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असम एनआरसी मुद्दे को लेकर संसद में संग्राम छिड़ा हुआ है. नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन (एनआरसी) के फाइनल ड्राफ्ट में असम के 40 लाख लोगों के नाम शामिल नहीं हैं. इसी मुद्दे को लेकर सरकार और विपक्ष के बीच तनातनी जारी है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की अगुआई में विपक्ष सरकार को घेरने में जुटा है, वहीं बीजेपी इसे घुसपैठियों के खिलाफ एक बड़ा कदम बता रही है.
बीजेपी चीफ अमित शाह की दलील है कि 1985 में तत्कालीन राजीव गांधी सरकार और असम गण परिषद के बीच असम समझौते के मुताबिक ही NRC बनाया गया है.
आइए जानते हैं कि 1985 में राजीव सरकार ने जिस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, वो असम समझौताआखिर क्या था और एनआरसी से इसका क्या कनेक्शन है?
असम में बाहरी बनाम असमिया मुद्दे पर आंदोलन आजादी के बाद से सुलग रहा था लेकिन 80 के दशक में ने 80 के दशक में बहुत हिंसक रूप ले लिया और बहुत बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया.
इसके बाद ही असम के मूल निवासियों में भाषाई, सांस्कृतिक और राजनीतिक असुरक्षा की भावना पैदा हुई. जो 1978 में एक बड़े आंदोलन में बदल गई. इस आंदोलन में ऑल असम स्टूडेंट यूनियन और ऑल असम गण संग्राम परिषद की मुख्य भूमिका थी.
साल 1983 में राज्य की बड़ी आबादी ने विधानसभा चुनावों का बहिष्कार किया. इसी बीच आदिवासी, भाषाई और सांप्रदायिक पहचान को लेकर बड़े पैमान पर हिंसा हुई.
1983 में हुई हिंसक घटनाओं की वजह से साल 1984 के आम चुनावों में राज्य के 14 संसदीय क्षेत्रों में चुनाव नहीं हो पाए. 1983 में हुई हिंसा के बाद ही समझौते के लिए बातचीत की प्रक्रिया शुरू हुई.
हिंसा के दौर में ही केंद्र की तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने समझौते की पहल की. आखिरकार, अगस्त 1985 में केंद्र की राजीव गांधी सरकार और आंदोलन के नेताओं के बीच समझौता हुआ, जिसे असम समझौते के नाम से जाना जाता है.
असम समझौते के बाद राज्य में शांति बहाली तो हुई, लेकिन असल मायने में समझौते की शर्तें लागू नहीं हो पाईं. NRC समझौते की एक शर्त थी कि विदेशियों की पहचान कर उन्हें उनके देश भेजा जाएगा.
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