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भारत में नई शिक्षा नीति को अब मंजूरी मिल चुकी है. जिसमें हायर और स्कूली एजुकेशन सिस्टम को लेकर कई अहम बदलाव किए गए हैं. जिनमें 4 साल के ग्रेजुएट प्रोग्राम का विकल्प देना, मल्टीपल एंट्री-एग्जिट सिस्टम के तहत छात्रों को वापस पढ़ाई का मौका देना और ऐसे ही कई नई व्यवस्थाएं की गई हैं. लेकिन इस नई एजुकेशन पॉलिसी को लेकर देश के कुछ शिक्षाविदों ने भी अपनी राय रखी है.
एजुकेशन के क्षेत्र में काम करने वालीं मीतासेन गुप्ता ने भी इस नई शिक्षा नीति पर अपनी बात रखी. उन्होंने सबसे पहला सवाल इस बात पर उठाया कि आखिर कैसे 5वीं क्लास तक बच्चे अपनी मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाई कर सकते हैं. उन्होंने कहा,
हालांकि मीतासेन गुप्ता ने मल्टी एंट्री और एग्जिट सिस्टम को काफी बेहतर बताया है. उन्होंने कहा कि इससे एजुकेशन जिंदगी से खत्म नहीं होगी. इससे छात्रों के पास ये समझने का वक्त होगा कि वो जिंदगी में किस फील्ड में बेहतर कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि भारत में एजुकेशन की नई पॉलिसी तो आ गई है, लेकिन अभी इसे जमीनी स्तर पर लागू करना एक बड़ी चुनौती है.
इसके अलावा दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व वीसी दिनेश सिंह ने भी इस नई एजुकेशन पॉलिसी को लेकर अपनी राय रखी. उन्होंने हायर एजुकेशन में किए गए बदलावों को अच्छा कदम बताया. उन्होंने कहा,
"जब तक स्कूली शिक्षा को नहीं सुधारेंगे तब तक उच्च शिक्षा ठीक नहीं हो सकती है. क्योंकि स्कूल की शिक्षा ही वो नींव है, जिस पर उच्च शिक्षा की इमारत खड़ी होती है. मौजूदा नीति में रटने की व्यवस्था ज्यादा है, यानी बिना समझे रटकर किसी चीज को याद कर लो. नई शिक्षा नीति में इसे खत्म करने की बात की गई है. हमने डीयू में छात्रों को ये सुविधा दी थी बीच में पढ़ाई छोड़ते हैं और वापस आकर पढ़ाई जारी रखना चाहते हैं तो आपको दोबारा एडमिशन लेने की जरूरत नहीं. हमने डिप्लोमा देना भी शुरू किया था. सरकार अब वही मॉडल देशभर में लागू कर रही है, जो अच्छी बात है. अब एक साल की पढ़ाई करने वाले बच्चे को कम से कम एक सर्टिफिकेट तो मिलेगा."
उन्होंने आगे कहा कि, शिक्षा व्यवस्था में तमाम सुधारों का स्वागत है लेकिन सलाह ये है कि इन्हें लागू करने के लिए अच्छी सोच वाले और रचनात्मक लोगों को लाया जाए. अगर ये नहीं हुआ तो फायदा नहीं होगा.
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