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No-Tobacco Day:'तंबाकू खाना हानिकारक' स्लोगन के बीच तंबाकू से चलती हैं जिंदगियां

तम्बाकू खाने से जीवन रुक जाता है लेकिन तंबाकू से ही एक बड़ी आबादी की जिंदगी चलती है.

क्विंट हिंदी
भारत
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<div class="paragraphs"><p>No-Tobbaco Day:'तंबाकू खाना हानिकारक' स्लोगन के बीच तंबाकू से चलती है जिंदगियां</p></div>
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No-Tobbaco Day:'तंबाकू खाना हानिकारक' स्लोगन के बीच तंबाकू से चलती है जिंदगियां

(फोटो- क्विंट हिंदी)

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भारत सरकार ने बेशक तम्बाकू (Tobacco) खाने वालों के लिए स्लोगन लिख दिया 'तम्बाकू खाना हानिकारक है' लेकिन आज हम आपके लिए उत्तर प्रदेश से एक ऐसी कहानी लेकर आए हैं जहां पर तम्बाकू की वजह से ही लोगों की जिंदगी चल रही है,चाहे वो किसान हों, व्यापारी हों, किसी के घर में शादी हो या कोई बीमार पड़ा हो.

एक्सपर्ट्स का कहना है कि तम्बाकू खाने से जीवन रुक जाता है लेकिन उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद के कायमगंज, एटा के अलीगंज, कासगंज के पटियाली और अयोध्या के नवाबगंज में तम्बाकू के उत्पादन के साथ ही एक बड़ी आबादी की जिंदगी चलती है.

तम्बाकू ट्रेड के कोषाध्यक्ष संजय आर्या बताते हैं कि

एटा के अलीगंज फर्रुखाबाद के कायमगंज और कासगंज के पटियाली क्षेत्र में लगभग 100 किमी क्षेत्र में किसानों के द्वारा उत्पादन किया जाता है. इसमें लगभग एक लाख बीघे में किसानों के द्वारा फसल उपजाई जाती है. हमारे इस क्षेत्र की तम्बाकू की सप्लाई पूरे भारत में होती है. यहां के किसानों में एक बड़ी आबादी तम्बाकू उपजाती है.

उन्होंने आगे बताया कि भारत के विभिन्न राज्यो में तंबाकू का उत्पादन तो होता है लेकिन यहां की तम्बाकू की गुडवत्ता अन्य जगहों के अपेक्षा अच्छी होती है. उत्तर प्रदेश का ये मध्य का इलाका तम्बाकू उत्पादन के लिए एक अलग ही पहचान बनाये हुये हैं. कोरोना के वक्त तम्बाकू के व्यापार पर खासा फर्क पड़ा था. सरकार की तरफ से तम्बाकू के किसानों और व्यापारियों को लाभ देने के लिए कोई कदम नहीं उठाये गये जबकि लोगों तक तम्बाकू की पहुंच काफी बड़ी मात्रा में रहती है.

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क्या कहते हैं तम्बाकू की खेती करने वाले किसान?

राजा का रामपुर क्षेत्र के रहने वाले रामकृपाल जो कि भूमिहीन किसान हैं, वो लीज पर खेती को लेकर के तम्बाकू को उपजाते हैं. वो कहते हैं कि मेरी उम्र लगभग 60 वर्ष है. मैं काफी दिनों से इसकी खेती कर रहा हूं. हम लोगों को इस फसल को तैयार करने में लगभग एक साल का समय लगता है. उसके बाद में एक बीघा खेत मे लगभग 4 मन (248 किग्रा) तक तंबाकू हो जाती है, जिसमें अनुमानित लागत 12 से 15 हजार रुपये तक आती है. इसके बाद लगभग बीस हजार रुपये तक की फसल बिक जाती है, कुल 5 से 7 हजार रुपये तक बच जाते हैं.

किसानों से तम्बाकू खरीद करने वाले व्यापारी बताते हैं कि

छोटे स्तर पर किसानों से तम्बाकू की खरीद करने वाले आयुष गुप्ता बताते हैं कि हम लोग सीजन के वक्त 3000 से 5000 रुपये प्रति मन (1 मन- 62 किग्रा) तक तम्बाकू की खरीद करते हैं. उसके बाद में हम लोगों को जो बाहर के बड़े व्यापरियों ऑर्डर मिलता है उसके मुताबिक माल को तैयार करवाते हैं. जैसे कि लकड़ी, पत्ती, तम्बाकू की धूल तमाम चीजें अन्य राज्यो में जाती है.

काम करने वाले श्रमिकों की नहीं होती है समय पर जांच

उत्तर प्रदेश के इस मध्य क्षेत्र में तम्बाकू से संबंधित काम करने वाले किसान और उत्पादन फैक्ट्रियों में काम करने वाले श्रमिकों की कोई जांच नहीं करवाई जाती है. काम करने वाले श्रमिकों में क्षय रोग फैलने संभावना ज्यादा होती है.

अलीगंज में रहने वाले एक श्रमिक बताते हैं कि हमारे पूरे परिवार को खांसी रहती ही है लेकिन हम लोग क्या करें हमारे पास तो एक यही काम है, जो हमारा पूरा परिवार करता है.

आबादी के बीचों-बीच चल रही हैं उत्पादन इकाइयां

तंबाकू की उत्पादन इकाइयों की बात की जाए तो प्रशासन की बड़ी लापरवाही है. उत्पादन इकाइयां ज्यादातर आबादी क्षेत्र में हैं और जब फैक्ट्री में काम चलता है तो इसमें से धूल वगैरह उड़ती रहती है, जिससे वहां से निकलने वाले राहगीरों को भी परेशानी होती है. वहीं इन इकाइयों के पास में बच्चों के स्कूल भी हैं लेकिन इस तरफ किसी भी अधिकारी का ध्यान नहीं जाता है.

इनपुट- शुभम श्रीवास्तव

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