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"तेज अवाज, धूल का गुबार और पलक झपकते पलट गई ट्रेन"- यात्रियों ने क्या बताया?

Odisha Train Crash: ओडिशा के बालासोर हादसे में 288 लोगों की मौत, 900 से ज्यादा लोग घायल.

उपेंद्र कुमार
भारत
Published:
<div class="paragraphs"><p>"तेज अवाज, धूल का गुबार और पलक झपकते पलट गई ट्रेन"- यात्रियों ने क्या बताया?</p></div>
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"तेज अवाज, धूल का गुबार और पलक झपकते पलट गई ट्रेन"- यात्रियों ने क्या बताया?

(फोटोः क्विंट हिंदी)

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"मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि मैं जिंदा हूं. कुछ देर के लिए सन्न था. कुछ सोच नहीं पा रहा था. कुछ ख्याल दिमाग में नहीं आ रहा था. मैं जिस कोच में था, वह कोच पलट गई थी और मैं जैसे-तैसे खिड़की से बाहर आया तो बाहर का दृश्य बहुत भयावह था. लोग चारों तरफ बिखरे पड़े थे. इतना बड़ा हादसा मैंने अपनी आंखों के सामने पूरी जिंदगी में कभी नहीं देखा था. मैं बस भगवान से प्रार्थना कर रहा था. लोग चीख-चिल्ला रहे थे." ये कहना है कोरोमंडल एक्सप्रेस में यात्रा कर रहे राजेश यादव का.

राजेश यादव यूपी के गोरखपुर से हैं. उन्हें विशाखापट्टनम जाना था. वो विशाखापट्टनम में कंस्ट्रक्शन का काम करते हैं. इसके लिए उन्होंने पहले गोरखपुर से एक ट्रेन के जरिए कोलकाता पहुंचे, फिर वहां से बस से हावड़ा पहुंचे और फिर वहां से शालिमार रेलवे स्टेशन पहुंचे. शालिमार से विशाखापट्टन के लिए उनका S-4 में सीट नंबर 65 पर बुकिंग थी.

राजेश ने क्विंट हिंदी से बातचीत में उस भयावह मंजर को बताया जो उन्होंने अपनी आंखों से देखा. राजेश बताते हैं कि...

राजेश यादव ने ये तस्वीर सुबह के समय ली है, जब रेस्क्यू ऑपरेशन जारी था और वह पास के गांव में थे.

(फोटोः क्विंट हिंदी)

"हादसे से पहले ट्रेन एक स्टेशन पर रुकी थी. मुझे याद नहीं है कि वह कौन सा स्टेशन था. लेकिन, शाम होने वाली थी. भीड़ ज्यादा थी, तो हम तीन-चार दोस्त थे. ऊपर वाली सीट पर बैठकर बात कर रहे थे. शाम का समय था तो हम लाई के साथ चाय पी रहे थे. तभी एक तेज का झटका लगा और मेरी चाय हाथ से गिर गई और मैं भी नीचे बैठ लोगों के ऊपर गिर गया. फिर पलक झपकते ही हमारी बोगी पलट गई. लोग चिल्लाने लगे. मैं जैसे तैसे ऊपर वाली खिड़की से बाहर आया तो देखा कि बहुत भयावह मंजर है."
राजेश यादव, कोरोमंडल एक्सप्रेस के यात्री

राजेश ने आगे कहा कि "मैं बस अपनी जान बचाने के लिए भगवान का शुक्रिया अदा कर रहा था और किसी भी तरह से इस जगह से कहीं जाने की सोच रहा था. तब तक कुछ गांव वाले आए और मुझे अपने घर ले गए, जहां उन्होंने ठंडा पानी दिया और चाय पिलाई. गांव के लोगों ने बहुत मदद की."

बिहार के मुंगरे के रहने वाले किसन कुमार भारतीय सेना के जवान हैं. वह भी हादसे के वक्त कोरोमंडल एक्सप्रेस में यात्रा कर रहे थे. उनकी नई-नई पोस्टिंग मंडपम रामेश्वरम में हुई थी. वह वहां अपने परिवार के साथ ज्वाइन करने जा रहे थे.

इंडियन कोस्ट गार्ड के जवान किसन कुमार ने क्विंट हिंदी से बातचीत में बताया कि मैं बहुत नसीब वाला हूं कि बच गया. मैं 3A के B-1 कोच की 39 नंबर सीट पर था. मैं, मेरी पत्नी और मेरा 5 साल का बेटा सफर कर रहे थे. मैं अपनी सीट के बगल खाली जगह पर खड़ा था. जब टक्कर हुई तो झटका इतना तेज था कि मैं 4-5 फीट दूर जा गिरा. मेरे बाएं पैर और हाथ में चोट आई है.

"शाम के करीब 6:52 या 6ः55 का वक्त रहा होगा, जब हादसा हुआ. मेरा बेटा और पत्नी सो रहे थे. मैं उनके बगल में खाली जगह पर खड़ा था. जब टक्कर हुई तो बहुत तेज की आवाज हुई. मुझे एहसास तो हो गया था कि ट्रेन पटरी से उतर गई. लेकिन, मुझे तब लग रहा था ड्राइवर ने इमरजेंसी ब्रेक मारकर सबको बचा लिए है. क्योंकि मैं जिस कोच में था, वो पटरी पर था. लेकिन, जब मैं अपने बच्चे और पत्नी को लेकर बाहर निकला तो देखकर दंग रह गया. मेरे आगे के 5-6 कंपार्टमेंट और मेरे पीछे के कंपार्टमेंट पलट गए थे. मेरे ठीक आगे पैंट्री का कंपार्टमेंट था, वह भी टेढ़ा हो गया था. और उसके आगे के 2-3 कंपार्टमेंट तो पटरी से 20-30 मीटर दूर पड़े थे."
किसन कुमार, कोरोमंडल एक्सप्रेस के यात्री
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सेना के जवान किसन कुमार, उनकी पत्नी और बेटे की तस्वीर. कोरोमंडल एक्सप्रेस में हादसे से पहले की तस्वीर

(फोटोः क्विंट हिंदी)

उन्होंने आगे बताया कि "मैं सेना का जवान हूं, लेकिन मेरी देखने की हिम्मत नहीं हो रही थी. हर जगह लोगों के शव पड़े थे. कोई कंपार्टमेंट में फंसा चिल्ला रहा है तो किसी के शरीर से खून निकल रहा है. मैं हिम्मत बांधकर जितना हो सका मदद की. हमारी पूरी शरीर कांप रही थी, मैं अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो पा रहा था. हम वहां 5 घंटे तक रहे. फिर हम अपने एक रिश्तेदार के यहां चले गए."

किसन बताते हैं कि रेस्क्यू टीम ने बहुत अच्छा काम किया. हादसे के 20-25 मिनट के अंदर लोकल रेस्क्यू टीम मदद के लिए पहुंच गई थी. उसके एक या डेढ़ घंटे के अंतर SNDRF और NDRF की टीम पहुंंच गई थी. वहां के लोकल लोगों ने भी बहुत मदद की.

कोरोमंडल एक्सप्रेस में ही यात्रा कर रही एक अन्य यात्री नेहा श्रीवास्तव बताती हैं कि...

"मैं बहुत खुशनसीब हूं कि हादसे से एक स्टेशन पहले ही उतर गई थी. मुझे बालासोर तक ही जाना था. शाम के 6ः30 पर कोरोमंडल एक्सप्रेस का स्टॉपेज था और मैं यहां उतर गई. जब मैं घर पहुंची तो खबर मिली की कोरोमंडल एक्सप्रेस हादसे का शिकार हो गई है. मैं फिर मन ही मन भगवान को याद करने लगी. मेरा टिकट शालिमार से बालासोर का ही था और हादसा बालासोर स्टेशन के जस्ट बाद हुआ."
नेहा श्रीवास्तव, कोरोमंडल एक्सप्रेस के यात्री

रोहित राज एक छात्र हैं, भुवनेश्वर के KIIT में पढ़ाई करते हैं. वह भी हादसे के दिन कोरोमंडल एक्सप्रेस में यात्रा कर रहे थे. राज, बिहार के नालंदा से हैं. वह शालिमार से S-5 कोच की सीट नंबर 64 पर सवार थे. उन्होंने कहा कि...

रोहित राज ने हादसे के बाद की तस्वीर अपने मोबाइल से ली थी.

(फोटोः क्विंट हिंदी)

"जब हादसा हुआ तो एक तेज आवज हुई और धूल का गुब्बारा उठा. फिर मैं दूसरी तरफ जाकर टकरा गया. 4-5 सेकेंड बाद हमारी गाड़ी रूक गई. सब लोग भागने लगे. जब मैं बाहर आया तो देखा कि हमरी गाड़ी का दो डिब्बा, मालगाड़ी के ऊपर चढ़ा है और तीन-चार डिब्बे दूसरी पटरी के साइड में पड़े हैं. दूसरी पटरी पर एक और ट्रेन हादसे का शिकार हुई थी, उसने हमारी वाली ट्रेन के डब्बे में ही टक्कर मारी थी. मैं सेफ था क्योंकि मेरे कोच को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा था. हल्की चोटें आईं हैं, लेकिन ठीक है. अंधरे था, कुछ भी सुझ नहीं रहा था. लोग चिल्ला रहे थे, मदद की गुहार लगा रहे थे. बहुत लोग तो 30-40 मीटर दूर बेहोस पड़े थे. हम लोग मोबाइल का टॉर्च जलाकर काम चला रहे थे. जिधर लोग चिल्ला रहे थे, उधर मोबाइल का टॉर्च लेकर हम लोग भाग रहे थे ममद के लिए."
रोहित राज, कोरोमंडल एक्सप्रेस के यात्री

बता दें कि शुक्रवार, 2 जून की शाम को ओडिशा के बालासोर में एक के बाद एक 3 ट्रेनों के टकराने से बड़ा हादसा हो गया. हादसे में 288 लोगों की मौत और 900 से ज्यादा लोगों के घायल होने की सूचना है. वहीं, 50 से अधिक लोगों के लापता होने की खबर है. फिलहाल, रेस्क्यू ऑपरेशन पूरा कर लिया गया है और ट्रैक को सही करने का काम चल रहा है.

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