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CRPC संशोधन बिल से होगा मानवाधिकारों का उल्लंघन? चिदंबरम के सवाल और शाह के जवाब

कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने अमित शाह से इस बिल पर कुछ सीधे सवाल पूछे थे, कई सवालों के जवाब नहीं मिले

राजकुमार खैमरिया
भारत
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किसी भी तरह के अपराध या गैरकानूनी गतिविधि में शामिल आरोपियों के बायोमेट्रिक इंप्रेशन (Biometric impression) लेने का अधिकार पुलिस व इंफॉर्समेंट एजेंसियों को देने वाला सीआरपीसी अमेंडमेंट बिल (CRPC Amendment Bill) लोकसभा के बाद राज्यसभा से भी पास हो गया. क्रिमिनल आइडेंटिफिकेशन नाम के इस बिल को लेकर उच्च सदन में चर्चा तो हुई पर इससे जुड़े कई सारे सवाल अनुत्तरित ही रह गए. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने विपक्ष की ओर से बोलते हुए केंद्रीय मंत्री अमित शाह से इस बिल पर स्पेसिफिक प्रश्न पूछे, और विनती की कि इन प्रश्नों पर गोलमोल के बजाय स्पेसिफिक आंसर ही उन्हें दिए जाएं. यहां हम चिदंबरम के सवालों और उन पर गृहमंत्री के जवाब आपके सामने रख रहे हैं.

चिदंबरम का सवाल नंबर 1

अधिनियम की धारा 2 1-बी पुलिस और जेल अधिकारियों को मेजरमेंट लेने की अनुमति देती है. इसमें जो मेजरमेंट शब्द है उसे तीन चीजों बायोलॉजिक सैंपल और उनके विश्लेषण, व्यवहार संबंधी विशेषताओं या क्रिमिनल प्रोसेजर कोड की 53 53a और 54 सेक्शन में उल्लेखित अन्य टेस्ट के रूप में डिफाइन किया गया है.

अब मेरा सवाल तीसरे नंबर पर उल्लेखित क्रिमिनल प्रोसेजर कोड के अन्य टेस्टों पर है. क्या उन अन्य टेस्ट वाले सेक्शन को आधार बनाकर क्या इस माप में नार्को विश्लेषण (Narco analysis), पॉलीग्राफ टेस्ट (लाइ डिटेक्टर टेस्ट), ब्रेन इलेक्ट्रिक एक्टिवेशन प्रोफाइल और मनोरोग परीक्षण भी शामिल किए गए हैं? यदि ये शामिल हैं तो इनमें से हर एक टेस्ट गैरकानूनी है,और यह बिल असंवैधानिक है.

अमित शाह का जवाब

इस बिल का कोई भी प्रावधान नार्को एनालिसिस, ब्रेन मैपिंग और पॉलीग्राफ टेस्ट करने की इजाजत नहीं देता, इसलिए किसी को यह शंका रखने की कोई जरूरत नहीं है.

लेकिन दिक्कत है कि ये बात बिल में साफ तौर पर नहीं लिखा है. सवाल उठता है कि क्या सरकार दोनों सदनों में बिल पास होने के बाद इसके टेक्स्ट को बदलेगी?

चिदंबरम का सवाल नंबर 2

मेरा अगला सवाल सेक्शन 3 पर है. यह सेक्शन कहता है कि कोई भी व्यक्ति जिसे किसी भी कानून के तहत दंडनीय अपराध का दोषी ठहराया गया है, उस पर यह कानून लागू होगा, यानि कि उसकी मेजरमेंट ली जाएगी. इतना ही नहीं इस सेक्शन के मुताबिक अगर किसी को कोई भी कानून तोड़ने के लिए हिरासत में भी लिया जाता है तो ये कानून लागू हो जाएगा. इस सदन के सभी माननीय सदस्य मुझे बताएं कि कभी किसी ने भी कहीं कानून का उल्लंघन नहीं किया है? सक्रिय राजनीतिक व्यक्ति, ट्रेड यूनियनिस्ट, सामाजिक कार्यकर्ता, प्रगतिशील लेखक आदि सभी ने इस देश में कभी कानून का उल्लंघन नहीं किया है?

पुलिस कहीं धारा 144 लगाती है और आप एक कदम भी आगे बढ़ाते हैं तो आप कानून का उल्लंघन कर रहे होते हैं. इनमें से कई अपराधों के लिए 200 रुपये या 500 रुपये तक जुर्माना है. उन सभी पर यह कानून लागू होगा? अगर कोई चालक दिल्ली में लेन से बाहर बस निकाल देता है, तो भी वह मेजरमेंट के दायरे में है.

अगर अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी या कांग्रेस के सदस्य गांधी प्रतिमा से विजय चौक तक मार्च निकालते हैं तो पुलिस आपको रोककर आपको गिरफ्तार कर सकती हैं और जिस क्षण आप गिरफ्तार होंगे वे आपके सभी फिंगरप्रिंट, आपके डीएनए नमूने या बिहेवियरल नमूने ले लेंगे.

मैं माननीय गृह मंत्री से पूछता हूं कि इतने बड़े सक्रिय राजनीतिक जीवन में क्या आपने कभी किसी कानून का उल्लंघन नहीं किया है.

अमित शाह का जवाब:

धारा 3 के बारे में स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि यह रूल बनाने के लिए भारत सरकार को अधिकार है. इसकी व्याख्या भी हम करेंगे और यह सुनिश्चित करेंगे कि पॉलिटिकल आंदोलन वाले किसी भी व्यक्ति को सिर्फ राजनीतिक आंदोलन के लिए अपना मेजरमेंट ना देना पड़े, मगर यदि पॉलिटिकल नेता पर क्रिमिनल केस होता है तो फिर उसको इस कानून के तहत अपना मेजरमेंट देना होगा, पर केवल निषेधाज्ञा के उल्लंघन के लिए इस बिल के प्रावधान लागू नहीं होंगे. इसके लिए हम रूल्स में प्राॅविजन भी रखेंगे.

इस जवाब में भी दिक्कत ये है कि बिल में ऐसा आश्वासन नहीं है. यानी उसकी भाषा ऐसी कि सवाल उठते हैं.

चिदंबरम का सवाल नंबर 3

इसका सेक्शन 4 कहता है कि इन मेजरमेंट नमूनों के रिकॉर्ड को किसी भी कानून प्रवर्तन एजेंसी के साथ साझा किया जा सकता है. वह मेजरमेंट मांग सकती है. इस सेक्शन में इन प्रवर्तन एजेंसियों के बारे में कुछ भी ​​परिभाषित नहीं हैं. शाब्दिक रूप से मानें तो कानून प्रवर्तन एजेंसियां तो वे सभी हैं, जिन्हें किसी भी कानून को लागू करने का अधिकार है. पंचायतें पंचायत एक्ट को लागू करती हैं. नगरपालिका अधिकारी नगरपालिका अधिनियम को लागू करता है. हेल्थ इंस्पेक्टर खाद्य और सुरक्षा अधिनियम और ड्रग एक्ट लागू कराता है. इस सेक्शन में चूंकि एजेंसियों को परिभाषित नहीं किया गया है तो ये सभी आपसे इस बिल के प्रावधानों के अनुसार मेजरमेंट मांग सकती है. इस सेक्शन 4 का इरादा आखिर है क्या? आप कानून प्रवर्तन एजेंसियों को परिभाषित क्यों नहीं करते?

अमित शाह ने इस सवाल का जवाब नहीं दिया

चिदंबरम का सवाल नंबर 4

यह सवाल सेक्शन 5 पर है. अगर आप पुलिस अधिकारी को मेजरमेंट लेने से मना करते हैं और यदि उसका विरोध करते हैं तो यह धारा 186 के तहत दंडनीय अपराध हो जाएगा. अब सवाल यह है कि क्या ये माप हमारी सहमति के बिना लिए जा सकते हैं. इस मामले में कुछ स्पष्ट नहीं है. खंड 2 व्यक्ति को माप देने के लिए बाध्य करता है, और खंड 5 के अंतर्गत कोई मजिस्ट्रेट किसी को भी मेजरमेंट देने के आदेश दे सकता है.

यदि दोनों को एक साथ पढ़ा जाता है तो यह एक तरह की अनैच्छिक स्वीकारोक्ति है.

यह सीधे तौर पर अनुच्छेद 20 और अनुच्छेद 21 के कानून का उल्लंघन है, जिसमें सहमति के बिना ये टेस्ट या मेजरमेंट नहीं किए जा सकते. यह सीधे तौर पर संविधान और कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है.

अमित शाह ने इस सवाल का जवाब नहीं दिया

चिदंबरम का सवाल नंबर 5

यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय ने यह माना है कि अंगुलियों के निशान, डीएनए प्रोफाइल और सेलुलर सैंपल्स को किसी की सहमति के बिना लिया जाना और स्टोर करना मानव अधिकार का उल्लंघन है. यह यूरोपीय न्यायालय का फैसला है. क्या इसके बारे में सरकार को बताया गया है?

अमित शाह का जवाब

मानवाधिकार तो उनके भी हैं, जो क्राइम व क्रिमिनल्स से पीड़ित हैं, सदन को सिर्फ गुनहगारों के ह्यूमन राइट की नहीं बल्कि अपराधियों से पीड़ित लोगों के मानवाधिकारों की भी चिंता करनी चाहिए. किसी परिवार के इकलौते कमाऊ सदस्य की हत्या हो जाती है, तो यह मानवाधिकार हनन नहीं है. यह विधेयक कानून मानने वाले देश के 97 प्रतिशत लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए लाया गया है.

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चिदंबरम का सवाल नंबर 6

क्या सरकार जानती है कि उनके द्वारा किए जा रहे इस मेजरमेंट स्टोरेज का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है? वैज्ञानिक आधार पर यह कभी पुष्ट नहीं हुआ है कि हैंडराइटिंग, फिंगरप्रिंट सहित कोई भी माप हर व्यक्ति के लिए यूनिक ही होता है. क्या सरकार को याद है कि खुद UIDAI ने हलफनामा देकर कहा है कि आधार स्कीम में 6% फिंगरप्रिंट डेटा फेल हो गया है.

आईरिस स्कैन में UIDAI ने फेल होने की दर 8.54% बताई है. क्या सरकार को पता है कि अमेरिका में विज्ञान और प्रौद्योगिकी सलाहकार परिषद के अध्यक्ष ने वहां की सरकार को सलाह दी है कि डीएनए विश्लेषण न तो मान्य है और न ही विश्वसनीय, अत: इसे आधार न बनाया जाए. यह आज के विज्ञान जगत का आंकड़ा है और आप इस बिल को पारित कराने के लिए कह रहे हैं कि विज्ञान हमें इसे पारित कराने के लिए प्रेरित कर रहा है.

अमित शाह ने इस सवाल का जवाब नहीं दिया

चिदंबरम का सवाल नंबर 7

यह कानून एक विशाल जाल की तरह होगा जो देश में किसी को भी जकड़ सकता है. आप जानते हैं कि जब कानून लागू हुआ तो इसका सबसे ज्यादा नुकसान गरीबों को हेागा. उन पर इसके जरिए दमन किया जा सकता है.

अमित शाह ने इस सवाल का भी जवाब नहीं दिया

चिदंबरम का प्रश्न 8

इस बिल को लाने से पहले कोई सजेशन नहीं लिया गया है. हम लगातार इस बिल को सेलेक्ट कमेटी में भेजने के लिए कहते रहे हैं. अगर हमने पहले के कानून के संशोधन के लिए 102 साल तक इंतजार किया है तो अब उसे सेलेक्ट कमेटी में भेजने के लिए 102 दिन तक और इंतजार क्यों नहीं किया जा सकता?

अमित शाह ने इस सवाल का जवाब नहीं दिया

चिदंबरम का एक और सवाल

जस्टिस पुत्तूस्वामी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया जजमेंट में 24 अगस्त 2017 को फैसला सुनाया था, जिसके तहत किसी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन करने से पहले जांच एजेंसियों को 3 महत्वपूर्ण बिंदुओं पर गौर कर लेना चाहिए.

पहला वह 'कानून सम्मत' हो. दूसरा, सरकार के किसी बड़े उद्देश्य के लिए हो. तीसरा, 'आनुपातिकता' जिसके अंतर्गत मकसद और साधन के बीच कुछ तर्क सम्मतता अवश्य नजर आए. यह बिल इस फैसले के तीनों ही मानकों पर खरा नहीं उतरता

अमित शाह का जवाब

पुत्तूस्वामी केस में जो निर्देश दिए गए हैं उनका इस बिल में कहीं उल्लंघन नहीं हो रहा हैं. इस केस के फैसले में लोगों की स्वतंत्रता ओवरलैप ना हो, इसके लिए तीन अपवाद दिए गए हैं.

पहला कहा गया है कि ऐसा कानून सक्षम विधायिका द्वारा बनाना जाना चाहिए, तो मैं यह मानता हूं इस कानून को पास करने वाली यह सक्षम विधायिका है.

दूसरा अपवाद यह है कि, ऐसा कानून वैध देश हित में होना चाहिए. तो मैं कहूंगा कि जिन्होंने गुनाह किया है उसे सजा दिलाने से ज्यादा बड़ा वैध देशहित क्या हो सकता है.

तीसरा, माननीय न्यायाधीश ने कहा है कि यह कानून आनुपातिक होना चाहिए, तो मैं कहना चाहता हूं कि यह कानून अनुपातिक भी है. कानून प्रवर्तन एजेंसियों का हाथ मजबूत करने और जो प्रताड़ित होते हैं, उसके मौलिक अधिकारों की रक्षा के बीच संतुलन बनाने के लिए यह कानून लेकर हम आए हैं.

अभी कानून एकतरफा ही है. जिसका अधिकार छीना जा रहा है, जो विक्टिम है, उसके अधिकार के लिए कोई प्रावधान नहीं है. यह किसी भी तरह से पुत्तूस्वामी केस के निर्देशों का उल्लंघन नहीं करता.

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