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देश के कई हिस्सों से दलितों और आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार की खबरें सुर्खियां बनती हैं. दलितों के खिलाफ अपराध के मामले में अब भी कमी आती नहीं दिख रही है, NCRB के आंकड़े इस बात की तस्दीक भी करते हैं. ये आंकड़े बताते हैं कि अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराध पांच सालों में करीब पांच फीसदी बढ़ा है. साल 2014 में अनुसूचित जाति (SC) के खिलाफ अपराध के 40,401 मामले सामने आए थे. 2018 में बढ़कर ये आंकड़ा 42,793 पर पहुंच गया. साल 2017 में तो एससी के खिलाफ अपराधों की संख्या 43,203 तक पहुंच गई थी.
2018 डेटा के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति पर अपराध के सबसे ज्यादा मामले दर्ज हुए. पूरे देश में SC पर हुए अपराधों के 28% फीसदी मामले यूपी से सामने आए. इसके बाद बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा अपराध हुए.
हालांकि कुछ राज्य ऐसे भी हैं जहां SC पर अपराध का कोई मामला दर्ज नहीं हुआ. ये राज्य हैं- मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश. इसके अलावा जम्मू-कश्मीर और त्रिपुरा में 1-1 मामला सामने आया.
साल 2018 में SC-ST से रेप, मर्डर, यौन उत्पीड़न, किडनैपिंग जैसे कई गंभीर अपराध हुए. इसमें रेप के मामले सबसे ज्यादा देखे गए. 2018 में अनुसूचित जाति और आदिवासियों से करीब 4000 रेप मामले दर्ज किए गए.
आंकड़े बताते हैं कि SC पर अत्याचार के लिए उत्तर प्रदेश नंबर-1 है. यूपी में भी दलितों पर राजधानी लखनऊ में सबसे ज्यादा अपराध हुआ है.
अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराध मामले में देश के टॉप-5 शहरों की बात करें, तो यूपी के दो शहर आते हैं. एक लखनऊ और दूसरा कानपुर.
अनुसूचित जातियों पर अत्याचार मामले में गिरफ्तारी भी सबसे ज्यादा यूपी से ही हुई हैं. इस मामले में साल 2018 में 62,800 लोगों की गिरफ्तारी हुई, जिसमें से 20,151 लोग यूपी से गिरफ्तार किए गए, इनमें 366 महिलाएं भी शामिल हैं. वहीं 7953 लोगों को दोषी करार दिया गया और 16,852 लोगों को आरोपों से बरी कर दिया गया.
वहीं ST पर अपराध मामले में सबसे ज्यादा गिरफ्तारियां मध्य प्रदेश में हुई हैं. देशभर 9726 मामले दर्ज किए गए, जिसमें से 2569 लोगों को अपराध मुक्त कर दिया गया.
आंकड़ों से जाहिर है कि दलितों और आदिवासियों पर अत्याचार का सिलसिला जारी है. आखिर कब कम होंगे ये अपराध?
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