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Pegasus स्पाइवेयर के निशाने पर दो भारतीय पत्रकार कौन? एमनेस्टी इंटरनेशनल का दावा

Pegasus: पेगासस एक स्पाइवेयर है जिसे इजरायली कंपनी एनएसओ ग्रुप द्वारा विकसित किया गया है.

क्विंट हिंदी
भारत
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<div class="paragraphs"><p>Pegasus: भारत के दो पत्रकार पेगासस स्पाइवेयर के टारगेट पर- एमनेस्टी इंटरनेशनल </p></div>
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Pegasus: भारत के दो पत्रकार पेगासस स्पाइवेयर के टारगेट पर- एमनेस्टी इंटरनेशनल

(फोटो- क्विंट )

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Pegasus: एक बार फिर पेगासस स्पाइवेयर (Pegasus spyware) के इस्तेमाल से भारतीय पत्रकारों को निशाना बनाने का दावा किया गया है. वाशिंगटन पोस्ट के साथ मिलकर एमनेस्टी इंटरनेशनल की सुरक्षा लैब द्वारा की गई एक फोरेंसिक जांच में ये दावा किया गया है कि दो भारतीय पत्रकार के iPhones पेगासस स्पाइवेयर के टारगेट पर थे.

बता दें कि पेगासस एक स्पाइवेयर है जिसे इजरायली कंपनी एनएसओ ग्रुप द्वारा विकसित किया गया है. हालांकि, एनएसओ ग्रुप ने हमेशा कहा है कि वह केवल सरकारों के साथ सौदा करता है और वह भी गहन जांच के बाद.

केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर लिखा, "...यह Apple को बताना है कि क्या उनके उपकरण असुरक्षित हैं और इन सूचनाओं के कारण क्या हुआ... Apple @इंडियनसीईआरटी के साथ जांच में शामिल होने के लिए कहा गया था और बैठकें आयोजित की गई हैं और पूछताछ जारी है.”

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने जिन दो पत्रकारों के बारे में दावा किया है कि उनमें से एक द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन और दूसरे संगठित अपराध और भ्रष्टाचार रिपोर्ट प्रोजेक्ट (ओसीसीआरपी) के दक्षिण एशिया संपादक आनंद मंगनाले. दोनों को, विपक्षी दलों के कई राजनेताओं के साथ, अक्टूबर में Apple से स्पाइवेयर की सूचना मिली थी. इसके बाद, दोनों ने टेस्ट के लिए एमनेस्टी इंटरनेशनल को अपना फोन उपलब्ध कराया था.

जब विपक्ष के नताओ पर स्पाइवेयर के हमले की मिली थी सूचना

अक्टूबर में, सभी दलों के विपक्षी नेताओं - कांग्रेस के शशि थरूर से लेकर आम आदमी पार्टी के राघव चड्ढा और तृणमूल की महुआ मोइत्रा तक - को उनके iPhones पर "संभावित राज्य-प्रायोजित स्पाइवेयर हमले" की चेतावनी के साथ Apple से "खतरे की सूचना" मिली थी.

तब उन्होंने केंद्र पर निशाना साधा था और सुझाव दिया था कि स्पाइवेयर हमले के प्रयास के पीछे सरकार का हाथ है. हालांकि, सरकार ने इससे इनकार किया था. इसका कारण पता लगाने के लिए भारतीय कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया टीम (सीईआरटी-इन) की अध्यक्षता में एक जांच भी शुरू की थी.

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एमनेस्टी इंटरनेशनल की जांच के बाद क्या पता चला?

मंगनाले के फोन पर हमले के बारे में बताते हुए एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा, “सुरक्षा लैब ने आनंद मंगनाले के डिवाइस से स्पाइवेयर के सबूत बरामद किए, जो 23 अगस्त 2023 को iMessage पर उनके फोन पर भेजा गया था. जिसे गुप्त रूप से पेगासस स्पाइवेयर इंस्टाल करने के लिए डिजाइन किया गया था."

एमनेस्टी ने कहा कि सिद्धार्थ वरदराजन के फोन में पेगासस इंस्टाल करने का प्रयास 16 अक्टूबर को हुआ, लेकिन ये असफल रहा. इसमें कहा गया, "आनंद मंगनाले के खिलाफ पेगासस हमले में इस्तेमाल किया गया वही हमलावर-नियंत्रित ईमेल पता सिद्धार्थ वरदराजन के फोन पर भी पहचाना गया था, जिससे पुष्टि होती है कि दोनों पत्रकारों को एक ही पेगासस कस्टमर द्वारा निशाना बनाया गया था."

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने एक ब्लॉग पोस्ट में कहा कि भारत में नए पेगासस स्पाइवेयर खतरों के संकेत पहली बार जून 2023 में एक नियमित तकनीकी निगरानी अभ्यास के दौरान देखे गए थे.

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने उन सवालों का जवाब नहीं दिया, जिनमें यह जानकारी मांगी गई थी कि क्या उसने दो पत्रकारों के अलावा भारत के अन्य लोगों के फोन का परीक्षण किया था और उन फोन से क्या निष्कर्ष निकला था.

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने पहले दावा किया था कि वरदराजन को 2018 में पेगासस स्पाइवेयर से टारगेट किया गया था. उनके उपकरणों का भी 2021 में स्पाइवेयर के इस्तेमाल के आरोपों के मद्देनजर भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्थापित एक तकनीकी समिति द्वारा फोरेंसिक विश्लेषण किया गया था.

सरकार और कोर्ट ने इस बारे में क्या कहा था?

अपनी ओर से, केंद्र सरकार ने पेगासस को खरीदने या उपयोग करने से स्पष्ट रूप से इनकार नहीं किया है. जैसा की एनएसओ समूह का कहना है कि वह केवल सरकार या सरकारी एजेंसियों को बेचता है.

अक्टूबर 2021 में, सुप्रीम कोर्ट ने तीन सदस्यीय तकनीकी समिति का गठन किया था और पेगासस का उपयोग करके अनधिकृत निगरानी के आरोपों की जांच के लिए पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज आर वी रवींद्रन की अध्यक्षता में जांच का आदेश दिया था. पैनल को उसके द्वारा जांचे गए फोन में स्पाइवेयर के इस्तेमाल पर कोई निर्णायक सबूत नहीं मिला, लेकिन नोट किया कि केंद्र सरकार ने पैनल के साथ "सहयोग नहीं किया है.

समिति ने अपनी रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में सौंपी थी. अदालत द्वारा उन्हें रिकॉर्ड पर लेने के बाद, रिपोर्ट को फिर से सील कर दिया गया और सुरक्षित अपने पास रख लिया. प्रकाशन के समय, रिपोर्टों को पहली बार शीर्ष अदालत में प्रस्तुत किए जाने के एक साल से अधिक समय बाद भी सार्वजनिक नहीं किया गया.

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