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नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली ने 13 जुलाई को एक नया विवाद छेड़ दिया. ओली ने कहा कि भगवान राम नेपाली थे और उनकी अयोध्या नेपाल में बीरगंज के पश्चिम में थी. ओली के इस बयान पर विवाद शुरू हो गया. भारत में साधु-संतों ने पीएम ओली के इस बयान की आलोचना की. विवाद बढ़ता देख नेपाल के विदेश मंत्रालय ने अब इस बयान पर सफाई जारी की है.
विदेश मंत्रालय ने कहा कि पीएम केपी ओली का बयान किसी राजनीतिक विषय से संबंधित नहीं था और इसकी मंशा किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने की नहीं थी. मंत्रालय ने कहा, "पीएम के बयान का मकसद अयोध्या के महत्त्व और उसके सांस्कृतिक मूल्यों को कम आंकना नहीं था."
मंत्रालय ने कहा कि नेपाल और भारत के प्रधानमंत्रियों ने मई 2018 में रामायण सर्किट लॉन्च किया था. जनकपुर-अयोध्या पैसेंजर बस सर्विस इसी का हिस्सा है. नेपाल के विदेश मंत्रालय ने कहा कि ये तथ्य दोनों देशों और उनके लोगों के बीच सांस्कृतिक आत्मीयता के बंधन को दिखाते है.
केपी ओली ने राम को नेपाली बताने के अलावा आरोप लगाया था कि भारत ने नेपाल के सांस्कृतिक पहलुओं पर अतिक्रमण कर लिया. उन्होंने कहा, ''अयोध्या उत्तर प्रदेश में नहीं थी, बल्कि ये वाल्मिकी आश्रम के करीब नेपाल में थी. जो कि थ्योरी में है. जहां दशरथ के लिए पुत्रेष्टी यज्ञ करने वाले पंडित रिदि रहते थे. वाल्मिकी नगर आज के पश्चिमी चंपारण में है जो कि बिहार का हिस्सा है और इसके कुछ हिस्से नेपाल में भी हैं."
ओली ने सवाल पूछा कि अगर अयोध्या उत्तर प्रदेश में थी तो फिर सीता जी से शादी के लिए राम जनकपुर कैसे आए? उस समय कोई फोन नहीं था तो दोनों में संपर्क कैसे हुआ? उस समय आसपास के साम्राज्यों के बीच ही शादी ब्याह होता था, लोग इतनी दूर जाकर शादी नहीं करते थे.
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