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"मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि मैं जिंदा हूं. कुछ देर के लिए सन्न था. कुछ सोच नहीं पा रहा था. कुछ ख्याल दिमाग में नहीं आ रहा था. मैं जिस कोच में था, वह कोच पलट गई थी और मैं जैसे-तैसे खिड़की से बाहर आया तो बाहर का दृश्य बहुत भयावह था. लोग चारों तरफ बिखरे पड़े थे. इतना बड़ा हादसा मैंने अपनी आंखों के सामने पूरी जिंदगी में कभी नहीं देखा था. मैं बस भगवान से प्रार्थना कर रहा था. लोग चीख-चिल्ला रहे थे." ये कहना है कोरोमंडल एक्सप्रेस में यात्रा कर रहे राजेश यादव का.
राजेश यादव यूपी के गोरखपुर से हैं. उन्हें विशाखापट्टनम जाना था. वो विशाखापट्टनम में कंस्ट्रक्शन का काम करते हैं. इसके लिए उन्होंने पहले गोरखपुर से एक ट्रेन के जरिए कोलकाता पहुंचे, फिर वहां से बस से हावड़ा पहुंचे और फिर वहां से शालिमार रेलवे स्टेशन पहुंचे. शालिमार से विशाखापट्टन के लिए उनका S-4 में सीट नंबर 65 पर बुकिंग थी.
राजेश ने क्विंट हिंदी से बातचीत में उस भयावह मंजर को बताया जो उन्होंने अपनी आंखों से देखा. राजेश बताते हैं कि...
राजेश ने आगे कहा कि "मैं बस अपनी जान बचाने के लिए भगवान का शुक्रिया अदा कर रहा था और किसी भी तरह से इस जगह से कहीं जाने की सोच रहा था. तब तक कुछ गांव वाले आए और मुझे अपने घर ले गए, जहां उन्होंने ठंडा पानी दिया और चाय पिलाई. गांव के लोगों ने बहुत मदद की."
बिहार के मुंगरे के रहने वाले किसन कुमार भारतीय सेना के जवान हैं. वह भी हादसे के वक्त कोरोमंडल एक्सप्रेस में यात्रा कर रहे थे. उनकी नई-नई पोस्टिंग मंडपम रामेश्वरम में हुई थी. वह वहां अपने परिवार के साथ ज्वाइन करने जा रहे थे.
इंडियन कोस्ट गार्ड के जवान किसन कुमार ने क्विंट हिंदी से बातचीत में बताया कि मैं बहुत नसीब वाला हूं कि बच गया. मैं 3A के B-1 कोच की 39 नंबर सीट पर था. मैं, मेरी पत्नी और मेरा 5 साल का बेटा सफर कर रहे थे. मैं अपनी सीट के बगल खाली जगह पर खड़ा था. जब टक्कर हुई तो झटका इतना तेज था कि मैं 4-5 फीट दूर जा गिरा. मेरे बाएं पैर और हाथ में चोट आई है.
उन्होंने आगे बताया कि "मैं सेना का जवान हूं, लेकिन मेरी देखने की हिम्मत नहीं हो रही थी. हर जगह लोगों के शव पड़े थे. कोई कंपार्टमेंट में फंसा चिल्ला रहा है तो किसी के शरीर से खून निकल रहा है. मैं हिम्मत बांधकर जितना हो सका मदद की. हमारी पूरी शरीर कांप रही थी, मैं अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो पा रहा था. हम वहां 5 घंटे तक रहे. फिर हम अपने एक रिश्तेदार के यहां चले गए."
किसन बताते हैं कि रेस्क्यू टीम ने बहुत अच्छा काम किया. हादसे के 20-25 मिनट के अंदर लोकल रेस्क्यू टीम मदद के लिए पहुंच गई थी. उसके एक या डेढ़ घंटे के अंतर SNDRF और NDRF की टीम पहुंंच गई थी. वहां के लोकल लोगों ने भी बहुत मदद की.
कोरोमंडल एक्सप्रेस में ही यात्रा कर रही एक अन्य यात्री नेहा श्रीवास्तव बताती हैं कि...
रोहित राज एक छात्र हैं, भुवनेश्वर के KIIT में पढ़ाई करते हैं. वह भी हादसे के दिन कोरोमंडल एक्सप्रेस में यात्रा कर रहे थे. राज, बिहार के नालंदा से हैं. वह शालिमार से S-5 कोच की सीट नंबर 64 पर सवार थे. उन्होंने कहा कि...
बता दें कि शुक्रवार, 2 जून की शाम को ओडिशा के बालासोर में एक के बाद एक 3 ट्रेनों के टकराने से बड़ा हादसा हो गया. हादसे में 288 लोगों की मौत और 900 से ज्यादा लोगों के घायल होने की सूचना है. वहीं, 50 से अधिक लोगों के लापता होने की खबर है. फिलहाल, रेस्क्यू ऑपरेशन पूरा कर लिया गया है और ट्रैक को सही करने का काम चल रहा है.
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