advertisement
सड़क किनारे कुष्ठ रोगी पड़ा है. उसके घावों से मवाद निकल रहा है. मक्खियां भिनभिना रही हैं. कोई उस तरफ देखना भी नहीं चाहता. लेकिन एक युवा लड़की उसके पास जाती है, उसके घाव साफ करती है और फिर अपने सहयोगियों की मदद से उसे अपने सेवा केंद्र पर ले जाती है. इस युवा लड़की को आज दुनिया मदर टेरेसा के नाम से जानती है और उन्हीं मदर टेरेसा की संस्था मिशनरीज ऑफ चैरिटी सुर्खियों में है क्योंकि केंद्र सरकार ने विदेशों से दान के लिए जरूरी संस्था के FCRA रजिस्ट्रेशन को रिन्यू करने से इंकार कर दिया है.
कोढ़ व प्लेग जैसी बीमारियों से पीड़ित मरीजों की सच्चे दिल से मदद की. उन्हें भारत के लोगों और हिन्दुस्तान की मिट्टी से इतना प्यार हो गया कि पलटकर वापस जाने के बारे में सोचा ही नहीं. उन्हें कलकत्ता की संत टेरेसा की उपाधि दी गई.
मदर टेरेसा ने गरीबों की सेवा करने के लिए अपने 12 साथियों के साथ 7 अक्टूबर 1950 को कलकत्ता में मिशनरीज ऑफ चैरिटी संस्था की स्थापना की थी, जिसका उद्देश्य था कि जरूरतमंदों को फ्री में सेवा दी जा सके.
मौजूदा वक्त में इस संस्था के लगभग 5,167 सदस्य दुनिया के 120 से भी अधिक देशों में गरीब, बीमार, शोषित और वंचित लोगों की सेवा करने में अपना निःशुल्क योगदान दे रहे हैं.
वर्ष 1965 में पोप पॉल VI के एक फैसले के बाद मिशनरीज ऑफ चैरिटी एक इंटरनेशनल धार्मिक परिवार बन गया और वेनेजुएला में इसकी पहली इंटरनेशनल ब्रांच खोली गई. इसके बाद रोम, तंजानिया, ऑस्ट्रेलिया, संयुक्त राज्य अमेरिका के अलावा कई अन्य देशों में इससे जुड़ी संस्थाओं के द्वारा काम शुरू किए गए.
इसकी ब्रांचों में मिशनरी ब्रदर्स ऑफ चैरिटी, द कंटेम्पलेटिव ब्रदर्स, मिशन ऑफ चैरिटी फादर्स, इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ को-वर्कर्स और कंटेम्पलेटिव सिस्टर्स शामिल हैं.
एक मिशनरी के रूप में मदर टेरेसा का नाम कई विवादों में भी सामने आया. विशेष रूप से गर्भपात के अधिकारों का विरोध करने पर उनकी कड़ी आलोचना की गई. हाल ही में गुजरात पर मिशनरीज ऑफ चैरिटी पर धर्मांतरण के आरोप लगे, हालांकि संस्था ने इसे बेबुनियाद बताया.
जब मदर टेरेसा को नोबेल पुरस्कार देते वक्त पूछा गया कि विश्व शांति को बढ़ावा देने के लिए हम क्या कर सकते हैं?
उन्होंने इस पर कहा कि...
अमेरिका के कैथोलिक युनिवर्सिटी ने मदर टेरेसा को डॉक्टोरेट की उपाधि से सम्मानित किया और भारत के बनारस हिन्दू युनिवर्सिटी ने उन्हें डी-लिट की उपाधि से सम्मानित किया.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)