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पेगासस (Pegasus) का काला पिटारा खुला गया है. फ्रांस की संस्था Forbidden Stories और एमनेस्टी इंटरनेशनल (Amnesty international) ने मिलकर खुलासा किया है कि इजरायली कंपनी NSO के स्पाइवेयर पेगासस के जरिए दुनिया भर की सरकारें पत्रकारों, कानूनविदों, नेताओं और यहां तक कि नेताओं के रिश्तेदारों की जासूसी करा रही हैं. इस जांच को 'पेगासस प्रोजेक्ट' नाम दिया गया है. निगरानी वाली लिस्ट में 50 हजार लोगों के नाम हैं. जो पहली लिस्ट पत्रकारों की निकली है जिसमें 40 भारतीय नाम हैं.
लीक हुई लिस्ट में हिंदुस्तान टाइम्स, इंडिया टुडे, नेटवर्क 18, द हिंदू और इंडियन एक्सप्रेस के टॉप पत्रकार शामिल हैं. इनमें हिंदुस्तान टाइम्स के शिशिर गुप्ता, द वायर के फाउंडिंग एडिटर सिद्धार्थ वरदराजन और एमके वेणु, द वायर के लिए लगातार लिखने वालीं रोहिणी सिंह का नाम है. लिस्ट में एक मेक्सिको के पत्रकार Cecilio Pineda Birto ke का भी नाम है जिनकी हत्या हो गई.
भारत सरकार ने 'पेगासस प्रोजेक्ट' के आरोपों से इनकार किया है. सरकार ने कहा कि सरकारी निगरानी के आरोपों का कोई ठोस आधार नहीं है. भारत सरकार ने अपने बयान में कहा, "भारत एक मजबूत लोकतंत्र है, जो अपने सभी नागरिकों के निजता के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है. इस प्रतिबद्धता को आगे बढ़ाते हुए, इसने पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल, 2019 और आईटी नियम, 2021 को भी पेश किया है, ताकि सभी के निजी डेटा की रक्षा की जा सके और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म यूजर्स को सशक्त बनाया जा सके."
सरकार ने कहा कि अतीत में भारत सरकार के WhatsApp पर पेगासस का इस्तेमाल करने के ऐसे ही दावे किए गए थे. उन रिपोर्ट्स में भी कोई तथ्य नहीं था और भारतीय सुप्रीम कोर्ट में WhatsApp समेत सभी पक्षों ने इसका खंडन किया था.
पेगासस सॉफ्टवेयर दुनियाभर में इजरायल की कंपनी NSO बेचती है. कंपनी ने इस लिस्ट को विवादित बताया है. NSO ने कहा कि लिस्ट उसके सॉफ्टवेयर की फंक्शनिंग से किसी तरह भी नहीं जुड़ी है.
द वायर और पेगासस प्रोजेक्ट के पार्टनर्स को कंपनी ने एक लेटर में कहा, "उसके पास ये विश्वास करने की वजह है कि लीक हुआ डेटा वो नंबर नहीं हैं, जो सरकारों ने पेगासस के इस्तेमाल से टारगेट किए हैं."
कंपनी का कहना है कि ये लिस्ट उन नंबरों की हो सकती है, जिन्हें NSO समूह कस्टमर ने किसी और काम के लिए इस्तेमाल किया है.
मेक्सिको की सरकार से लेकर सऊदी अरब सरकार पर नागरिकों की आवाज दबाने के लिए पेगासस के इस्तेमाल करने के आरोप लगा चुके हैं. मेक्सिको की सरकार NSO की पहली क्लाइंट कही जाती है. द वॉशिंगटन पोस्ट के कॉलमनिस्ट जमाल खशोगी की हत्या में पेगासस स्पाइवेयर का भी नाम आया था.
WhatsApp ने साल 2019 में NSO पर आरोप लगाया था कि इसके स्पाइवेयर पेगासस का इस्तेमाल मई 2019 में दुनियाभर में WhatsApp के 1400 यूजर्स को टारगेट करने के लिए किया गया. इन लोगों में भारत के कई मानवाधिकार कार्यकर्त्ता, वकील और एक्टिविस्ट शामिल थे. जिन 121 भारतीय नागरिकों की सर्विलांस हुई थी, उनमें भीमा कोरेगांव मामले के वकील निहाल सिंह राठौड़, एल्गार परिषद केस के आरोपी आनंद तेलतुंबडे, बस्तर की मानवाधिकार वकील बेला भाटिया, एक्टिविस्ट सुधा भारद्वाज की वकील शालिनी गेरा जैसे लोग शामिल हैं.
दिसंबर 2020 में अल जजीरा के कई पत्रकारों पर पेगासस के जरिये जासूसी करने की खबर सामने आई थी.
पेगासस स्पाइवेयर के जरिये हैकर को स्मार्टफोन के माइक्रोफोन, कैमरा, मैसेज, ईमेल, पासवर्ड, और लोकेशन जैसे डेटा का एक्सेस मिल जाता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, पेगासस आपको एन्क्रिप्टेड ऑडियो स्ट्रीम सुनने और एन्क्रिप्टेड मैसेज को पढ़ने की अनुमति देता है. यानी हैकर के पास आपके फोन की लगभग सभी फीचर तक पहुंच होती है.
NSO ग्रुप के मुताबिक, इस प्रोग्राम को केवल सरकारी एजेंसियों को बेचा गया है और इसका उद्देश्य आतंकवाद और अपराध के खिलाफ लड़ना है. हालांकि, कई देशों में लोगों पर जासूसी करने के लिए इसका इस्तेमाल करने के आरोप लगते रहे हैं.
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