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केंद्र सरकार FCRA यानी फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट में बदलाव करने जा रही है. सरकार इस कानून के प्रावधानों को और ज्यादा सख्त बनाने की कोशिश में है. केंद्र एक बिल के जरिए इस कानून में 'पब्लिक सर्वेंट' को वर्जित केटेगरी में डालने और रजिस्ट्रेशन के लिए आधार को अनिवार्य बनाना चाहती है. इसके लिए मोदी सरकार लोकसभा में फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन (अमेंडमेंट) बिल 2020 पेश करेगी.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इस बिल के जरिए किसी संगठन के फॉरेन फंड से प्रशासनिक खर्च को 20% तक लाया जाएगा. पहले ये खर्च 50% तक होता था. इसके अलावा किसी संगठन के फॉरेन फंड को रोकने की पावर भी सरकार के पास होगी.
रिपोर्ट के मुताबिक, बिल में लिखा है, "साल 2010 और 2019 के बीच फॉरेन कंट्रीब्यूशन का सालाना इनफ्लो लगभग दुगना हो गया है. लेकिन जिन्हें ये कंट्रीब्यूशन मिला है, उसमें से कई संगठनों ने इसे उस काम के लिए इस्तेमाल नहीं किया जिसके तहत उनका रजिस्ट्रेशन हुआ था. इनमें से कई ने सालाना रिटर्न और सही अकाउंट भी नहीं रखे हैं. इसकी वजह से 2011 से 2019 के बीच केंद्र सरकार ने NGO समेत ऐसे 19,000 संगठनों का रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट रद्द कर दिया."
केंद्र सरकार कानून में बदलाव कर 'पब्लिक सर्वेंट' को भी इसके दायरे में लाना चाहती है. मतलब कि कोई भी पब्लिक सर्वेंट फॉरेन कंट्रीब्यूशन नहीं ले पाएगा. पहले इस दायरे में सांसद, विधायक, चुनावी उम्मीदवार, पत्रकार, प्रिंट और ब्रॉडकास्ट मीडिया, जज, सरकारी नौकर या कर्मचारी शामिल थे.
इसके अलावा फॉरेन कंट्रीब्यूशन किसी और व्यक्ति या किसी संगठन को ट्रांसफर करने पर रोक लगाई जाएगी. सेक्शन 17 में बदलाव के बाद सर्टिफिकेट पाने वाला कोई भी शख्स फॉरेन कंट्रीब्यूशन सिर्फ 'FCRA अकाउंट' में ही ले पाएगा. हालांकि, सर्टिफिकेट पाने वाले संगठन इस्तेमाल के लिए फॉरेन कंट्रीब्यूशन को दूसरे अकाउंट में ट्रांसफर कर सकते हैं.
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