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भारत में कोई भी नेता जब जनता को संबोधित करता है, तो आमतौर पर उसका संबोधन होता है- भाइयों-बहनों, देशवासियों आदि. लेकिन इस देश का एक नेता ऐसा भी है जो खुद को अपने प्रदेश के युवा लड़के, लड़कियों का मामा बताता है और ज्यादातर भाषणों में भाइयों-बहनों के बाद भांजे-भांजियों को संबोधित करता है. ऐसे नेता का नाम है मध्य प्रदेश के चौथी बार के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान. 5 मार्च को शिवराज सिंह चौहान का जन्मदिन है.
5 मार्च को शिवराज सिंह चौहान 62 साल के हो गए हैं. अपने जन्मदिन के दिन भी 'मामा' शिवराज ने एक खास संकल्प लिया है. ट्विटर पर अपने जन्मदिन की पूर्व संध्या पर शिवराज ने एक संदेश जारी किया
शिवराज सिंह चौहान जमीन से जुड़े नेता माने जाते हैं. उनके भाषण देने की शैली अलग है, कार्यकर्ताओं के बीच पैठ है. भाषण देते हुए शिवराज देसी भाषा बोलते हैं और कई बार बोलते-बोलते भावुक भी हो जाते हैं. पीएम मोदी की तरह शिवराज सिंह चौहान भी लंबे-लंबे भाषण देने की क्षमता रखते हैं और भाषण देते हुए जनता से उनका संबंध भी अच्छा स्थापित होता है.
हाल ही में शिवराज सिंह चौहान अपने बयानों के लिए फिर से चर्चा में आए हैं. पिछले 3 कार्यकालों में शिवराज की छवि एक मृदुभाषी जमीनी नेता की बनी थी. कभी भी उन्होंने अपने भाषणों में उग्र भाषा का इस्तेमाल नहीं किया था. लेकिन पिछले कुछ महीने में ऐसा कहा जाने लगा है कि वो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तरह ही फायरब्रांड पॉलिटिक्स में हाथ आजमा रहे हैं.
कई सारे राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि शिवराज का जो तेवर बदला है वो बीजेपी में मौजूदा नेतृत्व की मांग है. अगर शिवराज को राजनीति में और आगे बढ़ना है तो यही रास्ता है जो उन्हें अपने समकक्ष मुख्यमंत्रियों से आगे ले जा सकता है.
अपने जन्मदिन पर वृक्षारोपण जैसे कार्यक्रम को तरजीह देना और अपने सभी चाहने वालों, कार्यकर्ताओं, मंत्रियों, विधायकों से आग्रह करना कि 'जन्मदिन पर उन्हें फूलों का गुलदस्ता देने की बजाए पेड़ लगाएं', ये शिवराज की पर्यावरणवादी राजनीति का ही हिस्सा माना जा सकता है. जिस तरह पीएम मोदी अपने मूल पॉलिटिकल एजेंडे के साथ-साथ योग संस्कृति जैसी चीजों को बढ़ावा देने की पहल करते रहते हैं. उसी तरह शिवराज की हर दिन एक वृक्ष लगाने पहल भी भले ही राजनीति से दूर खड़ी नजर आती हो, लेकिन ये भी एक तरह से पॉलिटिक्स में मैसेजिंग का काम करेगी.
शिवराज सिंह चौहान ने अपने स्कूल जीवन से ही सियासत में कदम रख दिया था. आरएसएस कार्यकर्ता के रूप में शिवराज ने अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया और अब तक वे राजनीति में डटे हुए हैं. 1975 में शिवराज हायर सेकेंडरी स्कूल यूनियन के प्रेसिडेंट चुने गए. शिवराज सिंह चौहान ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में भी काफी वक्त तक जिम्मेदारियां संभालीं. वो ABVP में संगठन मंत्री भी रहे.
2018 में चंद सीटों की वजह से सत्ता गंवाने वाले शिवराज सिंह चौहान ने हार नहीं मानी. चुनाव हारने के बाद शिवराज फिर से सड़कों पर उतरे. जनता के मुद्दों की राजनीति शुरू और कमलनाथ सरकार को घेरते रहे. भले ही बीजेपी में उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया लेकिन वो मध्य प्रदेश से लगातार जुड़े रहे. राजनीतिक जानकार बताते हैं कि कमलनाथ सरकार गिराने से लेकर बीजेपी की सरकार सफलतापूर्वक बनाने में भी शिवराज सिंह चौहान की काफी अहम भूमिका रही.
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