Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019केंद्र ने पलटा SC का फैसला, दिल्ली सरकार से छिना ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार

केंद्र ने पलटा SC का फैसला, दिल्ली सरकार से छिना ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार

Supreme Court ने दिल्ली सरकार को अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग का 'अधिकार' दिया था.

क्विंट हिंदी
भारत
Published:
<div class="paragraphs"><p>केंद्र ने पलटा SC का फैसला, दिल्ली सरकार से छिना ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार</p></div>
i

केंद्र ने पलटा SC का फैसला, दिल्ली सरकार से छिना ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार

(फोटो-क्विंट हिंदी)

advertisement

सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिल्ली सरकार (Delhi Government) को अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार देने के बाद, शुक्रवार (19 मई) को केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण बनाने के लिए एक अध्यादेश जारी किया किया. इसके तहत अब ग्रुप A के सभी और DANICS के अधिकारियों का स्थानांतरण और पोस्टिंग की सिफारिश करने की दिल्ली सरकार के पास होगी. लेकिन अंतिम निर्णय LG का मान्य होगा.

इस फैसले के बाद एक बार फिर केंद्र बनाम दिल्ली के बीच विवाद सामने देखने को मिल सकता है. दरअसल, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अध्यादेश, 2023 को सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ द्वारा पिछले सप्ताह के फैसले को पलटने के रूप में देखा जा रहा है, जिसमें SC ने दिल्ली सरकार को ट्रांसफर-पोस्टिंग का 'अधिकार' दिया था.

अदालत ने तब एक निर्वाचित सरकार के माध्यम से लोकतंत्र में लोगों के जनादेश के महत्व को जोर देते हुए रेखांकित किया था.

NCCSA करेगा निर्णय

अध्यादेश को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार अधिनियम, 1991 में संशोधन के रूप में लाया गया है. अध्‍यादेश के तहत राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण (NCCSA) का गठन किया जाएगा जिसके पास ट्रांसफर-पोस्टिंग और विजिलेंस का अधिकार होगा.

दिल्ली के CM इस प्राधिकरण के अध्यक्ष होंगे, जिसमें दिल्ली के प्रधान गृह सचिव पदेन सचिव होंगे और दिल्ली के मुख्य सचिव, प्रधान गृह सचिव प्राधिकरण के सचिव होंगे. ट्रांसफर-पोस्टिंग का फैसला सीएम का नहीं होगा, बल्कि बहुमत के आधार पर प्राधिकरण फैसला लेगा.

मुख्यमंत्री की सलाह के बाद LG का फैसला अंतिम माना जाएगा और वो चाहें तो फाइल को वापस लौटा सकते हैं या उसे मंजूरी दे सकते हैं.

अध्यादेश ने LG को न केवल अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग और उनसे संबंधित विजिलेंस मामलों के संदर्भ में है, बल्कि दिल्ली विधानसभा के दायरे से बाहर के मामलों में "अपने विवेकाधिकार में" कार्य करने वाले "प्रशासक" के रूप में पद पर आसीन व्यक्ति को दिल्ली में शासन के संदर्भ में भी है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT
अध्यादेश मंत्रिपरिषद के विभाग के सचिव को व्यापक अधिकार भी देता है: "अगर मंत्रि परिषद के सचिव की राय है कि मंत्रिपरिषद द्वारा विचार और निर्णय लिया गया प्रस्ताव प्रावधानों के अनुसार नहीं है कानून का है तो यह मंत्रिपरिषद के सचिव का कर्तव्य होगा कि वह इसे निर्णय लेने के लिए उपराज्यपाल के संज्ञान में लाए."

केंद्र के फैसले की सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली सरकार के वकील रहे भिषेक मनु सिंघवी ने आलोचना की है.

उन्होंने ट्वीट कर लिखा, "कानून से अनभिज्ञ लोगों द्वारा तैयार किया गया अध्यादेश. सिविल सेवा पर दिल्ली सरकार को अधिकार संविधान पीठ ने दिया था जिसे अध्यादेश के जरिये पलट दिया गया. संघीय व्यवस्था, बुनियादी ढांचे के हिस्से को खत्म किया गया. अधिकारियों की जवाबदेही को बिल्कुल उलट दिया गया है. मुख्यमंत्री उसकी अध्यक्षता करेंगे जहां उनके पास खुद बहुमत नहीं है.'

सिंघवी ने आगे कहा, "संवैधानिक सिद्धांत यह है कि नौकरशाह चुनी हुई सरकार के प्रति जवाबदेह होते हैं. लेकिन आपने नौकरशाहों को अन्य नौकरशाहों का प्रभारी बना दिया है. आप कैसे अध्यादेश के जरिए संविधान का उल्लंघन कर सकते हैं? इसे चुनौती दी जाएगी और इसे संसद के जरिए पारित नहीं होने दिया जाएगा."

सिंघवी के ट्वीट्स को अरविंद केजरीवाल ने भी रिट्वीट किया है, जबकि दिल्ली की कैबिनेट मंत्री आतिशी ने अध्यादेश को "अदालत की अवमानना का स्पष्ट मामला" करार दिया.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT