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One Nation One Election पर कमेटी की राष्ट्रपति को सौंपी रिपोर्ट में क्या है?

One Nation One Election: कोविंद पैनल की आठ खंडों वाली यह रिपोर्ट 18,000 पेज की है.

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भारत
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<div class="paragraphs"><p>One Nation One Election: रामनाथ कोविंद पैनल ने राष्ट्रपति मुर्मू को सौंपी रिपोर्ट</p></div>
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One Nation One Election: रामनाथ कोविंद पैनल ने राष्ट्रपति मुर्मू को सौंपी रिपोर्ट

(फोटो: क्विंट हिंदी)

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One Nation One Election: देश में एक साथ चुनाव कराने का रोडमैप तैयार करने के लिए सरकार द्वारा गठित उच्च स्तरीय समिति ने 14 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंप दी. आठ खंडों वाली यह रिपोर्ट 18,000 पेज की है. कमेटी ने पैनल गठन होने के 191 दिनों बाद से हितधारकों, विशेषज्ञों के साथ व्यापक परामर्श के बाद रिपोर्ट सौंपी है.

यह कॉन्सेप्ट पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने को लेकर है. प्रस्ताव यह है कि लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएं.

PTI के अनुसार,

  • कोविंद पैनल के अनुसार, पहले चरण में लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं, उसके बाद दूसरे चरण में 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव कराए जा सकते हैं.

  • पैनल ने सुझाव दिया है कि त्रिशंकु सदन, अविश्वास प्रस्ताव की स्थिति में, शेष पांच साल के कार्यकाल के लिए नए सिरे से चुनाव कराए जा सकते हैं.

  • पहले एक साथ चुनावों के लिए, सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल अगले लोकसभा चुनावों तक समाप्त होने वाली अवधि के लिए हो सकता है.

  • चुनाव आयोग लोकसभा, विधानसभा, स्थानीय निकाय चुनाव के लिए राज्य चुनाव अधिकारियों के परामर्श से एक मतदाता सूची, मतदाता पहचान पत्र तैयार करेगा.

  • कोविंद पैनल ने एक साथ चुनाव कराने के लिए उपकरणों, मैनपॉवर और सुरक्षा बलों की अग्रिम योजना की सिफारिश की है.

केंद्रीय कानून मंत्रालय ने लोकसभा, राज्य विधानसभाओं, नगर पालिकाओं और पंचायतों के एक साथ चुनाव कराने के लिए सिफारिशें करने के लिए सितंबर 2023 में समिति नियुक्त की थी.

समिति में कोविंद के अलावा गृह मंत्री अमित शाह, राज्यसभा में विपक्ष के पूर्व नेता गुलाम नबी आजाद, वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एन के सिंह, लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष सी कश्यप, वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे और चीफ विजलेंस कमिश्नर संजय कोठारी शामिल हैं.

इस समिति में लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी को भी शामिल किया गया था, लेकिन उन्होंने यह कहते हुए इसका हिस्सा बनने से इनकार कर दिया कि यह एक "दिखावा" था. उन्होंने कहा कि संदर्भ की शर्तें इस तरह से तैयार की गई थीं कि निष्कर्ष की गारंटी हो.

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