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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बुधवार, 17 मई को कहा कि उपराज्यपाल को दिल्ली नगर निगम में एल्डरमैन नामित करने की शक्ति देने का मतलब होगा कि वह एक निर्वाचित नागरिक निकाय को अस्थिर कर सकते हैं. अदालत ने हैरानी जताते हुए कहा कि क्या ये नामांकन केंद्र के लिए इतना चिंता का विषय थे?
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला की पीठ ने दिल्ली सरकार की उस याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें एलडरमैन नामित करने के उपराज्यपाल के अधिकार को चुनौती दी गई थी.
एमसीडी में 250 निर्वाचित और 10 मनोनीत सदस्य हैं.
उपराज्यपाल कार्यालय की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल संजय जैन ने दिल्ली के संदर्भ में कहा, "यह ध्यान रखना उचित है कि 69वां संशोधन आया और GNCTD अधिनियम को अधिसूचित किया गया, जिसमें सामूहिक रूप से दिल्ली के शासन के लिए तंत्र शामिल है."
पीठ ने संजय जैन से कहा कि उनकी दलील का मतलब है कि MCD स्वशासन की संस्था है और यहां LG की भूमिका प्रशासक की भूमिका से अलग है, जब वह अनुच्छेद 239AA के तहत मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर काम करते हैं.
अधिनियम का उल्लेख करते हुए, ASG संजय जैन ने कहा कि कुछ शक्तियां हैं जो प्रशासकों को सौंपी जाती हैं और कुछ अन्य सरकार को दी जाती हैं.
न्यायमूर्ति नरसिम्हा ने जैन से पूछा कि क्या उनका मतलब है कि प्रशासक को दी गई शक्ति राज्य से स्वतंत्र है और राज्य सरकार को नहीं दी जा सकती है?
दिल्ली सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने कहा कि राज्य सरकार को MCD में लोगों को नामित करने के लिए अलग से कोई अधिकार नहीं दिया गया है और पिछले 30 वर्षों से लेफ्टिनेंट गवर्नर की सहायता और सलाह पर एलडरमेन को नामित करने की प्रथा है. नगर सरकार का पालन किया गया है.
पीठ ने कहा कि उपराज्यपाल को एल्डरमैन नामित करने की शक्ति देने का प्रभावी अर्थ यह होगा कि वह लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित एमसीडी को अस्थिर कर सकते हैं. क्योंकि इन एल्डरमैन को स्थायी समितियों में नियुक्त किया जाता है और उनके पास मतदान शक्ति होती है.
अदालत ने मंगलवार को संविधान के तहत उपराज्यपाल की "शक्ति के सोर्स" और निर्वाचित सरकार की सहायता और सलाह के बिना एमसीडी में एल्डरमैन को नामित करने के कानून के बारे में पूछा था.
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