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केंद्र की मोदी सरकार ने संसद का विशेष सत्र (Parliament Special Session) बुलाया है. ये सत्र 18 से 22 सितंबर तक चलेगा, जिसमें पांच बैठकें होंगी. संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने ट्वीट कर विशेष सत्र की जानकारी दी है. चलिए जानते हैं कि संसद का विशेष सत्र को बुलाने का अधिकार किसके पास है? इसको बुलाने के क्या प्रावधान हैं और इसकी क्या प्रक्रिया है?
संसद के सत्र के संबंध में संविधान के अनुच्छेद 85 में प्रावधान किया गया है. संसद के किसी सत्र को बुलाने की शक्ति सरकार के पास होती है. इस पर निर्णय संसदीय मामलों की कैबिनेट समिति द्वारा लिया जाता है, जिसे राष्ट्रपति द्वारा औपचारिक रूप दिया जाता है.
हर साल फरवरी और मई के बीच बजट सत्र होता है. इसे संसद का एक महत्वपूर्ण सत्र माना जाता है. फरवरी के आखिरी दिन आम तौर पर बजट पेश किया जाता है. वित्त मंत्री द्वारा बजट प्रस्तुत करने के बाद, सदस्य बजट के विभिन्न वर्गों के साथ-साथ टैक्स के मुद्दों का विश्लेषण करते हैं. बजट सत्र को आमतौर पर दो भागों में विभाजित किया जाता है, जिनमें से प्रत्येक के बीच एक महीने का अंतराल होता है. हर साल इस सत्र की शुरुआत दोनों सदनों में राष्ट्रपति के अभिभाषण से होती है.
हर साल, मानसून सत्र का समय जुलाई से सितंबर तक रहता है. यह बजट सत्र के बाद दो महीने के अंतराल के बाद आता है. यह सत्र जनता की चिंता के मुद्दों पर चर्चा करने के लिए समर्पित है.
हर साल, संसद का शीतकालीन सत्र नवंबर के मध्य से दिसंबर के मध्य तक आयोजित किया जाता है. यह सभी सत्रों में सबसे छोटा है. यह उन मुद्दों को उठाता है, जिन्हें पहले संबोधित नहीं किया जा सकता था और संसद के दूसरे सत्र के दौरान विधायी कार्य की अनुपस्थिति के लिए क्षतिपूर्ति करता है.
संसद के समान्य तीन सत्रों के अलावा संसद का विशेष सत्र बुलाया जा सकता है. अगर सरकार को लगता है किसी विषय पर तत्काल संसद की बैठक की आवश्यकता है, तो सरकार की सलाह पर राष्ट्रपति या स्पीकर, लोकसभा का विशेष सत्र बुला सकते हैं.
संसद का विशेष सत्र संसद के सदस्यों को भेजे गए निमंत्रण नोटिस में उल्लिखित विशिष्ट कामकाज को निपटाने के लिए आयोजित किया जाता है और इस सत्र में कोई अन्य कार्य पर विचार नहीं किया जाता है.
विशेष सत्र के इतिहास को दो भागों में बांटा जा सकता है- चर्चा या बहस के साथ विशेष सत्र या बिना किसी चर्चा या बहस के मध्यरात्रि सत्र.
26-27 नवंबर 2015: डॉ. बीआर अंबेडकर को उनकी 125वीं जयंती पर श्रद्धांजलि देने के लिए लोकसभा और राज्यसभा में दो दिन की विशेष बैठक बुलाई गई थी. ये भारतीय संविधान के निर्माता को सम्मान देने के लिए साल भर चलने वाले समारोह का हिस्सा थी. इसका थीम संविधान के प्रति राजनीति की प्रतिबद्धता पर चर्चा करना था. उसी साल, बाबा साहेब के विचारों के प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए भारत सरकार ने 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में घोषित किया था.
26 अगस्त से 1 सितंबर 1997: भारत की आजादी के 50 साल होने पर विशेष सत्र आयोजित किया गया था. इस छह दिवसीय सत्र का मुख्य फोकस देश की उपलब्धि, कमियां और विकास के राह पर बढ़ने को लेकर चर्चा करना था.
नवंबर 1962: तत्कालीन जनसंघ नेता अटल बिहारी वाजपेयी के दबाव डालने के बाद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की नेतृत्व वाली सरकार ने 1962 में विशेष सत्र बुलाया था. इसका एजेंडा भारत-चीन युद्ध की स्थिति पर चर्चा करना था. 8 और 9 नवंबर को इस विशेष सत्र में नेहरू और वाजपेयी के बीच तीखी बहस हुई थी.
14-15 अगस्त 1947: भारतीय संसद का पहला सत्र ब्रिटिश अधिकारियों से भारतीय लोगों को सत्ता के हस्तांतरण का गवाह बनने के लिए भारत की स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर आयोजित किया गया था. भारत ने 200 साल के उपनिवेशवाद के बाद अपनी स्वतंत्र, संप्रभु यात्रा शुरू की थी. देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने Tryst With Destiny भाषण में भी इसका उल्लेख किया था.
14-15 अगस्त, 1972: यह सत्र भारत की आजादी के 25 साल पूरे होने का जश्न मनाने के लिए आयोजित किया गया था.
9 अगस्त, 1992: यह संसद का एक मध्यरात्रि का स्पेशल सत्र था. यह सत्र भारत छोड़ो आंदोलन की 50वीं वर्षगांठ को मनाने के लिए आयोजित किया गया था. महात्मा गांधी ने 8 अगस्त, 1942 को अपने 'करो या मरो' भाषण के साथ भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया था.
14-15 अगस्त, 1997: भारत की स्वतंत्रता के 50 साल पूरे होने पर मध्यरात्रि में विशेष सत्र बुलाया गया था.
30 जून 2017: GST लागू करने के लिए संसद के सेंट्रल हॉल में मोदी सरकार ने पहली बार संसद का विशेष सत्र बुलाया था. लोकसभा और राज्यसभा दोनों की आधी रात की बैठक हुई थी, जिसमें सरकार ने वस्तु एवं सेवा कर (GST) लागू किया था.
लोकसभा और राज्यसभा दोनों ने समय-समय पर अलग-अलग विशेष सत्र आयोजित किए हैं. भारतीय संसद की पहली बैठक की 60वीं वर्षगांठ मनाने के लिए लोकसभा ने 13 मई 2012 को एक विशेष सत्र का आयोजन किया था.
1977 और 1991 में जब लोकसभा भंग थी, तब राष्ट्रपति शासन पर फैसला लेने के लिए राज्यसभा में विशेष सत्र आयोजित किए गए थे. वहीं, 1977 का विशेष सत्र, या 28 फरवरी और 1 मार्च को 99वां सत्र, तमिलनाडु और नागालैंड में राष्ट्रपति शासन के विस्तार के लिए बुलाया गया था. 3-4 जून 1991 को 158वां सत्र हरियाणा में राष्ट्रपति शासन की मंजूरी के लिए था.
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