीयत खराब हुई थी.

उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूलों में आए दिन ऐसी खबरें आती हैं जिससे लगता है कि मिड-डे-मील की गुणवत्ता की जांच करने के लिए अधिकारियों के बजाय कीड़े मकोड़े, चूहे और छिपकली पहुंचते हैं.
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

एक तरफ नेता जी मिड डे मील पर झूठा दावा कर रहे हैं, दूसरी तरफ मिड डे मील का सच दिखाने वाले पत्रकार को सजा मिलती है. आपने 2019 के चर्चित नमक रोटी कांड के बारे में जरूर सुना होगा. मिर्जापुर के एक सरकारी स्कूल में बच्चों को मिड डे मील में नमक रोटी दी गयी.

इस खबर को दिखाने के लिए पत्रकार पवन जयसवाल पर स्थानीय प्रशासन द्वारा मुकदमा कराया गया था. इस घटना को लेकर विश्व स्तर पर किरकिरी हुई थी. आलोचना इस बात के लिए भी ज्यादा हुई थी कि सरकार मिड डे मील की दुर्दशा को सुधारने के बजाय उस खबर को दिखाने वाले पत्रकार के पीछे ही पड़ गई.

आपको बता दें कि उस खबर को दिखाने वाले पत्रकार पवन जायसवाल अब इस दुनिया में नहीं है. कैंसर से पीड़ित पवन जयसवाल इसी साल हम सबको अलविदा कह गए. सरकारी स्कूल में मिड डे मील में नमक रोटी देने वाली घटना की घटना एक बार फिर 2022 में हुई. घटना को स्वीकारते हुए सोनभद्र के बेसिक शिक्षा अधिकारी ने संबंधित अधिकारियों पर कार्रवाई करते हुए जांच के आदेश दे दिए हैं.

मिड डे मील संबंधित इन खबरों के मीडिया में आने के बाद विभाग के बड़े अधिकारी तत्परता से छोटी मछलियों को सस्पेंड कर सारा ठीकरा उन पर फोड़ देते हैं. सरकार कि मिड डे मील योजना की उदासीनता लगातार जारी है जिसका संज्ञान उच्च अधिकारियों शासन में बैठे लोग लेते तो हैं लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाता.

उत्तर प्रदेश के प्राइमरी स्कूलों में एक बच्चे के मिड डे मील के लिए शासन ₹4.97 पैसे खर्च करता है वही अपर प्राइमरी स्कूलों में प्रत्येक बच्चे पर शासन ₹7.45 पैसे खर्च करता है. इतने पैसे में उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूल के बच्चों को मिड डे मील में क्या व्यंजन मिलते होंगे और उसमें कितने पोषक तत्व शामिल होंगे इसका अंदाजा आप खुद लगा सकते हैं.

संसद से लेकर विधानसभा तक हर जगह सब्सिडी का मज़ा लेने वाले हमारे नेताओं को शायद ही अपने आने वाले भविष्य की चिंता होगी और शायद ही इन्होंने कभी मिड डे मील की दुर्दशा की बात सदन में उठाई होगी. मंदिर-मस्जिद की राजनीति में व्यस्त हमारी सरकारों को शायद ही इन गरीब बच्चों की थाली में झांकने का मौका मिलता है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT