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पाकिस्तानी सेना के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ (Pervez Musharraf) का दुबई में 79 साल की उम्र में निधन हो गया. भारत में जब भी मुशर्रफ का नाम लिया जाएगा, तब कारगिल युद्ध की याद ना आए, ये संभव नहीं. दो पड़ौसी देशों को युद्ध में झोंकने का सूत्रधार परवेज मुशर्रफ को ही माना जाता है, जो कारगिल के वक्त साल 1999 में पाकिस्तान के सैनिक तानाशाह और राष्ट्रपति भी थे.
साल 2013 में पाकिस्तानी सेना के लेफ्टिनेंट जनरल शाहिद अजीज की एक किताब आई 'ये खामोशी कहां तक'. शाहिद अजीज ने इस किताब में खुलासा किया कि परवेज मुशर्रफ ने कारगिल युद्ध की जानकारी पाकिस्तानी इंटेलिजेंस एजेंसी ISI को भी नहीं दी थी. मुशर्रफ ने सेना के 3 और अधिकारियों के साथ मिलकर सबसे छुपाते हुए कारगिल की प्लानिंग की थी.
ये अधिकारी थे लेफ्टिनेंट जनरल अजीज मुहम्मद खान, लेफ्टिनेंट जनरल महमूद अहमद और मेजर जनरल जावेद हसन.
शाहिद अजीज के मुताबिक ISI ने इंटरसेप्ट के जरिए भारतीय पक्ष की कुछ गतिविधियों को ट्रैक किया था, जिससे पता चला कि पाकिस्तानी सेना ने कारगिल में कोई बड़ा सैन्य अभियान चलाया है. अजीज ने अपनी किताब में ये भी लिखा कि सेना के मापदंडों के लिहाज से कारगिल की प्लानिंग बहुत कमजोर थी और वो वक्त इसके लिए बिल्कुल भी सही नहीं था. इसलिए मुशर्रफ ने कारगिल की योजना सर्वजनिक नहीं की.
पूरे देश से कारगिल की सच्चाई छुपाने का आरोप परवेज मुशर्रफ पर लगाने वाले एकमात्र शख्स शाहिद अजीज नहीं है. बल्कि पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ भी कारगिल को पाकिस्तानी सेना का अभियान ना मानते हुए ''कुछ जनरलों की कारस्तानी'' बताया था. नवाज ने आरोप लगाया था कि परवेज मुशर्रफ की तरफ से सैनिकों को भूंखे रहकर बिना संसाधनों के युद्ध में झोंका गया और पाकिस्तान को दुनिया के सामने शरमिंदा किया गया.
18 साल की उम्र में परवेज मुशर्रफ ने पाकिस्तानी सेना जॉइन की और 1964 में वो कमीशंड हुए. इसी साल मुशर्रफ ने पहली बार युद्ध का सामना किया, अफगान सिविल वॉर के वक्त. अगले साल हुए भारत-पाक युद्ध में खेमकारन सेक्टर में तैनात थे.
भारत के लिए ये यकीन करना आसान नहीं था कि कारगिल जैसे बड़े सैन्य अभियान का सच परवेज मुशर्रफ ने प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और अपने ही देश के अहम लोगों से छुपाया. लेकिन, एक घटना हुई जिसके बाद यकीन करना मुश्किल नहीं था. कारगिल वॉर के दौरान थलसेना अध्यक्ष रहे जनरल वेद प्रकाश मलिक ने बीबीसी को बताया कि भारतीय इंटेलीजेंस एजेंसी RAW ने परवेस मुशर्रफ और चीन में मौजूद पाकिस्तान के पूर्व जनरल अज़ीज़ ख़ान के बीच हुई बातचीत रिकॉर्ड की थी.
1 जून, 1999 तक ये सारे टेप तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी को सुनवाए जा चुके थे. इसके बाद फैसला हुआ कि ये टेप अब पाकिस्तान भेजे जाएंगे और पीएम नवाज शरीफ को सुनवाए जाएंगे. खूफिया तरीके से टेप पहले तो नवाज शरीफ को सुनवाए गए, फिर 11 जून 1999 को इन्हें एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर भारत ने सार्वजनिक कर दिया.
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