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‘स्वामी के लिए हमारे पास स्ट्रॉ-सीपर नहीं’- 20 दिन बाद NIA का जवाब

इस मांग पर जवाब देने के लिए NIA ने 20 दिन का वक्त मांगा था और अब एजेंसी ने अपना जवाब दे दिया है.

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NIA का 20 दिन बाद जवाब- ‘स्टेन स्वामी के लिए हमारे पास सीपर नहीं’
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NIA का 20 दिन बाद जवाब- ‘स्टेन स्वामी के लिए हमारे पास सीपर नहीं’
(फोटो: Avishek goyal/Twitter)

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83 साल के ट्राइबल राइट्स एक्टिविस्ट स्टेन स्वामी भीमा कोरेगांव केस में गिरफ्तार हैं और हाल ही में उनकी तरफ से पानी या चाय पीने के लिए सिपर की मांग हुई थी. अब द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, 26 नवंबर को NIA का जवाब आया है कि उनके पास स्वामी के लिए स्ट्रॉ और सिपर नहीं हैं. महाराष्ट्र के तलोजा सेंट्रल जेल में कैद स्टेन स्वामी ने पर्किंसन रोग का हवाला देते मुंबई के स्पेशल कोर्ट के सामने मांग रखी थी. अपनी याचिका में स्वामी ने लिखा था

‘पर्किंसन की वजह से मैं ग्लास नहीं पकड़ सकता, मेरे हाथ हिलते हैं’

इस मांग पर जवाब देने के लिए NIA ने 20 दिन का वक्त मांगा था और अब एजेंसी ने अपना जवाब दे दिया है.

पर्किंसन रोग क्या होता है?

अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के मुताबिक, पर्किंसन एक दिमाग से जुड़ी बीमारी है, जिसमें नर्वस सिस्टम कमजोर हो जाता है और हाथ-पैर कांपते हैं उनमें जकड़न आ जाती है. ऐसे में रोगी को चलने, बैलेंस बनाने में और रोजमर्रा के कामकाज में दिक्कत होती है. पर्किंसन के लक्षण धीरे-धीरे बढ़ने लगते हैं और उम्र के साथ-साथ दिक्कतें और बढ़ जाती हैं और बात करने तक में मुश्किल होने लगती है.

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8 अक्टूबर को हुई थी गिरफ्तारी

बता दें कि NIA ने 8 अक्टूबर को स्टेन स्वामी को उनके रांची स्थित घर से गिरफ्तार किया था. NIA की स्पेशल कोर्ट ने पिछले महीने स्वामी की जमानत याचिका को खारिज कर दिया था. सेहत का हवाला देते हुए याचिका दायर की गई थी.

उनका नर्वस सिस्टम कमजोर होता जा रहा है और अचानक ही उनके हाथ-पैर में कंपन होता है या मांसपेशियों में अकड़न होती है. इस कारण उन्हें रोजमर्रा के कामकाज यहां तक कि कुछ खाने-पीने में भी दिक्कत होती है. यहां तक कि फादर स्टेन स्वामी को कुछ चबाने या निगलने में भी परेशानी

कौन हैं स्टेन स्वामी?

विस्थापन विरोधी आंदोलन के संस्थापक सदस्यों में से एक फादर स्टेन स्वामी का जन्म तमिलनाडु में हुआ था. वैसे तो वह मूलतः एक पादरी हैं लेकिन अब चर्च में नहीं रहते. स्टेन स्वामी की शुरुआती पढ़ाई चेन्नई में हुई थी. बाद में वह फिलीपींस चले गए थे. पढ़ाई के सिलसिले में उन्होंने कई देशों की यात्राएं की थीं. भारत आने के बाद उन्होंने इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट बेंगलुरु के साथ काम किया, लेकिन लगभग 30 सालों से वह झारखंड में रहकर आदिवासियों-मूलवासियों के मसलों पर आवाज उठाते रहे हैं. उन्होंने झारखंड की जेलों में विचाराधीन आदिवासी कैदियों के लिए स्पीडी ट्रायल के लिए रांची हाई कोर्ट में पीआइएल की थी.वह सुप्रीम कोर्ट द्वारा साल 2013 में दिए गए जजमेंट के तहत "जिसकी जमीन, उसका खनिज" का समर्थन करते हैं.

भीमा-कोरेगांव मामला क्या है?

बता दें कि पुणे पुलिस के मुताबिक, 31 दिसंबर 2017 को पुणे में यलगार परिषद की सभा के दौरान भड़काऊ भाषण दिए गए थे, जिसके चलते जिले में अगले दिन (एक जनवरी 2018) को भीमा-कोरेगांव युद्ध स्मारक पर जातीय हिंसा भड़क गई थी. पुलिस ने दावा किया था कि सभा को माओवादियों का समर्थन हासिल था. इस मामले में सुधीर धवले, रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, महेश राउत, सोम सेन, अरुण परेरा समेत कई लोगों को गिरफ्तार किया गया था.

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Published: 26 Nov 2020,05:33 PM IST

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