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पेगासस मामले में केंद्र सरकार को झटका, SC का आदेश- एक्सपर्ट कमेटी करेगी जांच

पेगासस जासूसी मामले में SC ने कहा- प्रेस की स्वतंत्रता महत्वपूर्ण, जो लोकतंत्र का महत्वपूर्ण स्तंभ है.

क्विंट हिंदी
भारत
Updated:
<div class="paragraphs"><p>सुप्रीम कोर्ट पहुंचा पेगासस जासूसी विवाद</p></div>
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सुप्रीम कोर्ट पहुंचा पेगासस जासूसी विवाद

(फोटो: क्विंट हिंदी)

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पेगासस जासूसी मामले (Pegasus Case) में सुप्रीम कोर्ट में आज 27 अक्टूबर को केंद्र सरकार को बड़ा झटका लगा है. सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस मामले में अहम आदेश दिया है. कोर्ट ने पेगासस जासूसी मामले की जांच के लिए एक्सपर्ट कमेटी का गठन किया है. कोर्ट ने कहा है कि तीन सदस्यीय कमेटी इसकी जांच करेगी.

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने कहा कि हमने लोगों को उनके मौलिक अधिकारों के हनन से बचाने से कभी परहेज नहीं किया. निजता केवल पत्रकारों और नेताओं के लिए नहीं, बल्कि ये आम लोगों का भी अधिकार है. कोर्ट ने कहा कि लोगों की विवेकहीन जासूसी बिल्कुल मंजूर नहीं.

चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने इसपर फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने रिटायर्ड जस्टिस आरवी रवींद्रन की अगुवाई में कमेटी का गठन किया है. जस्टिस रवींद्रन के साथ आलोक जोशी और संदीप ओबेरॉय इस कमेटी में होंगे.

केंद्र सरकार को झटका

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एनवी रमना ने कहा, कुछ याचिकाकर्ता पेगासस के सीधे शिकार हैं. ऐसी तकनीक के उपयोग पर गंभीरता से विचार करना केंद्र का दायित्व है. मैंने भारत में निजता के अधिकार की रक्षा की आवश्यकता पर चर्चा की है.

हम सूचना के युग में रहते हैं. हमें यह पहचानना चाहिए कि प्रौद्योगिकी महत्वपूर्ण है. निजता के अधिकार की रक्षा करना महत्वपूर्ण है, न केवल पत्रकार बल्कि गोपनीयता सभी नागरिकों के लिए महत्वपूर्ण है. निजता के अधिकार पर प्रतिबंध हैं लेकिन उन प्रतिबंधों की संवैधानिक जांच होनी चाहिए. आज की दुनिया में गोपनीयता पर प्रतिबंध आतंकवाद की गतिविधि को रोकने के लिए है और इसे केवल तभी लगाया जा सकता है जब राष्ट्रीय सुरक्षा की बात हो. इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि निगरानी में यह लोगों के अधिकार और स्वतंत्रता को प्रभावित करता है और इसका प्रयोग कैसे किया जाता है. यह प्रेस की स्वतंत्रता और उनके द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में भी है, ऐसी तकनीक का प्रेस के अधिकार पर प्रभाव पड़ सकता है.

चीफ जस्टिस ने कहा, "शुरू में यह अदालत अखबारों की खबरों पर आधारित रिट याचिकाओं से संतुष्ट नहीं थी. यह अदालत आमतौर पर उन जनहित याचिकाओं को हतोत्साहित करती है जो समाचार पत्रों की रिपोर्टों पर आधारित होती हैं. हालांकि कई अन्य याचिकाएं उन लोगों द्वारा दायर की गई हैं जो प्रत्यक्ष शिकार हुए हैं."

'केंद्र सरकार को बहुत वक्त दिया'

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने सुनवाई के दौरान कहा,

इस अदालत ने 2019 के बाद से पेगासस मामले में सभी सूचनाओं का खुलासा करने के लिए केंद्र को पर्याप्त समय दिया. हालांकि केवल एक सीमित हलफनामा दायर किया गया था जिसमें कुछ स्पष्ट नहीं था. अगर केंद्र स्पष्ट करता तो हम पर बोझ कम होता. राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंताओं को दिखाकर राज्य हर बार रास्ता नहीं बना सकता है. न्यायिक समीक्षा के खिलाफ कोई सर्वव्यापी निषेध नहीं कहा जा सकता है. केंद्र को यहां अपने रुख को सही ठहराना चाहिए था और अदालत को मूकदर्शक नहीं बनाना चाहिए था. केंद्र द्वारा कोई विशेष इनकार नहीं किया गया है. इस प्रकार हमारे पास याचिकाकर्ता की दलीलों को प्रथम दृष्टया स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है और इस प्रकार हम एक विशेषज्ञ समिति नियुक्त करते हैं जिसका कार्य सर्वोच्च न्यायालय द्वारा देखा जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, "असत्य की जांच और सच्चाई का पता लगाने के लिए ऐसी कमेटियां बनाई गई हैं. निजता के अधिकार के उल्लंघन की जांच होनी चाहिए. भारत सरकार की तरफ से कोई स्पष्ट रुख नहीं था. भारतीयों पर जासूसी के लिए विदेशी एजेंसी की संलिप्तता गंभीर चिंता की बात है."

हम इसे खारिज करने के केंद्र के अनुरोध को अस्वीकार करते हैं और एक समिति बनाने अनुमति देते हैं. स्वतंत्र सदस्यों को चुनना एक कठिन कार्य था. हमने इसे व्यक्तिगत रूप से एकत्र किए गए आंकड़ों के आधार पर चुना है. हमने इस समिति का हिस्सा बनने के लिए प्रसिद्ध विशेषज्ञों को चुना है. साइबर सुरक्षा और फॉरेंसिक के विशेषज्ञ हैं. इस तीन सदस्यीय समिति की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश आरवी रवींद्रन करेंगे. इसके सदस्य श्री आलोक जोशी होंगे. समिति से अनुरोध है कि इस मामले की जल्द जांच की जाए. इस मामले को 8 हफ्ते के बाद लिस्ट करें.
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया

बता दें कि पेगासस जासूसी मामले में कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग को लेकर याचिका दायर की गई थी. अदालत ने 23 सितंबर को संकेत दिया था कि वह पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं पर पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल कर जासूसी के आरोपों की जांच के लिए एक तकनीकी समिति का गठन कर सकती है.

क्या है पेगासस जासूसी कांड

दरअसल, इजरायली स्पाईवेयर पेगासस के जरिए भारत के कई नेताओं, पत्रकार, समाजिक कार्यकर्ताओं के कथित जासूसी का मामला सामने आया था. एक इंटरनेशनल पड़ताल में दावा किया गया है कि राहुल गांधी, प्रशांत किशोर, ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी, पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा सबके सब पेगासस के रडार पर थे. भारत के 40 पत्रकारों के फोन में झांका गया था, यहां तक कि मोदी सरकार के 2 मंत्री भी घेरे में थे.

हालांकि इजरायली कंपनी एनएसओ का दावा है कि वो किसी निजी कंपनी को सॉफ्टवेयर नहीं बेचती और सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल आतंकवाद या राष्ट्र की सुरक्षा के लिए खतरनाक लोगों के खिलाफ ही किया जाता है.

जिसके बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया. पेगासस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में अबतक 5 याचिकाएं दायर की गई हैं. सीनियर पत्रकार एन राम और शशि कुमार, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया , CPI(M) से राज्यसभा सांसद जॉन ब्रिटास, वकील एमएल शर्मा और पत्रकार परंजॉय ठाकुरता के साथ एसएनएम आब्दी, प्रेम शंकर झा, रूपेश कुमार सिंह और एक्टिविस्ट इप्सा शताक्षी ने ये याचिका दाखिल की है.

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Published: 27 Oct 2021,11:08 AM IST

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