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मानव जीवन पर संकट मंडरा रहा है, क्योंकि 'जल ही जीवन है' और दुनियाभर में पानी की किल्लत बढ़ती जा रही है. इसी संकट को समझते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर 'जल जीवन मिशन' का ऐलान किया.
सरकार ने इसके लिए 3.5 लाख करोड़ रुपये अलग से भी रखे हैं. ये मिशन सुनिश्चित करेगा कि हर घर को पीने का पानी मिले. लेकिन सवाल ये है कि क्या सरकार अपने इस मिशन में सफल हो पाएगी?
भारत अपने इतिहास के सबसे खराब जल संकट से जूझ रहा है. पानी के इस संकट को हल्के में लेना भविष्य के लिए बिल्कुल ठीक नहीं होगा. नीति आयोग के मुताबिक, साल 2021 तक भारत के 21 शहरों में पानी खत्म हो जाएगा. इनमें से 11 शहरों पर सबसे बड़ा पानी का खतरा मंडरा रहा है. इनमें दिल्ली, चेन्नई, बेंगलुरु, हैदराबाद, नासिक, जयपुर, अहमदाबाद और इंदौर जैसे बड़े-बड़े शहर भी शामिल हैं.
चेन्नई, भारत का छठा सबसे बड़ा शहर है. चेन्नई की चालीस लाख से ज्यादा आबादी को पानी की आपूर्ति यहां के चार जलाशयों से होती है. लेकिन ये चारों जलाशय सूखने की कगार पर आ गए हैं. अब यहां के लोगों के लिए एकमात्र आसरा सिर्फ सरकारी पानी टैंकर ही है.
चेन्नई में पानी की ऐसी कमी हो गई है कि राज्य सरकार ने इसी साल जुलाई में लोगों की प्यास बुझाने के लिए ट्रेन से पानी पहुंचाने का फैसला लिया. लेकिन ये ट्रेन भी लोगों की प्यास बुझाने में कामयाब नहीं हो पाई. क्योंकि यहां रोजाना 830 मिलियन लीटर पानी की जरूरत है जबकि ट्रेन से लोगों को सिर्फ 525 मिलियन लीटर पानी मिल सका.
किसानों की आत्महत्या के सबसे ज्यादा मामले महाराष्ट्र से आते हैं, लेकिन इसका भी मुख्य कारण है 'पानी'. महाराष्ट्र में औरंगाबाद के मराठवाड़ा की हालत ये है कि किसानों को खेती के लिए टैंकर में पानी खरीदना पड़ता है. यहां के बांधों में पानी खत्म होने को है. पिछले साल की तुलना में एक तिहाई पानी ही बचा है. इसके अलावा यहां बारिश भी बहुत कम होती है. ऐसे में यहां से किसानों के आत्महत्या के ज्यादा मामले आते हैं.
हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला भी पानी की कमी का हर साल सामना करती है. खास तौर से गर्मी में यहां पानी की इतनी मारा-मारी हो जाती है कि लोग धरना-प्रदर्शन करने लगते हैं. पर्यटकों को भी यहां आकर खासा परेशानी उठानी पड़ती है. पिछले साल गर्मियों के मौसम में परेशानी को देखते हुए होटल मालिकों ने पर्यटकों से शिमला न आने की अपील तक कर दी थी. वहीं कई होटलों ने तो बुकिंग लेना भी बंद कर दिया था. सार्वजनिक शौचालय पानी की कमी के कारण बंद कर दिए गए.
देश की राजधानी दिल्ली को भी पीछे न समझें. दिल्ली के लोग भी पानी की कमी से जूझ रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, 2035 तक दिल्ली की जनसंख्या 52 फीसदी बढ़कर 28 मिलियन से 43 मिलियन हो जाएगी. वहीं चेन्नई की जनसंख्या 47 फीसदी बढ़कर 15 मिलियन पर पहुंच जाएगी. जब जनसंख्या बढ़ेगी, तो पानी की डिमांड भी उतनी ही तेजी से बढ़ेगी. ऐसे में अंदाजा लगा सकते हैं, आगे पानी संकट कितना भयावह होने वाला है.
भारत दुनिया के उन 17 देशों में शामिल है जो ‘अत्यंत गंभीर’ जल संकट का सामना कर रहे हैं. जहां ऐसी आशंका है कि वहां पानी खत्म होने के करीब है. विश्व संसाधन संस्थान के ‘एक्वाडक्ट वॉटर रिस्क एटलस’ के मुताबिक, ‘अत्यंत गंभीर’ जल संकट वाले देशों की लिस्ट में भारत 13वें स्थान पर है. खास बात ये है कि भारत की जनसंख्या इस कैटेगरी के बाकी 16 देशों की जनसंख्या से तीन गुना से भी ज्यादा है.
हाल ही में राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल योजना (एनआरडीडब्ल्यूपी) की रिपोर्ट ने राज्यों में चल रही पेजयल योजनाओं की खामियां उजागर की थी. इस रिपोर्ट में बताया गया था कि योजना के तहत 2017 तक गांवों के 50 फीसदी घरों में पीने का पानी उपलब्ध कराना था. इसके तहत 35 फीसदी घरों में कनेक्शन के जरिए पानी पहुंचाया जाना था. लेकिन 2017 तक महज 17 फीसदी ग्रामीण परिवारों को ही पीने योग्य पानी या पाइपलाइन से पानी का कनेक्शन मिल सका.
‘नदियां’, पानी का प्रमुख स्त्रोत है लेकिन देश की तमाम बड़ी नदियों की स्थिति भी डरावनी है. जलपुरुष' के नाम से चर्चित राजेंद्र सिंह देश में पानी संकट पर बड़ी चिंता जाहिर कर चुके हैं. उन्होंने कहा था, खेती पानी के बिना चौपट हो रही है. नदियों का पानी किसान की जगह उद्योगपतियों को खुलेआम बेचा जा रहा है. देश में गंगा जैसी 'पवित्र नदी' के साथ मजाक किया जा रहा है, सफाई के नाम पर सिर्फ बातें की जा रही हैं.
भारत के कुछ शहर भयंकर सूखे की मार झेल रहे हैं, तो कहीं पर भारी बारिश और बाढ़ ने तबाही मचा रखी है. इस साल देश के चार राज्यों केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र और गुजरात में बाढ़ से 225 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है.
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