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वीडियो एडटिर: संदीप सुमन
कृषि संबंधी नए कानूनों के खिलाफ देशभर में चल रहे प्रदर्शन के बीच एक टर्म काफी चर्चा में है- MSP यानी मिनिमम सपोर्ट प्राइस. हिंदी में MSP को न्यूनतम समर्थन मूल्य कहा जाता है.
आखिर MSP का मतलब क्या होता है? क्यों किसानों को MSP व्यवस्था खत्म होने का डर लग रहा है? MSP तय कैसे होता है? क्यों बार-बार MSP का मुद्दा उछलने के बाद भी इसे लेकर किसानों की समस्याओं का समाधान नहीं हो पा रहा? चलिए, ऐसे ही कुछ अहम सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करते हैं.
MSP का मतलब क्या होता है?
MSP सरकार की तरफ से घोषित कृषि उत्पादों का मूल्य होता है. मतलब अगर किसी कृषि उत्पाद का MSP 1000 रुपये प्रति क्विंटल है तो माना जाता है कि किसान को उस कृषि उत्पाद के लिए इतना मूल्य तो मिलना ही चाहिए.
सरकार कैसे तय करती है MSP?
केंद्र सरकार प्रमुख कृषि उत्पादों का MSP CACP की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए करती है. CACP यानी कमिशन फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट्स एंड प्राइसेज. CACP की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक, यह भारत सरकार के कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय का अटैच्ड ऑफिस है. यह जनवरी 1965 में अस्तित्व में आया था.
मौजूदा वक्त में, CACP 23 कमोडिटीज के MSP की सिफारिश करता है, जिनमें
CACP हर साल, कमोडिटीज के अलग-अलग 5 ग्रुप - खरीफ की फसलों, रबी की फसलों, गन्ना, कच्चे जूट और खोपरा - के लिए प्राइस पॉलिसी रिपोर्ट्स के रूप में सरकार को अपनी सिफारिशें देता है. प्राइस पॉलिसी रिपोर्ट तैयार करने से पहले CACP व्यापक प्रश्नावली तैयार करता है और इसे सभी राज्य सरकारों, संबंधित राष्ट्रीय संगठनों और मंत्रालयों को उनकी राय लेने के लिए भेजता है. CACP के मुताबिक, वो मांग और आपूर्ति, उत्पादन लागत, बाजार में प्राइस ट्रेंड जैसे पहलुओं को भी ध्यान में रखता है.
क्या MSP को लागू करने की कोई कानूनी बाध्यता है?
ICRIER के विजिटिंग सीनियर फेलो सिराज हुसैन ने क्विंट को बताया, ‘’भारत में MSP को लागू करने की कोई कानूनी बाध्यता नहीं है.’’ सिर्फ एक फसल के MSP को लेकर कानूनी पहलू नजर आता है और ये फसल है- गन्ना. दरअसल गन्ने का मूल्य शुगरकैन (कंट्रोल) ऑर्डर 1996 के हिसाब से तय होता है, जिसे आवश्यक वस्तु अधिनियम (Essential Commodities Act) के तहत जारी किया गया था. यह ऑर्डर गन्ने के लिए हर साल एक फेयर एंड रिम्युनेरेटिव प्राइस (FRP) तय करने की व्यवस्था देता है. FRP (पहले SMP) के हिसाब से पेमेंट की जिम्मेदारी चीनी मिलों की होती है.
MSP के लिए कृषि लागत की गणना कैसे होती है?
मोटे तौर पर फसलों की लागत कैलकुलेट करने के लिए तीन कैटिगरी का जिक्र होता है- A2, A2+FL, C2. A2 में फसल उत्पादन के लिए किए गए नकद खर्च जैसे- बीज, खाद, सिंचाई आदि शामिल होते हैं. A2+FL में नकद खर्च के साथ फैमिली लेबर यानी किसान परिवार का अनुमानित मेहनताना भी जोड़ा जाता है. जबकि C2 में नकद खर्च, फैमिली लेबर के अलावा खेत की जमीन का किराया और कुल कृषि पूंजी पर लगने वाला ब्याज भी शामिल किया जाता है.
किसानों को MSP व्यवस्था खत्म होने का डर क्यों है?
कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा का कहना है, ‘’किसानों का डर है कि नए कानून से धीरे-धीरे कृषि मंडियां (APMC) खत्म हो जाएंगी, जिससे MSP पर संकट आ सकता है.’’ MSP पर कथित संकट के पीछे उस प्रावधान का जिक्र हो रहा है कि किसान स्थानीय मंडी के बजाए, देश में जहां उपज का बेहतर मूल्य मिले उसे वहां बेच सकेंगे. इसे लेकर कई कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि कृषि मंडियों में कारोबारियों को मंडी शुल्क अदा करना होता है लेकिन जब वह बाहर खरीद करेंगे तो उन्हें कर नहीं देना होगा, ऐसे में एक-एक कर व्यापारी अपनी मांग को लेकर मंडी से बाहर जाने लगेंगे और मंडी एक बार खत्म हो गईं तो MSP का मिलना मुश्किल होगा.
हालांकि, केंद्र सरकार लगातार भरोसा दिला रही है कि मंडी व्यवस्था और MSP दोनों बरकरार रहेंगे.
यहां, एक सवाल ये भी उठता है कि देश में कितने किसान MSP पर अपनी फसलों को बेच पाते हैं? किसानों के मुद्दों पर सक्रिय दिखने वाले स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने अपने एक वीडियो में बताया है, ''शांता कुमार कमेटी ने 5 साल पहले बताया था कि 6 फीसदी किसानों को ही MSP मिलता है. वो शायद कम था, मेरे ख्याल से 15-20 फीसदी को मिलता है.'' ऐसे में कृषि विशेषज्ञ बहुत कम किसानों तक MSP की पहुंच को भी चिंताजनक बताते हैं.
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