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बिहार के मुजफ्फरपुर में जो हुआ, उससे सुशासन बाबू मतलब नीतीश कुमार के राज में दु:शासन की कहानी याद आ रही है. हां, वही महाभारत वाला दु:शासन. वो दु:शासन, जिसने द्रोपदी का चीर हरण किया था... लेकिन दु:शासन इस तरह सुशासन के दौर में जन्म लेगा, किसी ने सोचा नहीं होगा.
सोचा तो किसी ने ये भी नहीं होगा कि 13 साल से बिहार की सत्ता पर काबिज नीतीश कुमार की नाक के नीचे मासूम लड़कियां के साथ दरिंदगी होती रहेगी और नीतीश जी सिस्टम को ही दोषी करार देंगे.
सिस्टम को कोसते-कोसते नीतीश जी भूल ही गए कि वो बलात्कार जैसे रूह कंपा देने वाले गुनाह पर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे. बिहार की उन बेटियों के साथ हुई हैवानियत पर बोलते हुए नीतीश कुमार कभी व्यंग्य कसते, तो कभी चवनिया मुस्कान देते.
यकीन न हो तो खुद ही देख लीजिये. नीतीश जी जब सिस्टम की नाकामी गिना रहे थे, तब कभी हंसी-ठिठोली हो रही थी, तो कभी मुस्कुराहट के तीर छोड़े जा रहे थे.
पिछले 13 सालों से नीतीश कुमार को सब कुछ 'अच्छा' सुनने की ऐसी आदत लग गई थी कि उन्हें चीख के बीच भी तारीफ चाहिए. इसलिए सीएम साहब ने मीडिया को पॉजिटिव खबर दिखाने की नसीहत तक दे डाली.
नीतीश जी ने कहा:
तो आपके हिसाब से ये एकाध चीज है, चलिए नीतीश जी तो आप ही बताइए कि क्या पॉजिटिव दिखाएं,
चलिए मान लिया कि उन लड़कियों के दर्द को जानने के लिए आपने ही TISS (Tata Institute of Social Sciences) से ऑडिट करवाया, सब आपने ही करवाया, तो फिर ऑडिट रिपोर्ट सबमिट करने के दो महीने बाद 31 मई को FIR क्यों हुई?
ब्रजेश ठाकुर को गिरफ्तार करने में इतने दिन कैसे लग गए? रेस्क्यू के बाद मधुबनी में रखी गई लड़कियों में से एक लड़की गायब कैसे हो गई? क्या ये भी सिस्टम की गलती है या फिर सवाल करने वाले पत्रकारों की?
कैमरा- शिव कुमार मौर्या
वीडियो एडिटर- अभिषेक शर्मा
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