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देश के हरित क्रांति के जनक और प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक प्रो. एमएस स्वामीनाथन (MS Swaminathan) का 98 साल की उम्र में निधन हो गया. वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे. उन्होंने 28 सितंबर को चेन्नई में अंतिम सांस ली. नॉर्मन बोरलॉग भले ही हरित क्रांति के जनक रहे हों, लेकिन भारत में हरित क्रांति के जनक मनकोम्बू सांबशिवन स्वामीनाथन ही थे. जब देश अकाल से जूझ रहा था, किसान परेशान थे, तब वो मसीहा बनकर आए और भारत में हरित क्रांति के अग्रदूत बने.
भारत के हरित क्रांति के जनक स्वामीनाथन अपने पीछे तीन बेटियां सौम्या, मधुरा और नित्या को छोड़ गए हैं. उनकी पत्नी मीना की 2022 में ही मौत हो गई थी. एम एस स्वामीनाथन के निधन पर पीएम मोदी ने शोक जताया है. प्रधानमंत्री ने सोशल मीडिया 'एक्स' पर ट्वीट कर लिखा...
एम.एस स्वामीनाथन एक कृषिविज्ञानी, कृषि वैज्ञानिक, प्लांट जेनेटिस्ट और मानवतावादी थे.
उनका जन्म 7 अगस्त 1925 को तमिलनाडु के तंजावुर जिले हुआ था.
उन्होंने यूके की कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से पीएचडी किया था.
स्वामीनाथन ने 1949 में आलू, गेहूं, चावल और जूट के आनुवंशिकी यानी जेनेटिक्स पर रिसर्च में अपना करियर शुरू किया था.
उन्होंने धान की अच्छी उपज वाली किस्मों को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिससे कम आय वाले किसानों को अच्छी उत्पादन करने में मदद मिली.
एमएस स्वामीनाथन को संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण प्रोग्राम ने उन्हें "आर्थिक पारिस्थितिकी के जनक" कहा था. 1960-70 के दशक में उन्होंने सी सुब्रमण्यम और जगजीवन राम समेत कई तत्कालीन कृषि मंत्री के साथ काम किया था और देश में हरित क्रांति लाने का मार्ग प्रशस्त किया. हरित क्रांति से देश में गेहूं और चावल की अधिक पैदावार करने में मदद मिली.
भारत में उच्च उपज देने वाली गेहूं और चावल की किस्मों को विकसित करने और उनका नेतृत्व करने के लिए, उन्हें 1987 में पहले वर्ल्ड फूड प्राइज से सम्मानित किया गया. इसके बाद उन्होंने चेन्नई में एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना की. स्वामीनाथन को 1971 में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार और 1986 में अल्बर्ट आइंस्टीन वर्ल्ड साइंस अवार्ड से भी नवाजा गया.
उन्हें पद्म श्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया था. इसके अलावा, स्वामीनाथन को एच के फिरोदिया पुरस्कार, लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय पुरस्कार और इंदिरा गांधी पुरस्कार भी दिया गया.
स्वामीनाथन ने विभिन्न कृषि अनुसंधान प्रयोगशालाओं यानी एग्रीकल्चरण रिसर्च लैबोरेट्रिज में प्रशासनिक पदों पर भी कार्य किया था. उन्होंने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और बाद में अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान के महानिदेशक के रूप में काम किया. उन्होंने 1979 में कृषि मंत्रालय के प्रिंसिपल सचिव के रूप में भी सेवा दी.
1988 में, स्वामीनाथन प्रकृति और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के अंतर्राष्ट्रीय संघ के अध्यक्ष बने. 2004 में उन्हें किसानों के राष्ट्रीय आयोग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था.
राष्ट्रीय किसान आयोग के अध्यक्ष के रूप में डॉ. स्वामीनाथन ने किसानों की समस्या को दूर करने की कोशिश की. उनकी ही अध्यक्षता में सिफारिश की गई कि एमएसपी यानी न्यूनतम बिक्री मूल्य 50 प्रतिशत हो, जिससे किसानों की समस्या दूर हो सके.
देश में अपने काम के अलावा, स्वामीनाथन का अंतराष्ट्रीय फलक पर भी काफी योगदान रहा. टाइम मैगजीन ने उन्हें 20वीं सदी के 20 सबसे प्रभावशाली एशियाई लोगों में शामिल किया था.
1960 के मध्य में खाद्य सुरक्षा से जूझ रहे भारत में अकाल की स्थिति बन गई. उन परिस्थितियों में भारत सरकार ने विदेशों से हाइब्रिड प्रजाति के बीज मंगाए. अपनी उच्च उत्पादकता के कारण इन बीजों को उच्च उत्पादकता किस्में (High Yielding Varieties- HYV) कहा जाता था.
HYV को साल 1960-63 के दौरान देश के 7 राज्यों के 7 चयनित जिलों में प्रयोग किया गया. यह प्रयोग सफल रहा और साल 1966-67 में भारत में हरित क्रांति को औपचारिक तौर पर अपनाया गया.
मुख्य तौर पर हरित क्रांति देश में कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिये लागू की गई एक नीति थी. इसके तहत अनाज उगाने के लिये प्रयुक्त पारंपरिक बीजों के स्थान पर उन्नत किस्म के बीजों के प्रयोग को बढ़ावा दिया गया. जिससे किसानों को अच्छी पैदावार होने लगी और देश खाद्य संकट से उबर गया.
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