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15 कॉर्प्स के GOC लेफ्टिनेंट जनरल केजेएस ढिल्लन को श्रीनगर का प्रभार संभाले 3 हफ्ते भी नहीं हुए हैं. वह आतंकियों को निपटाने में अनुभवी हैं. उन्होंने 2010-12 में उत्तरी कश्मीर में चुनौतीपूर्ण हालात में तैनात राष्ट्रीय राइफल्स (RR) का नेतृत्व किया था.
श्रीनगर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने साफ कहा कि पुलवामा हमले के मास्टरमाइंड जैश-ए-मोहम्मद पर पाकिस्तानी सेना और ISI का नियंत्रण है और इस बात के पर्याप्त सबूत हैं.
उन्होंने यह दावा भी किया कि कार बम हमले की साजिश रचने वाले JeM नेतृत्व का सेना और दूसरे सुरक्षाबलों ने 100 घंटों के भीतर सफाया कर दिया है.
लगता है कि GOC 15 कॉर्प्स के बयान के जवाब में ही पाकिस्तान ने एक वीडियो क्लिप जारी किया. इस वीडियो क्लिप में प्रधानमंत्री इमरान खान किसी के निर्देश और कहने पर आत्मविश्वास के साथ बोल रहे थे. शायद निर्देश देने वाले पाकिस्तानी सेना के अधिकारी थे.
उन्होंने कहा कि 15 सालों की अस्थिरता और असुरक्षा का सामना करने के बाद जब पाकिस्तान अंदरूनी तौर पर स्थिर होने की राह पर है, तो खुद को ऐसे पचड़े में क्यों डालेगा, जिससे वही अस्थायित्व और वही डर का माहौल पैदा हो. 26/11, उरी और पठानकोन आतंकी हमलों के बाद की प्रतिक्रिया एक बार फिर दोहराते हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने कहा कि अगर भारत पर्याप्त सबूत देता है, तो पाकिस्तान मामले की जांच करेगा.
सबसे आखिर में इमरान के बयान का सबसे दिलचस्प हिस्सा था. उन्होंने साफ-साफ कहा कि अगर भारत, पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई करता है, तो यह पक्का है कि पाकिस्तान भी बिना पीछे हटे जवाबी कार्रवाई करेगा. दूसरे शब्दों में कहा जाए, तो वह ‘जैसे को तैसा’ के लिए तैयार हैं. साफ था कि इमरान का भाषण GHQ रावलपिंडी में लिखा गया था. ‘नया पाकिस्तान’ के उनके संस्करण से स्पष्ट था कि इमरान कुछ भी बदलने को तैयार नहीं हैं.
लगता है कि GHQ में भाषण लिखने वालों को JeM का वो बयान याद नहीं रहा, जिसमें आतंकी संगठन ने पुलवामा हमले की जिम्मेदारी ली थी. साफ शब्दों में पूछा जाए तो क्या भारत इमरान खान से यह उम्मीद कर रहा था कि वो टेलिविजन पर आएंगे और स्वीकार करेंगे कि पाकिस्तान की धरती पर आतंकी हमले की योजना बनी और उसे अंजाम दिया गया? उनका बयान भारतीय न्यूज चैनलों के लिए सिर्फ मसाला भर है.
फिलहाल भारत में भारी गुस्सा है. यह गुस्सा 26/11 हमले से भी ज्यादा है, जबकि उस आतंकी हमले में चार गुना ज्यादा लोग मारे गए थे. मुख्य रूप से यह गुस्सा सोशल मीडिया की वजह से है, जिसमें हर किसी का अपना मत है और हर कोई रणनीतिकार है. इस गुस्से की एक वजह यह भी है कि इन दिनों चुनावी माहौल है.
कड़े शब्दों का इस्तेमाल इमरान और पाकिस्तानी सेना, दोनों के लिए अपनी छवि को बनाए रखने के लिए जरूरी थे. यही जुबानी जंग है.
इमरान ने कहा कि पाकिस्तान की अब तक की चुप्पी सऊदी क्राउन प्रिंस की मौजूदगी की वजह से थी. चौंकाने वाली बात है कि कई देशों ने प्रधानमंत्री मोदी के आक्रामक रुख को संज्ञान में नहीं लिया. आमतौर पर ऐसी स्थिति में दोनों पक्षों से शांति बनाए रखने की अपील की जाती है.
भारतीय नजरिये से एक बात साफ है कि कुछ ना कुछ जवाबी कार्रवाई जरूर की जाएगी. इसके विकल्प बंद नहीं हैं. दरअसल जल्दबाजी में कम समय के लिए की जाने वाली कार्रवाई अनुत्पादक हो सकती है. जो भी करना हो, भारत सरकार को इसके जोखिम के बारे में गंभीरतापूर्वक विचार करने की आवश्यकता है. इसका अर्थ है कि जो इच्छा है, उसकी तुलना मुमकिन परिस्थितियों से की जानी चाहिए. इसके अलावा संतुलित अनुपात का सवाल, अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय प्रभाव, पाकिस्तान की प्रतिक्रिया और आकलन (अंदरूनी नुकसान समेत) और सबसे अहम चुनाव पर पड़ने वाला असर है.
हमें याद रखना चाहिए कई बार हम हाइब्रिड युद्ध की असंयमित कार्रवाईयों में फंस चुके हैं. अमेरिका में भी 9/11 के बाद यही हुआ था. भारी गुस्से और जनता के भारी दबाव में अमेरिका को जंग छेड़नी पड़ी. नतीजा यह निकला कि अफगानिस्तान और इराक, दोनों ही जगहों पर उसे मनमुताबिक नतीजे नहीं मिले. उन कार्रवाईयों में कई अमेरिकी मारे गए, लंबे समय तक परेशानी झेलनी पड़ी और लड़ाई में करीब 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का खर्च आया.
अमेरिकी अनुभव सबक सिखाता है कि असंतुलित जंग, असंतुलित तरीके से ही लड़नी चाहिए, ना कि पारंपरिक तरीके से. क्या इससे भारतीय प्रतिक्रिया के विकल्प सीमित होते हैं? कतई नहीं क्योंकि असंतुलित युद्ध के आयाम पारंपरिक युद्ध की तुलना में काफी विस्तृत होते हैं.
भारत सरकार पर चुनाव का भी काफी दबाव है और राजनीतिक एकता की वजह से अभी तक किसी विपक्षी दल ने कड़े शब्दों में सरकार की आलोचना नहीं की है. मगर यह भी लंबे समय तक नहीं चल सकता.
भारत को पाकिस्तान की स्थिति भांपनी चाहिए, और पाकिस्तान के झूठ का पर्दाफाश करना चाहिए. यह काम पहले भी हो चुका है. भारत की प्रतिक्रिया काफी संभली हुई होनी चाहिए. यह प्रतिक्रिया क्या हो सकती है, इसका आकलन कोई भी कर सकता है, लेकिन निश्चित रूप से वक्त फैसलों का इंतजार नहीं करता.
(लेखक सेना के 15 कॉर्प्स के पूर्व जीओसी हैं और फिलहाल सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ कश्मीर के कुलपति हैं। उनसे @atahasnain53 पर सम्पर्क किया जा सकता है। आलेख में दिये गए विचार लेखक के निजी विचार हैं और क्विंट का उससे सहमत होना जरूरी नहीं है.)
इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ें: After ‘War of Words’, Let’s Call Pakistan’s Bluff & Take Action
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