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केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री वीरेंद्र कुमार ने 9 अगस्त को लोकसभा में 127 वां संविधान संशोधन (Constitutional Amendment) बिल,2021 पेश किया ताकि राज्यों की अपनी ओबीसी (OBC) लिस्ट बनाने की शक्ति को फिर से बहाल किया जा सके. बिल लोकसभा में बिना विरोध के पास भी हो चुका है. ये बिल क्यों लाया गया है, क्या मायने हो सकते हैं, विस्तार से समझाते हैं.
इस संविधान संशोधन बिल की मदद से संविधान के आर्टिकल 342A, 338B और 366 में संशोधन किया जाएगा. अपने बयान में मंत्री वीरेंद्र कुमार ने कहा कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों (SEBC) की अपनी सूची तैयार करने और बनाए रखने के अधिकार के साथ-साथ भारत के संघीय ढांचे को बनाए रखने के लिए यह संविधान संशोधन आवश्यक है.
2018 में पास किए गए 102वें संविधान संशोधन अधिनियम की मदद से संविधान में आर्टिकल 342A, 338B और 366(26C) को जोड़ा गया था .
आर्टिकल 338B राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की संरचना ,कर्तव्यों और उसकी शक्तियों से संबंधित है.
आर्टिकल 342A राष्ट्रपति की शक्तियों, जिसके अनुसार राष्ट्रपति किसी विशेष जाति को SECB के रूप में नोटिफाई कर सकते हैं और ओबीसी लिस्ट में परिवर्तन करने की संसद की शक्तियों से संबंधित है.
आर्टिकल 366(26C) SEBC को परिभाषित करता है.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा 102वें संविधान संशोधन की इस व्याख्या ने पिछड़े वर्गों की पहचान करने और उन्हें आरक्षण का लाभ देने के राज्य सरकारों के अधिकारों को प्रभावी रूप से समाप्त कर दिया.
127 वां संविधान संशोधन विधेयक, 2021 लाने का फैसला उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में महत्वपूर्ण विधानसभा चुनाव के ठीक पहले आया है ,जहां अन्य पिछड़ी जातियां (OBC) समूहों का राजनैतिक बोलबाला है.
कुछ दिनों पहले ही केंद्र सरकार ने मेडिकल और डेंटल कोर्स में ओबीसी के लिए 27% आरक्षण शुरू करने की पुरानी मांग को भी स्वीकार कर लिया. दूसरी तरफ 127 वें संविधान संशोधन पर विपक्ष भी पीछे नहीं देखना चाहता.कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, सपा, शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस, राजद, डीएमके सहित लगभग 14 विपक्षी दलों ने इसे पास कराने के लिए संसद में पेगासस और कृषि कानूनों पर अपने विरोध प्रदर्शन को रोकने का निर्णय लिया है.
संसद में 127वें संविधान संशोधन को लाने के साथ ही पिछले 3 सालों में यह तीसरी बार है जब केंद्र सरकार ने निचली जातियों से जुड़े सुप्रीम कोर्ट के फैसले को प्रभावी ढंग से बाईपास करने के लिए संसद की कानून बनाने की शक्ति का सहारा लिया है.इससे पहले दो मौकों पर-
2018 में केंद्र सरकार ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के कुछ प्रमुख प्रावधानों को कमजोर करने वाले शीर्ष अदालत के फैसले को पलटने के लिए संसद में विधेयक लाया था. सुप्रीम कोर्ट ने बाद में संसद द्वारा पारित संशोधनों को बरकरार रखा.
2019 में आम चुनाव से कुछ महीने पहले जब सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के सरकारी शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षित पदों के अलॉटमेंट में पहले के रोस्टर सिस्टम को खत्म करने के आदेश को बरकरार रखा था, तब भी केंद्र सरकार ने पुराने रोस्टर सिस्टम को वापस लाने के लिए अध्यादेश का सहारा लिया था.
दुनिया के अन्य संविधानों की तरह ही भारतीय संविधान में भी बदलती परीस्थितियों एवं जरूरतों के अनुसार संशोधन करने का प्रावधान किया गया है.
संविधान के भाग 20 का आर्टिकल 368 संसद को संविधान तथा इसकी प्रक्रियाओं को संशोधित करने की शक्ति प्रदान करता है. आर्टिकल 368 में बताये गए प्रक्रिया के अनुसार संसद संविधान में नये उपबंध जोड़कर या किसी उपबंध को हटाकर या बदलकर संविधान में संशोधन कर सकती है.
लेकिन संसद संविधान के मूल ढाँचे(बेसिक स्ट्रक्चर) से जुड़े प्रावधानों में संशोधन नहीं कर सकती है. मूल ढाँचे से जुड़े इस सिद्धांत को सुप्रीम कोर्ट ने केशवानंद भारती केस ( 1973) में प्रतिपादित किया था.
संविधान में संशोधन के लिए संसद के किसी भी सदन में संशोधन विधेयक पेश किया जा सकता है.इसके बाद प्रत्येक सदन में उस सदन की कुल सदस्यों के बहुमत से और उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई वोटों के विशेष बहुमत से विधेयक को पारित करना होगा.
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