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पंडित जसराज जैसा लीजेंड बनने में पूरा जीवन लग जाता है

ईश्वर के लिए गाने वाले पंडित जसराज नहीं रहे 

क्विंट हिंदी
भारत
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ईश्वर के लिए गाने वाले पंडित जसराज नहीं रहे 
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ईश्वर के लिए गाने वाले पंडित जसराज नहीं रहे 
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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वीडियो एडिटर: कनिष्क दांगी

न जाने कब से, देश ही नहीं, दुनिया भर के असंख्य घरों में सुबह पंडित जसराज की आवाज से ही होती है. 'ओम नमो: भगवते वासुदेवाय' हो या 'ओम नम: शिवाय', पंडित जसराज की आवाज प्रार्थना की आवाज बन गई है. एक इंटरव्यू में उन्होंने खुद कहा था कि वो ईश्वर के लिए गाते हैं. पंडित जी का जाना ऐसे है जैसे एक युग का गुजर जाना.

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हरियाणा में जन्मे पंडित जसराज ने अपने बड़े भाई मणिराम से संगीत की शिक्षा ली. उनके पिता पंडित मोतीराम मेवाती घराने के गायक थे. शास्त्रीय संगीत से अपने जुड़ने का श्रेय पंडित जी बेगम अख्तर को देते थे और 14 साल की उम्र से गाना शुरू कर दिया था. पंडित जी की खासियत ये थी कि ज्यादातर शास्त्रीय संगीत के पंडितों से अलग नए प्रयोग करते रहते थे. एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था- ''जब मैं चार साल का था और पिता की गोद में बैठकर गाता था तो गलती करने पर वो हंस देते थे, मैं सोचता था वो खुश हो रहे हैं. तो ऐसी गलती मैं आज भी करता रहता हूं और सीखता रहता हूं. मैं अपने शिष्यों से भी सीखता रहता हूं''

पंडित जसराज हमेशा से एक स्टेज परफॉर्मर रहे. 1937 में पहला पब्लिक तबला वादन किया. एक इंटरव्यू में पंडित जसराज ने बताया था कि 1952 में नेपाल के राजा त्रिभुवन बीर बिक्रम शाह के दरबार में उनका पहला पब्लिक कॉन्सर्ट हुआ था. जब राजा ने उन्हें 5000 मोहरे दिए तो उन्हें यकीन ही नहीं हुआ. तब उनकी उम्र महज 22 साल थी.

पंडित जी ने ऑल इंडिया रेडियो और फिर दुनिया भर में कन्सर्ट कर न सिर्फ खुद नाम कमाया बल्कि देश और भारतीय संगीत को लेकर नए लोगों में नया सम्मान जगाया. संगीत में योगदान के लिए 1975 में पंडित जी को पद्म विभूषण मिला.

बहुत कम उम्र में ही पंडित जसराज एक स्थापित गायक बन चुके थे. लेकिन इससे वो संतुष्ट नहीं थे. लुप्त होती जा रही संगीत विधाओं को फिर से स्थापित करने का जैसे उन्हें जुनून था. जैसे ज्यादातर मंदिरों में गाया जाने वाला हवेली संगीत. इसे फिर से लोकप्रिय बनाने में उनका बड़ा योगदान था और अपने तमाम सम्मानों से ज्यादा वो इस चीज को तवज्जो देते थे. 1970 में उन्होंने एक अलग तरह की जुगलबंदी शुरू की जिसे 'जसरंगी' कहा जाता है. और ये हुआ था पुणे एक कॉन्सर्ट में. उनके चाहने वालों ने इसे ये नाम दिया था. इसमें एक पुरुष और एक महिला गायिका अपने-अपने राग में गाते हैं और आखिर में दोनों एक स्केल पर आ जाते हैं. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था.

शास्त्रीय संगीत के जादूगर पंडित जसराज बॉलीवुड के गाने भी सुनना पंसद करते थे. पंडित जी ने कुछ फिल्मों में भी गाया. 1966 में पहली बार वी शांताराम की फिल्म ‘लड़की शहयाद्रि की’ के लिए गाया. फिर 1975 में ‘बीरबल माई ब्रदर’. हालांकि फिल्मों में तभी गाते थे जब गाना राग पर आधारित हो. हालांकि 2008 में आई हॉरर फिल्म ‘1920’ के लिए गाया उनका गाना इस मायने में अपवाद था.

पिछले साल सितंबर में इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन ने उनके नाम पर एक ग्रह का नाम रखा..इस ग्रह का नंबर है 300128. ये संख्या रैंडम नहीं है, इसे रिवर्स ऑर्डर में रखेंगे तो उनकी जन्मतिथि होगी. ऐसा सम्मान पंडित जी से पहले किसी भी भारतीय गायक को नहीं मिला. उनकी बेटी और एक्स्ट्रेस दुर्गा जसराज कहती हैं -''पंडित जसराज जैसा लीजेंड बनने में पूरा जीवन लग जाता है.''

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Published: 17 Aug 2020,09:53 PM IST

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